पी.वी सिंधु के जीवन पर निबंध (प्रिय खिलाड़ी)

प्रस्तावना

पी.वी. सिंधु पूरा नाम पुसरला वेंकट सिंधु है।पी.वी. सिंधु एक भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी हैं। जिनका जन्मदिन 5 जुलाई, 1995 को होता है। सिंधु, जिन्हें भारत की सबसे कुशल एथलीटों में से एक माना जाता है, ने ओलंपिक और बीडब्ल्यूएफ सर्किट सहित कई प्रतियोगिताओं में पदक जीते हैं, साथ ही 2019 विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण भी जीता है। वह ओलंपिक खेलों में दो सीधे पदक जीतने वाली भारत की केवल दूसरी व्यक्तिगत एथलीट हैं और बैडमिंटन विश्व चैंपियन का खिताब जीतने वाली पहली और एकमात्र भारतीय है।

पी.वी. सिंधु का परिवारिक जीवन

पुसरला वेंकट सिंधु का जन्म और पालन-पोषण हैदराबाद, भारत में पी. वी. रमना और पी. विजया के घर पर हुआ था। उनके माता-पिता दोनों राष्ट्रीय स्तर के वॉलीबॉल खिलाड़ी रहे हैं। उनके पिता, रमना, को 1986 के सियोल एशियाई खेलों में कांस्य पदक जीतने वाली भारतीय वॉलीबॉल टीम के सदस्य के रूप में योगदान के लिए 2000 में अर्जुन पुरस्कार मिला। सिंधु हैदराबाद, तेलंगाना में रहती हैं। उन्होंने ऑक्सिलियम हाई स्कूल, हैदराबाद और सेंट एन्स कॉलेज फॉर विमेन, हैदराबाद में शिक्षा प्राप्त की थी। हालांकि उनके माता-पिता पेशेवर वॉलीबॉल खेलते थे, उन्होंने इसके बजाय बैडमिंटन को चुना क्योंकि उन्होंने 2001 के ऑल इंग्लैंड ओपन बैडमिंटन चैंपियन पुलेला गोपीचंद की सफलता से प्रेरणा ली थी। अंततः आठ साल की उम्र से बैडमिंटन खेलना शुरू कर दिया था।

पी.वी. सिंधु की उपलब्धियां

2009 में, पीवी सिंधु ने सब-जूनियर एशियन बैडमिंटन चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता और एक साल बाद, उन्होंने ईरान में अंतर्राष्ट्रीय बैडमिंटन चैलेंज में एकल रजत जीता। पीवी सिंधु के करियर ग्राफ के बारे में एक ख़ास बात यह है कि साल-दर-साल वार्षिक कार्यक्रमों में उनका लगातार सुधार होता रहा। 2013 और 2018 के बीच दो कांस्य और दो रजत पदक के बाद, उन्होंने अंततः स्विट्जरलैंड के बासेल में जापान की नोज़ोमी ओकुहारा को 21-7, 21-7 से हराकर 2019 में स्वर्ण पदक जीता। 2014 में अपने पहले राष्ट्रमंडल खेलों (CWG) में, पीवी सिंधु ने महिला एकल में कांस्य पदक जीता। चार साल बाद, गोल्ड कोस्ट में 2018 CWG में, उन्होंने क्रमशः एकल और मिश्रित टीम बैडमिंटन स्पर्धा में रजत और स्वर्ण पदक जीता। पीवी सिंधु ने बर्मिंघम 2022 में अपना पहला स्वर्ण जीतकर एकल में CWG पदकों का एक सेट पूरा किया।

पी.वी. सिंधु का खेल के प्रति संघर्ष

हमारे देश में क्रिकेट के खेल का शुरुआत से ही काफी उत्साह रहा है। लेकिन कुछ महान खिलाड़ियों द्वारा बैडमिंटन, हॉकी, कुश्ती जैसे खेलों में भी भारत की लोकप्रियता को शिखर तक पहुंचाया है। इसी प्रकार बैडमिंटन के क्षेत्र में पीवी सिंधु ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पीवी सिंधु ने बैडमिंटन के क्षेत्र में सुनहरे अक्षरों से नाम लिखवाया है। इसके लिए उन्होंने बचपन में मात्र 9 साल की उम्र से ही रोजाना 56 किलोमीटर की दूरी तय करके बैडमिंटन के अपने ट्रेनिंग ली थी। इसी प्रकार अपने कत्थक मेहनत से उन्होंने न केवल अपना बल्कि पूरी दुनिया का मान बढ़ाया है। हालांकि पीवी सिंधु के माता-पिता भी खेल जगत से जुड़े हुए हैं लेकिन आपकी इस विरासत को चमकाना पीवी सिंधु के लिए एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी रही है। पीवी सिंधु ने मात्र 8 वर्ष की उम्र में ही बैडमिंटन खेलना शुरू कर दिया था। वर्तमान समय में वह गुरु गोपीचंद के मार्गदर्शन में बैडमिंटन के क्षेत्र में दिनोंदिन आगे बढ़ती जा रही हैं।

निष्कर्ष

छोटी सी उम्र में बैडमिंटन खेलने के लिए आगे बढ़ने वाली पीवी सिंधु आज बैडमिंटन की प्रिंसेस पीवी सिंधु के नाम से जाने जाने लगी हैं। आज भारतीय सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में पीवी सिंधु का नाम शीर्ष पर लिखा जाता है। ओलंपिक में बेहतरीन प्रदर्शन करने वाली पीवी सिंधु भारत का नाम सदा रोशन करती रही हैं। भारत के खेल जगत में पीवी सिंधु द्वारा दिया गया योगदान सदा देश पर ऋणी रहेगा।

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