पर्वों का बदलता स्वरूप पर निबंध

त्यौहार व पर्वों का बदलता स्वरूप पर निबंध

त्यौहार हमारे जीवन में डेढ़ सारी खुशियां लाते है। चारो तरफ रौनक छा जाती है। पहले के ज़माने में और आज के ज़माने में पर्वो का बदलता स्वरुप हमे देखने को मिल रहा है। त्यौहार तो एक ही है बल्कि मनाने का अंदाज़ बदल गया है।

दिवाली खुशियों और दीपो को शुभ त्यौहार है। पहले के ज़माने में दिवाली आने के एक डेढ़ महीने पहले से ही जमकर तैयारियां लोग करते थे। घरो की साफ़ सफाई से लेकर घरो को सजाना और अपने परिजनों को क्या तोफे देंगे, हर चीज़े के फैसले और तैयारी शुरू कर दी जाती थी। अब ज़माना बदल गया है। कुछ लोग अपने काम को ज़्यादा महत्व देते है कि वह दिवाली के दो दिन पहले ही तैयारी शुरू कर पाते है। आजकल लोग मोबाइल और सोशल मीडिया में ज़्यादा व्यस्त रहते है। लोग दिवाली की शुभकामनाएं दोस्तों से मिलकर नहीं बल्कि सोशल मीडिया पर मैसेज भेजकर करते है।

ज़्यादातर लोग त्योहारों की तैयारी स्वंग ना करके, अन्य घर के सेवको से करवाते है। पहले संयुक्त परिवार एक साथ मिलकर दिवाली मनाते थे मगर आज ऐसा नहीं है। लोग अपने निजी उन्नति के लिए अपने परिवारों से अलग रहते है। आजकल के परिवार बेहद छोटे होते जा रहे है, जिसकी वजह से त्योहारों के रंग थोड़े फीके पड़ते हुए नज़र आ रहे है।

पहले जैसे होली खेली जाती थी, आज होली के वह रंग पहले की तरह रंगीन नहीं होते है। पहले के समय में होली आने के कुछ दिन पहले से ही बच्चे से लेकर बड़े पिचकारी में रंग भरकर गली-मोहल्ले में आने वाले हर एक व्यक्ति पर रंग फेक देते थे। आजकल लोगो के पास समय की कमी हो गयी है, उनके पास इतना वक़्त नहीं है कि वह इतने दिनों तक होली मना सके।

युवाओ में पहले की तुलना में होली की मस्ती थोड़ी कम नज़र आती है। होली की मुबारक बात आजकल लोग व्हाट्सप्प मैसेज द्वारा देना ज़्यादा पसंद करते है। कहीं ना कहीं वह उत्साह की कमी नज़र आती है। रक्षाबंधन का उत्सव पहले बड़े धूम धाम से मनाया जाता था।  गाँव और शहरों में लड़कियाँ और महिलाएँ ख़ास तैयारी करती थी। महिलाएं गाँव में झूला झूलने का आनंद उठाने में कभी पीछे नहीं रहती थी। आजकल महिलाएँ झूला झूलने से ज़्यादा मोबाइल और इंटरनेट में व्यस्त रहना पसंद करती है।

आज विडंबना है कि समय के साथ लोग शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण त्योहारों को मनाना भूल गए है। त्योहारों के नियमो का पालन जिस प्रकार पहले किया जाता था, उस तरह आज नहीं होता है। आजकल लोग कहते हुए पाए जाते है, कि होली तो कल है, फिर दो दिन की छुट्टी क्यों। यह बातें कहीं ना कहीं उदास करने वाली है। होली के पहले दिन होलिका दहन होता है, जो सही माईने में होली को दर्शाती है। यह एक परंपरा है जो बरसो से चली आ रही है, लेकिन बहुत से शहरों में लोग इसे भूल गए है। आजकल व्यस्त लोग त्यौहार को एक कार्य और औपचारिक रूप से मनाते है। अगर ऐसे ही चलता रहा तो आने वाली पीढ़ी त्योहारों के माईने नहीं समझेंगे।

जो भाई दूसरे राज्य और देश में काम करने के लिए जाते है, उन्हें रक्षाबंधन में अपने बहनो के पास जाने का वक़्त नहीं मिलता है। वह वीडियो चैट के ज़रिये रस्मो को पूरा करते है। रस्मे पूरी हो जाती है, लेकिन त्योहारों का असली मज़ा परिवार के साथ रहने में और एक साथ मनाने में है।

त्योहारों का वक़्त कम होता है, थोड़े समय के लिए आता है और दिलो में खुशियां भर देता है। उसी को परिवार संजोय कर रखता है कि अगले वर्ष फिर उसी उत्साह के साथ लोग त्यौहार को मनाएंगे।

पहले त्योहारों में फोटो खींचने को इतनी प्राथमिकता नहीं दी जाती थी। आज मोबाइल कमेरो ने इस पद्धति को आसान बना दिया है।  छोटे से बड़े उत्सव में फोटो खींचना आजकल का फैशन बन गया है। तुरंत इन फोटोज को सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया जाता  है। इसमें एक अच्छी बात है कि हम इन ख़ास पलों को हमेशा के लिए कैद कर लेते है। सोशल मीडिया पर अपने मित्रों और परिजनों के साथ साझा करते है।

कुछ लोग त्योहारों को आधुनिकरण के कारण सही तरीके से नहीं मनाते है। त्योहारों को सही तरीके से और मन से अगर हम निभाते है, तो हम अपने परिवार के सदस्यों के करीब रह सकते है। त्यौहार वह माध्यम होता है, जहाँ बरसो से लोग अपने पुराने गिले शिकवे दूर कर, एक दूसरे को फिर से गले लगा लेते है। लेकिन आधुनिक युग में पर्वो का महत्व खोता हुआ दिख रहा है।

आजकल तकरीबन सभी की आर्थिक स्थिति बेहतर हुयी है। लोगो के रहन सहन में काफी परिवर्तन आया है। पहले जन्मदिन पर लोग हलवा अथवा खीर बनाकर भगवान् को भोग लगाते थे, मगर अब लोग दुकानों से खरीदकर केक काटना ज़्यादा पसंद करते है। पहले महिलाएं घरो में ज़्यादा रहती थी लेकिन आज महिलाएं दफ्तर जा रही है। इसी कारण उन्हें इतने पकवान बनाने का वक़्त नहीं मिलता है। शहरीकरण होने के कारण लोग होली, दिवाली, तीज जैसे उत्सव को किटी पार्टी के रूप में भी मनाते है। त्योहारों में परिवर्तन तो हो रहे है, लेकिन हमे अपनी परम्पराओ और संस्कृति को इसकी आड़ में भूलना नहीं है।

निष्कर्ष

त्योहारों को पारम्परिक ढंग से निभाना यह हमारा कर्त्तव्य है। हमारी संस्कृति को त्योहारों के माध्यम से सहज कर रखना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है। तरक्की और आधुनिकरण के चक्कर में हम त्योहारों को प्राथमिकता देना भूल रहे है। उसे महज एक छुट्टी की तरह बिताया जाता है जो कि दुःख की बात है। ऐसी चिंताओं में सुधार होना आवश्यक है। बदलते हुए वक़्त के साथ त्योहारों की अस्मिता बनाये रखना हमारा कर्त्तव्य है। त्यौहार हमारे हिन्दुस्तान की पहचान है और इसकी सादगी को बनाये रखना हमारा दायित्व है।

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