वर्षा ऋतु पर छोटे व बड़े निबंध लेखन- Long & Short Hindi Essay on Rainy Season
#1. वर्षा ऋतू निबंध 400 शब्दों में। rainy season
वर्षा ऋतु का आगमन देशी महीनों के हिसाब से सावन-भादों में उस समय होता है जब ग्रीष्म ऋतु के कारण चारों ओर त्राहि-त्राहि मच जाती है तथा सब प्राणी भगवान से वर्षा की मांग करने लगते हैं। ग्रीष्म का ताप सारी धरती के स्वरूप को झुलसा दिया करता है। तब धरती, प्रकृति और प्राणी-जगत की प्यास तथा ताप को मिटाने के लिए एकाएक पुरवाई चलकर बादलों के आगमन की सूचना दे जाती है अर्थात् वर्षा प्रारम्भ हो जाती है।
वर्षा ऋतु का समय आषाढ़ मास से आश्विन मास तक माना जाता है जिस कारण इसे ‘चौमासा’ भी कहते हैं। वर्षाऋतु के आने पर आकाश में काले-काले मेघ छा जाते हैं, शीतल वायु बहने लगती है, बिजली चमकने लगती है, फिर बादल टप-टप कर बरसने लगते हैं। चारों ओर पानी-ही-पानी हो जाता है। छोटे-छोटे नदी-नाले आपे से बाहर हो जाते हैं। दादुर की टर-टर, झींगुरों की झंकार तथा जुगनुओं की चमक-दमक से रात्रि में आनन्द छा जाता है। वनों तथा बागों में मोर मस्त होकर नाचने लगते हैं।
वर्षा का आगमन भारतीय किसानों के लिए किसी सुखद वरदान से कम महत्त्वपूर्ण नहीं होता। भारतवर्ष एक कृषि प्रधान देश है अतः वर्षा का यहाँ विशेष महत्त्व है। वर्षा से खेतों में हरियाली छा जाती है। धान, ज्वार, बाजरे और मक्का के लहलहाते खेत कृषकों को नया जीवन प्रदान करते हैं। वर्षा प्रारम्भ होने पर ही किसान अपने खेतों में हल चलाते हैं।
पावस ऋतु के सुहावने मौसम में स्त्रियों का प्रसिद्ध त्यौहार तीज का त्यौहार आता है। इस त्यौहार के आने पर बागों में बड़े-बड़े पेड़ों पर झूले डाले जाते हैं। इन झूलों पर स्त्रियाँ झूल कर तथा मल्हार व गीत गाकर सावन मास का स्वागत करती हैं। इसी ऋतु में फलों के राजा आमों की बहार आ जाती है। छोटे-छोटे बच्चे छप-छप करते हुए वर्षा के पानी में नहाते तथा घूमते हुए देखे जाते हैं।
इस ऋतु में जहाँ एक ओर सभी के मन में हर्षोल्लास की लहर दौड़ती देखी जाती है वहीं दूसरी ओर हमें दुःखों का भी सामना करना पड़ता है। चारों ओर मच्छरों की भरमार देखी जाती है जिससे मलेरिया फैल जाता है। अत्यधिक वर्षा होने पर चारों ओर बाढ़ आ जाती है जिससे जन-जीवन की बरबादी हो जाती है। परन्तु यह ऋतु जल रूपी जीवन का दान करने के कारण और गर्मी की तपन बुझाने के कारण बन्दनीय है। इसके विषय में यह जो कहा है ठीक ही कहा है कि “यदि बसन्त ऋतुओं का राजा है तो वर्षा ऋतुओं की रानी है”।
#2. [600-700 Words ] वर्षा ऋतु पर निबंध– Essay on rainy season in hindi
भास्कर की क्रोधाग्नि से प्राण पाकर धरा शांत और शीतल हुई। उसको झुलसे हुए गाल पर रोमावली सी खड़ी हो गई। वसुधा हरी-भरी हो उठी। पीली पड़ी, पत्तियों और मुरझाए पेड़ों पर हरियाली छा गईं। उपवन में पुष्प खिल उठे। कुंजों में लताएँ एक-दूसरे से आलिंगनबद्ध होने लगीं। सरिता-सरोवर जल से भर गए। उनमें कमल मुकुलित बदन खड़े हुए। नदियाँ इतराती, इठलाती अठखेलियाँ करती, तट-बंधन तोड़ती बिछुड़े हुए पति सागर से मिलने निकल पड़ी।
सम्पूर्ण वायुमंडल शीतल और सुखद हुआ। भवन, मार्ग, लता-पुष्प धुले से नजर आने लगे। वातावरण मधुर और सुगंधित हुआ। जनजीवन में उल्लास छा गया। पिकनिक और सैर-सपाटे का मौसम आ गया। पेड़ों पर झूले पड़ गए। किशोर-किशोरियाँ पेंगे भरने लगीं। उनके कोकिल कंठी से मल्हार फूट निकला। पावस में बरती वारिधारा को देखकर प्रकृति के चतुर चितरे सुमित्रनन्दन पंत का हृदय गा उठा ‘पकड़ वारि की धार झूलता है रे मेरा मन।’ कविवर सेनापति को तो वर्षा में नववूध के आगमन का दृश्य दिखाई देता है।
इस ऋतु में आकाश में बादलों के झुंड नई-नई क्रीड़ा करते हुए अनेक रूप धारण करते हैं। मेघमलाच्छादित गगन-मंडल इन्द्र को वज्रपात से चिंगारी दिखाने के समान विघुलता की बार-बार चमक और चपलता देखकर वर्षा में बन्द भी भीगी बिल्ली बन जाते हैं। मेघों में बिजली की चमक में प्रकृति सुन्दरी के कंकण मनोहारिणी छवि देते हैं। घनघोर गर्जन से ये मेघ कभी प्रलय मचाते तो कभी इन्द्रधनुषी सतरंगी छटा से मन मोह लेते हैं।
वन-उवन तथा बाग-बगीचों में यौवन चमका। पेड़-पौधे स्वच्छन्दतापूर्वक भीगते हुए मस्ती में झूम उठे। हरे पत्ते की हरी डालियाँ रूपी कर नील गगन को स्पर्श करने के लिए मचल उठे। पवन वेग से गुंजित तथा कंपित वृक्षावली सिर हिलाकर चित्त को अपनी ओर बुलाने लगी। वर्षा का रस रसाल के रूप में टिप-टिप गिरता हुआ टपका बन जाता है तो मंद-मंद गिरती हुई जामुनें मानो भादों के नामकरण संस्कार को सूचित कर रही हों। ‘बाबा जी के बाग में दुशाला ओढ़े खड़ी हुई’ मोतियों से जड़ी कूकड़ी की तो बात ही निराली है।
सरिताओं की सुन्दर क्रीड़ा को देखकर प्रसाद जी का हृदय विस्मित हो लिखता है-‘सघन वृक्षाच्छादित हरित पर्वत श्रेणी, सुन्दर निर्मल जल पूरित नदियों का हरियाली में छिपते हुए बहना, कतिपय स्थानों में प्रकट रूप में वेग सहित प्रवाह हृदय की चंचलधारा को अपने साथ बहाए लिए जाता है।’ (प्रकृति सौन्दर्य, लेख से)।
सावन की मनभावनी फुहारों और धीमी-धीमी शीतल पवन के चलते मतवाले मयूर अपने पंखों के चंदोवे दिखा-दिखाकर नाच रहे हैं। पोखरों में मेंढ़क टर्र-टर्र करते हुए अपना गला ही फाड़े डाल रहे हैं। बगुलों की पंक्ति पंख फैला-फैलाकर चांदनी-सी तान रहे हैं। मछलियाँ जल में डुबकी लगाकर जलक्रीड़ा का आनन्द ले रही हैं। रात्रि में जुगनू अपने प्रकाश से मेघाच्छादित आकाश में दीपावली के दीपक समान टिमटिमा रहे हैं। केंचुए, बिच्छू, मक्खी मच्छर सैर का आनन्द लेने भूतल पर विवरण कर रहे हैं। खगगण का कलरव, झींगुर समूह की झंकार वातावरण को संगीतमय बना रहे हैं।
चांदनी रात में तो हिमपात का सौन्दर्य अत्यधिक हृदयी ग्राही बन जाता है, क्योंकि आकाश से गिरती हुई बर्फ और बर्फ से ढके हुए पदार्थ शुभ्र ज्योत्सना की आभा से चमकते हुए बहुत ही सुन्दर लगते हैं। चांदनी के कारण सारा दृश्य दूध के समुद्र के समान दिखाई देता है। नयनाभिराम हिमराशि की श्वेतिमा मन को मोह लेती है।
वर्षा का वीभत्सव रूप है अतिवृष्टि। अतिवृष्टि से जल-प्रलय का दृश्य उपस्थित होता है। दूर-दूर तक जल ही जल। मकान, सड़क, वाहन, पेड़-पौधे, सब जल मग्न। जीवनभर की संचित सम्पत्ति, पदार्थ जल देवता को अर्पित तथा जल प्रवाह के प्रबल वेग में नर-नारी, बालक-वृद्ध तथा पशु बह रहे हैं। अनचाहे काल का ग्रास बन रहे हैं। गाँव के गाँव अपनी प्रिय स्थली को छोड़कर शरणार्थी बन सुरक्षित स्थान पर शरण लेने को विवश हैं। प्रकृति प्रकोप के सम्मुख निरीह मानव का चित्रण करते हुए प्रसाद जी लिखते हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर, बैठ शिला की शीतल छाँह एक पुरुष भीगे नयनों से, देख रहा था प्रलय प्रवाह।
वर्षा से अनेक हानियाँ भी हैं। सड़कों पर और झोपड़ियों में जीवन व्यतीत करने वाले लोग भीगे वस्त्रों में अपना समय गुजारते हैं। उनका उठना-बैठना, सोना-जागना, खाना-पीना दुश्वार हो जाता है। वर्षा से मच्छरों का प्रकोप होता है, जो अपने वंश से मानव को बिना माँगे मलेरिया दान कर जाते हैं। वायरल फीवर, टायफॉइ बुखार, गैस्ट्रो एंटराइटिस, डायरिया, डीसेन्ट्री, कोलेरा आदि रोग इस ऋतु के अभिशाप हैं।
#3. [800 Words] वर्षा ऋतू पर निबंध [rainy season in hindi]
प्रस्तावना: वर्षा ऋतू का आगमन सभी लोगो के जीवन में सुकून लेकर आता है। गर्मी और तेज़ धूप से छुटकारा दिलाने का खुशनुमा जरिया है वर्षा ऋतू। आजकल पृथ्वी पर ग्लोबल वार्मिंग इत्यादि के कारण गर्मी अत्यधिक बढ़ रही है। गर्मियों में हर वर्ष तापमान ऊपर चढ़ता रहता है। जब ही मई और जून की प्रचंड गर्मी के बाद वर्षा आती है तो लोगो का मन ख़ुशी से झूम उठता है। गर्मी से राहत दिलाने में वर्षा ऋतू महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। तपती धूप में हम सभी जीवो को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है और अतिरिक्त बाहर गर्मी में जाने से तबियत भी खराब हो जाती है। वर्षा ऋतू के आगमन से सभी खुश हो जाते है। यह किसानो के लिए भी खुशखबरी से कम नहीं है। जब नदियों का पानी सुख जाता है तो पशु पक्षियों को सबसे अधिक दिक्कत होती है। वर्षा ऋतू के आने पार चारो ओर मन को आकर्षित करने वाली हरियाली छा जाती है। वर्षा ऋतू के आने पर मिटटी की सौंधी खुसबू आती है। किसानो के लिए बारिश अमृत से कम नहीं है।
अगर वर्षा अच्छी ना हो तो किसानो के लिए परेशानी की वजह बन जाती है। अगर संतुलित वर्षा ना हुयी तो फसल खराब हो जाती है। किसानो को बहुत नुकसान झेलना पड़ता है। जब वर्षा आती है तो जंगलो में मोर नाचने लगते है। प्रकृति और मौसम सुहावना हो जाता है। बच्चे और बड़े छतरी लेकर बाहर निकलते है और बारिश का आनंद लोग घरो में बैठकर एक गर्म चाय की प्याली के साथ उठाते है।
गर्मी के कारण , पानी की कमी बहुत सारे जगहों पर देखी जा सकती है। वर्षा ऋतू के आने पर तालाब , जलाशयों में पानी भरता है जिसकी वजह से हमे जल प्राप्त होता है। जल ही जीवन है। जल के बैगर हमारा कोई अस्तित्व नहीं है। वर्षा ऋतू हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। प्रदूषण के कारण जैसे ऋतू चक्र बदल रहा है। किन्ही जगहों पर वर्षा कम होती है और किन्ही जगहों पर वर्षा इतनी अधिक होती है कि बाढ़ जैसे हालात पैदा हो जाते है।
गर्मी की वजह से जो पौधे सूख जाते है , वर्षा के पानी से वह तरोताज़ा हो जाते है। वर्षा के पानी से पौधों का विकास तेज़ी से होता है। प्रदूषण और अत्यधिक पेड़ काटने की वजह से प्रकृति रौद्र रूप धारण कर लेती है। भीषण बाढ़ के कारण गाँव डूब जाते है और जान माल का काफी नुकसान होता है। अगर बारिश अत्यधिक होता है तो बीमारियों का संक्रमण बढ़ जाता है। ज़्यादा बारिश होने से फसल बर्बाद हो जाते है।
अगर बारिश अत्यधिक होता है तो बीमारियों का संक्रमण बढ़ जाता है। ज़्यादा बारिश होने से फसल बर्बाद हो जाते है। वर्षा ऋतू जुलाई में आरम्भ होती है और अगस्त तक चलती है। पहाड़ी इलाको में वर्षा कई दिनों तक लगातार होती रहती है। भीषण गर्मी के कारण तेज़ लू बहती है। जब वर्षा होती है तो इस भयंकर लू से सबको राहत मिलती है। भारत में विविध तरह के मौसम पाए जाते है। अगर किसी कारण शहरों या गाँवों के रास्ते खराब हो , तो वर्षा के कारण और अधिक खराब हो जाते है। गड्डो की वजह से पानी एक जगह इकट्ठा हो जाता है। वर्षा के कारण सड़को पर ट्रैफिक जैम अधिक बढ़ जाता है और यातायात में असुविधा होती है।
वर्षा ऋतू पर पृथ्वी की हरियाली निर्भर करती है। वर्षा ऋतू के आगमन से पुरे पर्यावरण को लाभ होता है। जब बारिश अच्छी होती है , तो फसले भी उम्दा पैदा होते है। ठंडी ठंडी मन को भा लेने वाले हवाएं चलती है। धरती के जल स्तर में अच्छी वृद्धि होती है। गर्मी जो प्रचंड रूप से पड़ती है , वह कम हो जाती है। लोगो को खाने के लिए अच्छी मात्रा में अनाज प्राप्त होता है। मनुष्य जिस तरह से वृक्ष काट रहे है , वर्षा इसलिए कम हो जाती है। वृक्षारोपण हमे अत्यधिक करना होगा , ताकि सूखे जैसे हालत ना पैदा हो।
वर्षा ऋतू से सबसे ज्यादा फायदा किसानो को होता है। हमारे देश में किसान अपने फसल को उगाने के लिए वर्षा ऋतू में होने वाले बारिश पर निर्भर करते है। सही मात्रा में बारिश होने पर भरपूर मात्रा में फसल, फल इत्यादि उगते है।
पर्यावरण का संतुलन को बनाये रखने में वर्षा ऋतू की अहम भूमिका होती है। अगर वर्षा अच्छी नहीं हुयी, तो पूरे संसार में पानी के कमी के कारण हाहाकार मच जाएगा। वर्षा ऋतू से फायदा पशु पक्षियों को भी होता है। वर्षा ऋतू के दौरान होने वाले बारिश से चारो तरफ हरियाली छायी रहती है। वर्षा से पृथ्वी के सतह की गर्मी कम हो जाती है। तापमान कम हो जाता है।
निष्कर्ष
हमारे देश की उन्नति कृषि पर निर्भर करती है। पर्याप्त वर्षा से अधिक फसल का उत्पादन होता है और देश की उन्नति होती है। वर्षा ऋतू में बच्चो से बड़े सब मज़े करते है। वर्षा ऋतू का पानी हमे जमा करना चाहिए ताकि हम इनका उपयोग अन्य कार्यो में कर सके। जन जीवन वर्षा ऋतू पर निर्भर है। वर्षा ना हुयी तो सब पानी की एक बूंद के लिए तरस जाएंगे। संतुलित वर्षा का होना आवश्यक है। वर्षा संतुलित मात्रा में होने से देश की उन्नति तेज़ी से होती है। मानसून की बारिश बहुत महत्वपूर्ण है।
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