प्रस्तावना
किसी भी देश के विकास के लिए शिक्षा अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके बिना किसी भी सामाजिक व्यवस्था को मजबूती नहीं मिल सकती है। इसलिए शिक्षा हर किसी के लिए आवश्यक है। लेकिन आज के समय में शिक्षा में काफी परिवर्तन हुए हैं। इस उन्नत स्तर के परिवर्तन के कारण शिक्षा में सुधार के साथ साथ कई चुनौतियां भी अा खड़ी हुई हैं। जिसका सामना हर विद्यार्थी और शिक्षा से जुड़े व्यक्ति के समक्ष आती है।
शिक्षा के क्षेत्र में चुनौतियां
शिक्षक-छात्र अनुपात: भारत के लिए यूनेस्को की स्टेट ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट 2021 के अनुसार, स्कूलों में 11.16 लाख शिक्षक पद खाली हैं। इससे साफ जाहिर होता है कि स्कूलों में शिक्षकों की कमी है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन प्लानिंग एंड एडमिनिस्ट्रेशन (NIEPA) द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, शिक्षक अपना लगभग 19% समय अध्यापन के लिए समर्पित करते हैं जबकि उनका शेष समय गैर-शिक्षण प्रशासनिक कार्यों में व्यतीत होता है।
फंड का आवंटन: केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकार को स्कूलों के लिए फंड उपलब्ध कराया जाता है। इस धन की कमी के कारण विद्यालयों की आवश्यकताओं जैसे पुस्तकालयों, प्रयोगशालाओं और अन्य बुनियादी सुविधाओं को विद्यालयों द्वारा उचित रूप से प्रबंधित नहीं किया जा सकता है।
महंगी उच्च शिक्षा: एसोचैम के एक सर्वेक्षण के अनुसार, 2005 से 2011 तक प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा में मुद्रास्फीति में 169% की वृद्धि हुई है। कुछ पाठ्यक्रमों के लिए उच्च शिक्षा आम आदमी की पहुंच से बाहर है।
बुनियादी ढांचे की कमी: खराब स्वच्छता, शौचालयों की कमी, पीने के पानी की सुविधा, बिजली, खेल का मैदान आदि जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी शिक्षा क्षेत्र की प्रमुख खामियों में से एक है।
अध्ययन का पुराना पाठ्यक्रम और व्यावहारिक ज्ञान का अभाव: भारत में पुरानी शिक्षा प्रणाली मुख्य रूप से किताबी शिक्षा पर आधारित थी लेकिन आजकल इंटरनेट और अनुभवात्मक शिक्षण विधियों के उपयोग से बहुत कुछ बदल गया है।
नई शिक्षा नीति
भारत में अब तक तीन शिक्षा नीतियां थीं। पहला वर्ष 1968 में, दूसरा वर्ष 1986 में और तीसरा वर्ष 2020 में। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 का मुख्य उद्देश्य वंचित समूहों को शिक्षा के क्षेत्र में समान अवसर प्रदान करके शामिल करना था। लेकिन राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 प्रकृति में अधिक समग्र है। इसका उद्देश्य कौशल आधारित शिक्षा और छात्रों को रोजगार प्रदान करना है। नई शैक्षिक नीति 2020 द्वारा पिछली शैक्षिक नीतियों की सभी खामियों को दूर किया जा रहा है।
चुनौतियों का समाधान
शिक्षा में आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए बच्चे की प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा को अधिक महत्व दिया जाना चाहिए। भारत सरकार को स्कूलों और शिक्षकों के प्रशिक्षण के बुनियादी ढांचे के निर्माण पर अधिक खर्च करना चाहिए। सभी के लिए सस्ती गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करने के लिए सरकार द्वारा उचित उपाय किए जाने की आवश्यकता है। जैसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2022 के तहत छात्र अपनी रुचि के अनुसार भाषा चुनने के लिए स्वतंत्र हैं। शिक्षा व्यय में वर्ष 1952 से 2014 तक कुल सकल घरेलू उत्पाद का प्रतिशत 0.64 से बढ़कर 4.13 हो गया। इस प्रकार धीरे धीरे शिक्षा के क्षेत्र में कुछ परिवर्तन करके चुनौतियां को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है।
निष्कर्ष
इस प्रकार बढ़ते समय के साथ शिक्षा के क्षेत्र में भी कई बड़े परिवर्तन आना शुरू हो गए हैं। जिसके तहत शिक्षा के क्षेत्र में कई सुविधाएं मिलने के साथ ही कई चुनौतियां भी आकर खड़ी होगी। जिसका समाधान निकालना अत्यंत आवश्यक है। चूंकि शिक्षा से ही समाज का एक सभ्य रूप उजागर होता है और इसी के माध्यम से किसी देश का नागरिक सफल बनने की राह को मजबूत बनाता है इसलिए शिक्षा के स्तर में सुधार करना आवश्यक है। इसके साथ ही इस क्षेत्र की चुनौतियों का समाधान भी सरकारी स्तर पर निकाला जाना चाहिए।