महावीर जयंती पर हिंदी निबंध
[Hindi Essay On Mahavir Jayanti]
प्रस्तावना:- महावीर जयंती को जैन धर्म के लोग बहुत धूमधाम और व्यापक स्तर पर मनाते है। भगवान महावीर को हमेसा से ही दुनिया को अहिंसा और अपरिग्रह का संदेश दिया है। उन्होंने जीवों से प्रेम और प्रकृति के नजदीक रहने को कहा है। महावीर जी ने कहा था कि अगर किसी को हमारी जरूरत है उसके बाद भी अगर हम उसकी मद्त नही करते तो ये भी एक प्रकार से हिंसा ही कहलाती है। इसलिए हमेशा सदाचारी और स्तय को ही अपनाये।
महावीर स्वामी का जन्म:- वर्धमान महावीर स्वामी का जन्म आज से करीब 2500 वर्ष पूर्व बिहार के वैशाली जिले के कुंडग्राम में हुआ था। किसी समय कुण्डग्राम जान्त्रिक नामक क्षत्रियो का गणराज्य हुआ करता था। महावीर जी के पिता उक्त गणराज्य के अधिपति थे। उनकी माता त्रिशाला देवी, लिच्छवी गणराज्य की शासन-सत्ता के प्रधान की बहन थी। इस प्रकारमहावीर जी के पिता और माता दोनों ही राजवंश से सम्बंधित थे।
महावीर स्वामी जी का विवाह और ज्ञान प्रप्ति:- महावीर के युवा होने पर उनका विवाह यशोदा नाम की एक सुंदर राजकुमारी से हुआ था। जिसने एक कन्या को जन्म दिया था। महावीर जी की उम्र केवल 30 वर्ष थी। तब उनके माता-पिता का स्वर्गवास हो गया था। माता-पिता के स्वर्गवास होने के बाद महावीर बहुत दुखी हो गए थे, तो उन्होंने अपने बड़े भाई से अनुमति लेकर गृहत्याग कर तपस्या करने के लिए घोर जंगल मे चले गए। 12 वर्ष तक उन्होंने अखण्ड तपस्या करने के बाद उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई। ज्ञान प्रप्ति के बाद उन्हें पूजनीय कहा जाने लगा। उन्होंने अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर ली थी। इसलिए उन्हें जितेन्द्रिय और ‘जिन‘ भी कहा जाता था। तपस्या के दौरान कुछ लोगो द्वारा सताये अथवा आहत किये जाने के कारण वे विचलित नहीं हुए इसलिए उन्हें महावीर कहा गया।
महावीर स्वामी के पांच सिद्धान्त:- महावीर स्वामी ने पांच सिद्धान्त स्थापित किये थे, प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन मे इन्हें उतारना चाहिये। ये सिद्धन्त मनुष्य के लिए अति महत्वपूर्ण है। जो कि मानव के जीवन मे कई अच्छे परिणाम स्थापित करता है।
(1) अहिंसा
(2) सत्य
(3) अस्तेय
(4) ब्रह्मचर्य
ये वो पांच सिद्धान्त है तो हमे हमारे जीवन मे उतारना चाहिए और महावीर स्वामी के इस सिद्धान्तों का पालन करना चाहिए।
जिस प्रकार महावीर स्वामी ने अपने पांच सिद्धान्त बताये उसी प्रकार उनके द्वारा दिये गए 18 पापो के बारे में बताया है। वो इस प्रकार है।
महावीर स्वामी जी द्वारा बताए गए 18 पाप इस प्रकार है | |
---|---|
हिंसा | झूट |
चोरी | मैथुन |
परिग्रह | क्रोध |
मोह | माया |
लोभ | राग |
द्वेष | कलह |
दोषारोपण | चुगली |
निंदा | छलकपट |
मिथ्या दर्शन | असंयम रति ओर संयम अरती |
उन्होंने कहा है कि जो सन्यासी को तम, योग और यज्ञ को महत्व दिया है और जो गृहस्थों के लिये अहिंसा, सत्य, असत्य और ब्रह्मचर्य अपरिग्रह ये ग्रस्थ जीवन के लिए आवश्यक है।
इस प्रकार महावीर स्वामी ने आचरण को मुख्य स्थान दिया है। उनके अनुसार मनुष्य में सबसे जरुरी अच्छे आचरण का होना अतिआवश्यक है।
महावीर स्वामी के मतानुसार गृहस्थो को निवार्ण की प्राप्ति नही हो सकती। निर्वाण प्राप्ति के लिए हर प्रकार का त्याग करना जरूरी है। इस त्याग में सभी प्रकार के बंधन-परिवार, घर-बार धन-धान्य सब है। इसी बजह से दिगम्बर मुनि तो वस्त्र भी धारण नही करते। परंतु वही शवेताम्बर विचारधारा वाले जैनी उक्त विचार को न मानकर श्वेत वस्त्र धारण करते है। आरंभिक जैन साधक गर्म तथा सर्द पत्थर की चट्टानों पर बैठकर साधना करते-करते अपने शरीर को त्याग दिया करते थे।
महावीर स्वामी का महाप्रयाण:- महावीर स्वमी 30 वर्ष तक अपने अनुभवों तथा मान्यताओं का प्रचार करते रहे। उनका महाप्रयाण पटना के निकट पावापुरी नामक स्थान में ईसा 464 वर्ष पूर्व हुआ था। इस प्रकार मात्र 72 वर्ष की आयु तक महावीर स्वामी ने भारत-भृमण करने अपने सिद्धांतों का प्रचार किया तथा उनके पुरान्त सुधर्मन जैन धर्म के प्रधानचार्य बने।
उपसंहार:- भारत मे जैन धर्मालंबियों की संख्या यधपि अधिक नही है। परंतु इस धर्म के मॉनने वाले आस्थावान लोग है और ज्यादातर वाणिज्य-व्यपार में लगे हुए हैं। यही कारण है कि भारत मे प्रति वर्ष चैत्र शुक्ल दादशी को भगवान महावीर स्वामी की जयंती काफी धूमधाम से मनाई जाती है। भगवान महावीर का जीवन और संदेश केवल जैनियों के लिए ही नहीं वरन प्रत्येक भारतवासी के लिए प्रेरणाप्रद है। भारत के महापुरुषो एवं अवतारों में महावीर स्वमी सदा अग्रणी पंक्ति में प्रतिष्ठित रहेंगे।
#सम्बंधित Hindi Essay, हिंदी निबंध।