आपदा प्रबंधन पर निबंध

3.8/5 - (5 votes)

आपदा प्रबंधन निबंध

प्राकृतिक आपदा जो मानव जीवन से लेकर, कई करोड़ो की संपत्ति का नुकसान करते है। इस क्षति से उभर पाना सरकार और प्रशासन के लिए मुश्किलों भरा होता है। प्राकृतिक आपदाओं को रोकना और समाप्त तो नहीं किया जा सकता है, मगर इससे होने वाले भयंकर हानि को रोका जा जा सकता है। लोगो और जन जीवन की प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा करने के लिए आपदा प्रबंधन ज़रूरी होता है। पर्यावरण को भयंकर नुकसान प्राकृतिक आपदाएं पहुंचाती है। यह घटनाएं इतनी भयावाह और विनाशकारी होते है कि कभी ना ख़त्म होने वाले चोट दे जाते है।

प्राकृतिक आपदाएं जैसे: सुनामी, भूकंप, बाढ़, सूखा-अकाल, जंगलो में भीषण आग के कारण कई सम्पतियों का नुकसान होता है।  सड़के बुरी तरह से टूट जाते है, पुलों का टूटना, सड़क हादसे, बड़ी बड़ी इमारतों का ढह जाना इत्यादि घटनाएं आपदाओं के कारण घटती है। इससे पर्यावरण और ज़्यादा प्रदूषित होता है। आपदाओं के असर को कम करने और बचाने के ज़रूरी तरीको को आपदा प्रबंधन कहा जाता है। इसके लिए हम सबको मिलकर प्रयत्न करना होगा। आपदाओं के नुकसान का अच्छी तरह से मूल्यांकन करना, संचार माध्यमों को फिर से ठीक करना, परिवहन और बचाव, सुचारू रूप से भोजन प्रबंध और पानी सेवन के प्रबंध, बिजली जैसी शक्ति को प्रभावित इलाको में फिर से पहुंचाना इत्यादि कार्य शामिल है।

आपदा आने से पूर्व सभी लोगो को चेतावनी दी जाती है।  उसके अनुसार बचाव कार्य के लिए रणनीति भी बनायी जाती है।  आपदा से पीड़ित लोगो को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाना और उनकी सहायता  करना , आपदा प्रबंधन कार्य के अंतर्गत आता है। किसी भी तरह के जोखिमों  को पहले से ही  भाप लेना , आपदा प्रबंधन का परम कर्त्तव्य होता है। प्राकृतिक आपदाएं देश की उन्नति के लिए बाधक साबित होती है।

प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए वर्ष 2005  में देश की सरकार ने आपदा प्रबंधन अधिनियम जारी किया। सरकार ने आपदाओं से रक्षा करने के लिए नेशनल   इंस्टिट्यूट ऑफ़  डिजास्टर   मैनेजमेंट  की स्थापना की  है। सरकार  आपदा प्रबंधन के तरीको के विषय   में स्थानीय लोगो को जागरूक  कर रहा है। इस मिशन  में कई युवा  संगठन जैसे एनसीसी, NRSC , ICMR  इत्यादि अपना जरुरी दायित्व  निभा रहे  है। सरकार इन आपदाओं  के असर को कम करने के उद्देश्य से फंड इत्यादि का आयोजन कर रहे है।  अलग अलग संस्थान भी इससे जुड़े हुए है।

बाढ़ तब आता है जब जल स्रोत अत्यधिक बढ़ जाए , बर्फ का अधिक पिघलना भी बाढ़ का कारण है। नदियों में पानी का स्तर बढ़ता है जिससे बाढ़ आती है और कई क्षेत्रों को बुरी तरीके से प्रभावित करती है। कई लोग डूबकर मर जाते है और कई प्रकार की जानलेवा बीमारियां  फैलती है। हालत इतने खराब हो जाते है कि लोगो को पीने का पानी भी नसीब नहीं हो पाता है। जान माल का भयंकर नुकसान होता है। बाढ़ के पानी से मिटटी की उर्वरक शक्ति ख़त्म हो जाती है। बाढ़ फसलों को नुकसान पहुंचाती  है और उपजाऊ मिटटी अपने संग बहाकर  ले जाती   है।

बाढ़ को रोकने के लिए वृक्षारोपण करना अनिवार्य है। अच्छी गुणवत्ता के बाँध को बनाना ज़रूरी है , इससे बाढ़ की स्थिति में संभावित  क्षेत्रों को जलमग्न होने से रोका जा सकता  है। बाँध  में जमा जल नदियों तक पहुंचकर तबाही मचाता है। बाढ़ को रोकने के लिए उचित  उपाय किये जाए तो इसे रोका जा सकता है। बाढ़ से प्रभावित हो रहे इलाको को पहचानकर उसे सूची में शामिल करना ज़रूरी है , ताकि उचित प्रबंध किये जा सके।

बाढ़ का पहले से ही अनुमान किया जाता है। वैज्ञानिक  कई माप यंत्रो की मदद से बाढ़ का पता लगा लेते है | संभावित क्षेत्रों को  प्रशासनों द्वारा  पहले से चेतावनी दी जाती  है।  लोगो को उन क्षेत्रों से उनके ज़रूरी सामान इत्यादि समेत सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जाता है। बाढ़ की चेतावनी संगठन जैसे सेंट्रल वाटर कमीशन और सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण विभागों के माध्यम से दी  जाती है।

घरो को बाढ़ जैसे क्षेत्रों से दूर बनाने की ज़रूरत है। जब लोग सुरक्षित स्थानों पर जा रहे है तो ज़रूरी सामान  अपने साथ रखे।  बिजली के तारो को बिलकुल ना छुए। पीड़ित लोगो को अस्पताल पहुंचाने का कार्य आपदा प्रबंधक से जुड़े लोग करते है।

सूखा भी एक भयानक प्राकृतिक विपदा है , जो कम वर्षा के कारण होती है।  लोगो को पीने के लिए जल नहीं मिलता है।  तालाब और जलाशय के पानी सुख जाते है और लोगो में हाहाकार मच जाता है। किसानो के खेत सूखे के कारण बर्बाद हो जाते है। सूखे का बुरा प्रभाव खेतो पर पड़ता है। सबसे अधिक गरीब मज़दूर और किसानो के परिवार इस आपदा से प्रभावित होते है। भूमिगत जल स्तर कम हो जाता है।

सूखे के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए वर्षा का रोज़ाना उन क्षेत्रों में एक रिकॉर्ड रखना ज़रूरत है , जहाँ अकाल जैसी दिक्कतें होती है ।  उन क्षेत्रों की जनसंख्या क्या है और नदियों , तालाबों में जल  लोगो की मांग के अनुसार है या नहीं। अगर लोग ज़्यादा है और जल कम तो जल की बचत करनी होगी।  जल संरक्षण के उपाय करने होंगे। पानी को व्यर्थ में ना बहाकर सोच समझकर खर्च करना चाहिए। कृषि में सिंचाई के लिए नए तकनीकों को अपनाना चाहिए ताकि जल का सही उपयोग हो। ऐसे फसलों को लगाना चाहिए जहाँ जल का कम मात्रा में इस्तेमाल हो। रेन वाटर हार्वेस्टिंग प्रक्रिया  यानी जब भी वर्षा हो उसके जल को एक जगह पर एकत्र करके उसका उपयोग किया जाए।

भूकंप पृथ्वी की सतह के अंदर विभिन्न टेकटोनिक प्लेटो के खिसकने से भूकंप  जैसी समस्याएं उत्पन्न होती है। भूकंप किसी भी समय आ सकता है और यह सतह पर कम्पन उतपन्न करता है जिससे बड़ी बड़ी इमारतें गिर जाती है | संचार सुविधा , बिजली सुविधा , रेलमार्ग इत्यादि ठप हो जाते है। ।  लोगो की मौत हो जाती है। संपत्ति का भारी नुकसान होता है। भूकंप के झटको को यन्त्र द्वारा मापा जा सकता है। भूकंप की तीव्रता को रिक्टर स्केल द्वारा मापा जा सकता है। जमीन के अंदर चट्टानें अचानक  खिसकने से ऐसी भयानक आपदा जन्म लेती है। अगर भूकंप तीन से पांच रिक्टर स्केल के भीतर आये तो सिर्फ दरार उतपन्न होती है। सात और आठ के ऊपर सारी इमारतें ढह जाती है।

भूकंप से बचने के लिए इमारतों की आकृति भूकंप प्रभावित क्षेत्रों में ऐसी बनाई जाती है कि वह इन आपदाओं को सहन कर  सके। इंडियन स्टैण्डर्ड ब्यूरो ने इमारतों के स्थापना को ध्यान में रखकर एक डिज़ाइन का निर्माण किया है। नगर निगम अधिकारी भी इस प्रकार के सुरक्षा कायदो पर ध्यान रखते है। इसकी सूचना सभी घरो के बिल्डर्स को दी जाती है।

भूकंप के वक़्त खुले जगह पर जाना चाहिए। लिफ्ट का उपयोग नहीं करना चाहिए। ऐसे मज़बूत जगह के नीचे शरण ले , जिससे आपको चोट ना लगे। यदि आप रास्ते में है , तो कार से नीचे उतर जाए और पेड़ो , बिजली के पोस्ट से दूरी बनाये रखे। भूकंप के वक़्त अपने ज़रूरी समान लेकर बाहर आ जाए , देर ना करे। किसी भी बड़े इमारत के आगे खड़े न हो और दीवारों के गिरने से बचे।

सुनामी समुद्र तल के नीचे तेज़ कम्पन को कहा जाता है। यह छह रिक्टर स्केल के ऊपर जाती है। भूस्खलन और ज्वालामुखी विस्फोट के कारण सुनामी आती है। सुनामी आने से पूर्व संभावित जगहों पर लोगो को सूचना दी जाती है। लोगो को सुरक्षित स्थानों पर ले जाया  जाता है।  जिस प्रकार लोग बाढ़ आने पर ज़रूरी चीज़ो के साथ सुरक्षित स्थानों पर चले जाते है , ठीक सुनामी में भी इन्ही सब नियमो का पालन करके आपदा प्रबंधन टीम लोगो की रक्षा करते है।

आग एक भयानक प्राकृतिक विपदा है। इस आपदा में बाकी प्राकृतिक  आपदाओं की तुलना में लोगो की अधिक मौत होती है। आग जंगल में रहने वाले पशु पक्षियों के लिए भी खतरा है। आग आसानी से फैल जाती है। आग को  बड़े पैमाने पर रोकना इतना आसान नहीं है।

नगरों में जब आग लगती है तो चारो ओर बस्तियां , इमारतें और  कारखाने झुलस कर खत्म हो जाते है। ज़्यादातर लोगो की जान दम घुटने से ख़त्म हो जाती है। बहुत सारे लोग आग की लपटों  में ख़त्म हो जाते है।

आग कई लापरवाहियों के कारण लग सकती है। घर में ज़्यादातर आग गैस स्टोव और केरोसिन स्टोव से लगती है। बिजली के तारो से शार्ट सर्किट के कारण आग भयावह तरीके से फैलती है। आग से बचने के लिए सावधानी  और सतर्कता की ज़रूरत है। जिन चीज़ों से आग फैलती है , उन्हें सावधानी से इस्तेमाल करे।  घर पर फायर एक्सटीन्गुइशार अवश्य रखे।  इसमें कार्बन डाइऑक्साइड होता है जो आग बुझाने में सहायता करता है।

घर पर बिजली और गैस संबंधित चीज़ों का सावधानी से उपयोग करे।  घर पर बच्चो को भी आग से बचने के नियमो को समझाए और माचिस इत्यादि बच्चो के समीप ना रखे। घर पर एक ही सर्किट में बहुत सारे प्लग लगाकर हरगिज़ इस्तेमाल ना करे। आग लगने पर आग बुझाने  वाले दल को फ़ोन करे और मदद के लिए बुलाये।

निष्कर्ष

प्राकृतिक  आपदाओं से बचना मुश्किल है। इसके लिए आपदा प्रबंधन के संगठन पहले से ही तैयारी करते है और सतर्क हो जाते है। अभी भी बहुत सारे नयी तकनीकों की ज़रूरत है जिससे की इसके भयानक प्रभाव को कम किया जाए।

Leave a Comment