प्रस्तावना: पर्यावरण का अर्थ है , प्रकृति , पेड़ -पौधे , वनस्पति ,पशु -पक्षी, मनुष्य और हम सब प्राणी। पर्यावरण नहीं तो हम सभी का कोई अस्तित्व नहीं है। मनुष्य के लिए पर्यावरण महत्वपूर्ण है। औद्योगीकरण और तकनीकी उन्नति तो मनुष्य ने खूब की परन्तु प्रकृति के महत्व को समझने में असमर्थ रहा है। ज़्यादातर लोग इसे समझकर भी इसकी अवहेलना कर रहे है। फैक्ट्रियों और इमारतों के निर्माण के लिए कई वर्षो से वृक्ष काटे जा रहे है। वनो की अंधाधुंध कटाई की जा रही है , ताकि बड़े कल कारखानों , कार्यालय , स्कूल इत्यादि का निर्माण हो सके । हम यह भूल रहे है कि अगर हम बिना सोचे समझे प्रकृति को नुकसान पहुंचाएंगे , तब प्रकृति और पर्यावरण जीवित नहीं रह पायेगा। इन सब गतिविधियों की वजह से आज पर्यावरण का संतुलन बिगड़ रहा है । ऐसे ही चलता रहा तो इसके भयंकर परिणाम देखने को मिलेंगे।
सभी प्राणी , पेड़ , पौधे और सभी तरह की वनस्पति पर निर्भर है। हमे पेड़ पौधों से फल , सब्ज़ी , अनाज इत्यादि प्राप्त होते है। पेड़ो से हमे अनगिनत फायदे मिलते है। पेड़ पौधों से वातावरण में ऑक्सीजन का निर्माण होता है। प्रकाश संश्लेषण को अंग्रेजी में फोटोसिंथेसिस कहते है। प्रकाश संश्लेषण में पेड़ -पौधे अपना भोजन खुद बनाते है। इसमें कार्बन डाइऑक्साइड , पानी और सूर्य के किरणों की ज़रूरत होती है। कार्बन डाइऑक्साइड मनुष्य छोड़ते है जिसे पेड़- पौधे अपने प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया में उसका उपयोग करते है।
प्रकाश संश्लेषण की सहायता से वातावरण में ऑक्सीजन बनता है। वातावरण में मौजूद ऑक्सीजन के सहारे मनुष्य और अन्य प्राणी जीवित है। ऑक्सीजन के बिना जिन्दा रहना नामुमकिन है। अगर पेड़ पौधे नहीं होंगे तो ऑक्सीजन गैस भी नहीं होगा। अतः पर्यावरण का संरक्षण करना अत्यंत ज़रूरी है। अन्य प्राणी जैसे गाय , भैंस , बकरी , हिरण इत्यादि पशु वनस्पति खाकर जीवित है। इसलिए मनुष्य को समझना होगा कि पर्यावरण को सुरक्षित रखना कितना आवश्यक है।
मनुष्य स्वार्थी बनकर उन्नति के चक्कर में स्वंग अपने पाँव पर कुल्हाड़ी मार रहा है। औद्योगीकरण और प्रगति के नशे में वह पर्यावरण के संतुलन को बिगाड़ रहा है। जनसंख्या तेज़ी से बढ़ रही है। लोगो को रहने के लिए घर इत्यादि चाहिए। जमीन पाने के लिए वनो को धरल्ले से काटा जा रहा है। वृक्षारोपण किया जा रहा है मगर फिर भी वन कटाव अत्यधिक बढ़ गया है। वनो को साफ़ करके किसान कृषि कर रहा है। अगर वन नहीं होंगे तो पशु पक्षी कहाँ रहेंगे। उनका घर तो वन है। कई प्रकार की कीमती लकड़ी प्राप्त करने के लिए वृक्षों और वनो की कटाई हो रही है। पर्यावरण को इतनी चोट पहुँच रही है कि लगातार मानव जाति को प्राकृतिक आपदाओं का शिकार होना पड़ रहा है। सभी जलशयों और नदियों के जल को साफ़ और संरक्षित रखना भी मनुष्य की जिम्मेदारी है।
जिस प्रकार वृक्षों की कटाई हो रही है , मनुष्य के समक्ष कई समस्याएं उत्पन्न हो गयी है। आये दिन कल कारखानों और फैक्टरियों से निकलता हुआ धुंआ वातावरण को प्रदूषित कर रहा है। इस प्रदूषित वातावरण में मनुष्य को कई प्रकार की बीमारियां हो रही है। सांस लेने में तकलीफ और फेफड़ो से संबंधित बीमारियों से लोग ग्रसित है । हम सभी को मिलकर वृक्षारोपण करने की ज़रूरत है। जितना हम वृक्ष लगाएंगे , उतना ही पर्यावरण को हम बचा पाएंगे।
अगर वन नहीं होंगे तो तब हम भी जीवित नहीं रह पाएंगे। कल कारखानों से निकलता हुआ कचरा , नदियों में प्रवाहित किया जा रहा है। इससे नदियों का जल प्रदूषित हो रहा है। प्रदूषण को नियंत्रित करना ज़रूरी है। सरकार ने प्रदूषण को रोकने के लिए कई कदम उठाये हैं। वन खत्म होंगे तो भूमि की उपजाऊ शक्ति खत्म हो जायेगी।
भूमि कटाव को रोकना और बाढ़ पर अंकुश लगाने का कार्य पर्यावरण करता है। अगर वन नहीं होंगे , तो धरती पर वर्षा नहीं होगी। वर्षा नहीं होगा तो सूखा / अकाल पड़ेगा। जब पानी नहीं होगा , तो पशु -पक्षी भी जीवित नहीं रहेंगे ।
प्रकृति में वायुमंडल एक अहम हिस्सा है। प्रदूषण से वायुमंडल निरंतर प्रदूषित होने लगा है | अगर ऐसे ही चलता रहा , तो प्रकृति पर कितना भयावह असर पड़ेगा। पर्यावरण की रक्षा करना मनुष्य का परम कर्त्तव्य है। जैसे -जैसे उद्योगों का विकास हो रहा है , प्रकृति और पर्यावरण अशुद्ध हो गया है। प्रदूषण के कारण प्राकृतिक संसाधनों पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
बगीचों और वनो को संग्रह करके रखने की ज़रूरत है। वन महोत्सव जैसे कार्यक्रम आयोजित करके लोगो को जागरूक करने की ज़रूरत है। जिस प्रकार देश और दुनिया की जनसंख्या बढ़ रही है , उनके रहने के लिए जमीन कम पड़ रही है। इससे वनो और पर्यावरण को नष्ट करके घरो का निर्माण किया जा रहा है। लोग उन्नति करने हेतु और सुख सुविधा के साधनो को पाने के लिए फैक्टरियां डाल रहे है। इससे उत्पादन में तेज़ी आ रही है। हम इतने स्वार्थी नहीं हो सकते कि हम अपने सुख के लिए पर्यावरण को समाप्त कर दे। लगातार प्रकृति हमे चेतावनी दे रही है , इसे हमे गंभीरता और जिम्मेदारी से लेना होगा।
निष्कर्ष
मनुष्य को जीने के लिए शुद्ध जल , स्वास्थ्यवर्धक आहार और शुद्ध वायु की ज़रूरत है । अगर हम यह सब कुछ पाना चाहते है तो हमे पर्यावरण को सहज कर रखना होगा। सीमित मात्रा में अपने दैनिक गतिविधियों को करना होगा ताकि प्रदूषण कम हो। प्रदूषण कम होगा तो सभी जीव जंतु और पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचेगा। आज समस्त दुनिया पर्यावरण को लेकर चिंतित और परेशान है। अगर हम सब अभी सचेत नहीं हुए , तब प्रकृति अपना रौद्र रूप धारण कर लेगा और सब कुछ खत्म हो जाएगा। हम सभी को अपने दायित्व को समझकर , प्रकृति के हित में कार्य करने होंगे। जब प्रकृति सुन्दर रहेगी , तब हमारे चारो ओर हरियाली होगी। अगर प्रकृति सुरक्षित है , तब हम और यह पृथ्वी भी सुरक्षित है।