जब हम वर्षा-ऋतु में पिकनिक पर गए

Rate this post

जब हम वर्षा-ऋतु में पिकनिक पर गए पर निबंध

दशहरे की छुट्टियों के अंतिम दिनों की बात है, पिता जी के मित्र रमन अंकल सपरिवार हमारे घर (संध्या चाय पर) आए थे। मेरी ही आयु का उनका एक पुत्र और उससे छोटी एक पुत्री, उन दोनों को मैं ऊपर अपने कमरे में ले गया जहाँ हमने बहुत देर तक कंप्यूटर पर भिन्न-भिन्न खेल खेले। एक घंटे बाद माँ ने हमें पुकारा, हम खेलते रहना चाहते थे परंतु विवश हो नीचे आना पड़ा। वहाँ आना सुखद ही रहा। हम जब नीचे पहुँचे तो माँ ने हमें यह खुशखबरी सुनाई कि अब तुम्हारी छुट्टियाँ समाप्त होने पर हैं और मौसम भी अच्छा है, इसलिए कल हम सब पिकनिक पर चलेंगे। हम सभी खुशी से उछलने लगे। ‘कालिंदी कुंज’ या ‘सूरज कुंड’ दोनों में से किसी एक पिकनिक स्थल पर जाने की बहस हो गई। हम बच्चों ने सूरज-कुंड का चुनाव किया क्योंकि वहाँ खले वातावरण में खेलने के साथ-साथ ‘बोटिंग’ का भी आनंद उठाया जा सकता है।

सभी हमारे विचारों से सहमत थे इसलिए ‘सूरज कुंड’ जाने का निश्चय किया गया। जाने की तैयारी करने के लिए अंकल भी अपने परिवार के साथ घर लौट गए और हम भी अनेक प्रकार के खाद्य-पदार्थ, खेल का सामान आदि जुटाने में लग गए। मनुष्य का स्वभाव है कि जब वह एक ही तरह का जीवन जीता रहता है तो उससे उकता जाता है और उस उकताहट से निकलने के अनेक उपाय करता है। पिकनिक उनमें सबसे सरल एवं कारगर उपाय है।

मनोरंजन, खान-पान के साथ-साथ एक-दूसरे के विचारों को समझने-समझाने एवं वैमनस्य दूर करने का पर्याप्त समय मिलता है। खेल-कूद का व्यायाम के साथ चोली-दामन का साथ है इससे जीवन में ताजगी का एहसास होता है। रात्रि में ही सारी तैयारी कर ली थी इसलिए सुबह हाय-तौबा करने की नौबत नहीं आई। माँ ने जल्दी उठकर खाने-पीने की बहुत सारी सामग्री तैयार कर ली और फ्लास्क में चाय भी भर ली। मैं वीडियो गेम के साथ-साथ लूडो, ताश, शतरंज तथा क्रिकेट का ‘किट’ भी रखना न भूला। मेरी बहिन ने अपनी प्यारी गुड़िया ‘बार्बी’ और कहानियों की कुछ पुस्तकें भी रख ली।

निश्चित समय पर रमन अंकल भी परिवार सहित आ गए। उनके आने पर ही पता चला कि आकाश में बादल छाए हए हैं, सुनकर मुझे तो बहुत प्रसन्नता हुई। माँ को चिंता हुई कि कहीं वर्षा पिकनिक के कार्यक्रम पर पानी न फेर दे। समीर बहता देख सबने सोचा कि अब बादल अपनी अठखेलियाँ दिखाते-दिखाते इधर-उधर छितर जाएगा और यह सोचकर सबने अपना मन पक्का बना लिया। दोनों गाड़ियों का कारवां अपने गंतव्य की ओर बढ़ चला! हम बच्चे एक कार में बैठे थे और ख्व जोर-जोर से गीत गा रहे थे और खुशी से फूले न समा रहे थे। यह आधे घंटे की दूरी भी मानो युगों की दूरी बन गई थी। अंत में अपनी मनोवांछित जगह को पाकर हम आतुर हो उठे।

सबने मिलकर सामान उठाया और फूलों से भरे मैदान में डेरा जमाया। हम बच्चे तो सामान को अव्यवस्थित छोड़कर क्रिकेट खेलने चले गए। माँ ने बड़ी मुश्किल से हमें बुलाया। हम सबने मिलकर नाश्ता किया हम फिर खेलने लगे। दोनों लड़कियाँ गुड़ियों से खेल रही थीं और बाकि सब बड़े बातचीत में व्यस्त हो गए। खेलने के बाद माँ ने कहा थोड़ा आस-पास घूमकर आते हैं। पिता जी और अंकल को वहीं छोड़ हम कुंड के पास सीढ़ियों पर बैठ गए और पानी तथा आस-पास के सौंदर्य का आनंद उठाने लगे। ठंडी हवा शरीर में मस्ती का संचार कर रही थी। कुंड के एक ओर पहाड़ी इलाका विरल कंटीली झाड़ियों तथा वृक्षों से घिरा छोटा-सा जंगल प्रतीत हो रहा था।

माँ हमें लेकर उसी ओर गईं। वहाँ कम पानी में हमने किलोलें की और अपनी मधुर हँसी से उस शांत-स्थिर वातावरण में जीवन का संचार किया। हवा का वेग तीव्र होने के कारण कुंड के जल में हल्की-हल्की लहरें उठने लगी थी हमने उनका भी आनंद उठाया। मन चाह रहा था कि काश! मैं पानी पर चल सकता तो इन लहरों का शीतल एवं कोमल स्पर्श का सुखद आनंद प्राप्त करता। इतने में माँ ने आकाश में उमड़ते-घुमड़ते काले-काले बादलों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित किया। प्रकृति अपने में कितना अद्भुत सौंदर्य समेटे हुए है उसके निकट जाने पर ही इसका आभास होता है और जिज्ञासु बालक बन जब इस चेतन सौंदर्य की धनी प्रकृति माँ का आँचल थाम लेते हैं तो उसका परिचय भी प्राप्त होता है। धीरे-धीरे हम वापिस लौट आए। बहुत तेज़ भूख लगी थी, सबने मिलकर स्वादिष्ट भोजन का चटखारे ले-लेकर आनंद लिया। पेट-पूजा के बाद हम फिर खेलने लगे। धीरे-धीरे आकाश में घने श्यामल मेघों के तंबू टंग गए थे और वर्षा भी प्रारंभ हो गई थी। तेज़ वर्षा के थपेड़ों ने हमें सराबोर कर दिया। एक मन करता था कि दौड़कर कहीं आश्रय ले लें पर पिता जी की ‘इच्छा’ नहीं थी। उन्होंने इस वर्षा के मौसम में नाव का आनंद लेने का प्रस्ताव रखा जिसे सबने सहर्ष स्वीकार कर लिया।

चाँदनी रात में नौका विहार के बारे में सुना था पर बरसते पानी में नौका-विहार बहुत अनूठा था, सोचकर शरीर में सिहरन हो रही थी। हमें एक बड़ी नाव नाविक सहित मिल गई। हम सभी उसमें सवार हो गए। पिता जी और अंकल ने एक माँझी गीत गाया जिसने उस मस्त कर देने वाले मौसम में समां बांध दिया। जीवन दुखों का गहरा सागर है पर इसी गहरे सागर में डुबकी लगाने पर सुख व आनंद रूपी सच्चे मोती अवश्य मिल जाते हैं जो जीवन को उल्लासमय बना देते हैं। यही वह समां था जो जीवन का अनमोल रत्न था। सारा समां ही यूँ प्रतीत हो रहा था मानो श्यामल नृत्यांगना अपने पाँवों में बूंदों की पायल छमकाती मेघों की गर्जना के ताल पर बेसुध हो नृत्य कर जगत को मोहित कर रही हो!

हम वर्षा से सराबोर हो शोर मचा कर नौका-विहार का आनंद ले रहे थे। माँ और आंटी जी भी आपस में बतियाकर हँस रही थीं। पिता जी और रमन अंकल भी बात-बात में ठहाके लगा रहे थे। सबके चेहरों पर वर्षा का जल यूँ बरस रहा था मानो नूर बरस रहा हो। एक घंटा नाव में सैर करने के बाद हम अपने सामान के पास पहुँचे जिसे हमने पास के छोटे से होटल में सुरक्षित रखवाया था। ठंडक महसूस होने लगी थी। सबने गर्मागर्म चाय और पकौड़े का प्रस्ताव रखा।

उस दिन का चाय और पकौड़े का स्वाद आजीवन याद रहेगा। कपड़े भीगे होने के कारण मेरी छोटी बहिन छींकने लगी थी। घड़ी देखने पर पता लगा कि संध्या के छह बज रहे हैं। फिर हम कारों में सामान भरकर घर की ओर लौट चले। थोड़ी देर और रुकने की मेरी इच्छा थी। सच, जीवन में पिकनिक का जितना आनंद उस दिन आया था, फिर कभी नहीं आया। मैं कई बार पिकनिक गया पर बरसात में भीगकर पिकनिक मनाना अपने आप में एक अनुपम अनुभव है।

Leave a Comment