सादा जीवन और उच्च विचार

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सादा जीवन और उच्च विचार पर निबन्ध
[Essay On Simple Living And High Thinking]

सादा जीवन और उच्च विचार एक सूक्ति है। इसका सीधा अर्थ व्यक्तितत्व तथा चरित्र से जुड़ता है। कुछ लोग आत्मिक रूप से महान होते है। हम उनके विचारों तथा कामों से इतना प्रभावित होते है कि उसका वर्णन करना भी कठिन है। हमारे सामने समस्या तब आती है। जब हम ऐसे व्यक्ति के व्यक्तित्व से प्रभावित होते है। जिसका साक्षात्कार होते ही हमारे मनोगजत में बनी कल्पनात्मक तस्वीर खंडित हो जाती है। कारण यह होता है कि ऐसे व्यक्तियों का जीवन साधारण नही, असाधारण होता है। ऐसे व्यक्तियों के जीवन मे न तो कहीं आडम्बर होता है, न कृत्रिमता और न ही किसी प्रकार का फैशन अथवा अहंकार। ऐसे महासपुरुषो का व्यक्तिगत जीवन नितान्त सादा, सरल और विनीत होता है। उनके ब्रह्मा व्यकितत्व को देखकर, तो हम उनके विषय मे ठीक-ठीक अनुमान ही नही लगा सकते है। सच भी यही है कि चरित्र महान है। चरित्र ऐसा धन है, जिसकी तुलना संसार की किसी भी अमूल्य सम्पदा से नही की जा सकती। यदि आपका किसी ऐसे व्यक्ति से परिचय है, जो धनाढ्य है और अपार सम्पति का मालिक है, किंतु चरित्र की दृष्टि से पतित तथा भृष्ट है, तो उसका समाज मे आदर नहीं होगा। इसके दूसरी और यदि एक व्यक्ति निर्धन है, लेकिन सद्गुणो का धनी है, तो वह अपने सद्गुणों के कारण जनता-जनार्दन के लिए आदर तथा श्रदा का पात्र बन जायेगा। हमारे जीवन के कार्य-कलाप या हमारा निजी कृतित्व समाज को जो कुछ देता है।

उससे समाज को नैतिक जीवन-मूल्यों की उपलब्धि होती है। लोकमंगल की भावना से भरा व्यक्ति कालजयी हो जाता है और अमर हो जाता है। समाज के लिए वह एक बन जाता है। समाज उसे युग द्रष्टा ही नही, युग स्रष्टा के रूप में मानने लगता है। यही करन्हि की आज भी हम महात्मा बुद्ध, गुरुनानक, कबीर, तुलसीदास, सूरदास, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, स्वामी रामतीर्थ तथा विवेकानंद आदि महान चरित्रों का स्मरण करते नहीं है। हमने इन महामानवों को अपने जीवन का आदर्श बना लिया है। इन महामानवो ने अपने सादा जीवन तथा उच्च विचारों से समाज का ह्रदय जीत कर विशव समाज के नाम कमाया है। इन व्यक्तयों के जीवन का प्रमुख गुण सादगी रहा है। विलासिता तथा वैभव से कोसों दूर रहकर इन लोंगो ने समाज को जीवन-दर्शन की ज्योति किरण दी है। यह तो प्रसिद्ध है कि सादा जीवन तथा उच्च विचारों में विशवास रखने बाले सज्जन व्यक्ति सोने के प्याले से भरी मदिरा को भी घृणा की दृष्टि से देखते है। उन्हें कोई भी प्रलोभन उनके आदर्शों से विचलित नही कर सकता। सज्जन पुरुषों के जीवन का धन है। मान-मर्यादा और गौरव।

सदाचारी व्यक्ति को चारित्रिक गुणो की मंजूषा कहा जाता है। उसका सादा जीवन जीना तथा  उच्चकोटि के विचार वा विशवास रखना-उसकी सादगी, सहनशीलता, संयम संतोष, कर्तव्य परायणता, नम्रता तथा परोपकार की भावना को बढ़ावा देता है। सच्चरित्र व्यक्ति ही सादा जीवन तथा उच्च विचार में विशवास रखता है। ऊँचे विचार ही उसके आदर्श होते है। मन का चांचलया, आलस तथा प्रमाद उसके पास फटकने नहीं पाते।

“सादा जीवन तथा उच्च विचार वाला व्यक्ति समाज और देश की प्रगति का एकमात्र आधार होता है। महात्मा गांधी जी का कथन है। “सदाचार में थोड़ी सी चूक हो जाने पर भी मुझे रोना आ जाती है”। इस कथन के अर्थ को समझने पर स्पष्ट हो जाता है कि सदाचारी तथा चरित्रवान व्यक्ति कितने आदर्श वाले होते है। सदाचार रूपी धन ही आदर्श व्यक्ति के जीवन का सर्वस्व होता है। एक सूक्ति में कहा भी गया कि “धन गयाकुछ-भी नही गया “स्वास्थ गया” तो कुछ गया और यदि “चरित्र गया” तो सब कुछ गया।

उच्च विचार तथा सादा जीवन मे विशवास रखने वाले सज्जनों का चरित्र सब के वित्त को आनन्दित करता है। भर्तुहरी ने कहा है “दान को गुप्त रखना, घर आये का आदर सत्कार करना, दुसरो का भला करके चुप रहना, दुसरो के लिए किए गए उपकार को सबको सामने न कहना धनाढ्य होकर अहंकार न करना, पर निंदा से बचना ये सारे गुण महापुरुषों के स्वभाव में ही होते है, उनका ऐसा व्यक्तित्व ही सच्चरित्रता है।”

यह कहना कोई अत्युक्ति नहीँ की मानवतामात्र के लिए सहनशीलता, प्रेम तथा उदारता से किया गया प्रतेक कार्य लोक मंगलकारी होता है। सच्चरित्रवान व्यक्ति दुसरो के अधकरो को छिनता नही है। सदाचार प्रतिष्ठा को बढाने वाला होता है। सच्चरित्रवान सबसे बड़ा वशीकरण मंत्र है। शील और सदाचार से प्रतिष्ठा बढ़ती है। सच्चरित्रता से उदारता, मृदु भाषा तथा सत्य का ज्ञान सहज ही हो जाता है।

यह कहना कोई अत्यधिक नहीं होगी कि सच्चरित्रता अथवा सादा जीवन और उच्च विचारों में विशवास रखने वाले व्यक्ति के मंगलमय जीवन का मुख्य विधायक सच्चरित्रता है।

आज के इस वेज्ञानिक युग मे समाज का जीवन-दर्शन था जीवन-स्तर बदलता जा रहा है। हमारे जीवन-स्तर में कृत्रिमता ने घर कर लिया है। हम आंतरिक व्यक्तित्व की और उतना ध्यान नहीं देते, जितना कि बाह्य व्यक्तित्व की और देते है। हम लोगो को यह दिखावा करने का प्रयास करते है कि उनको नजर में हम महान दिखे। यह सब खोखला अहम होता है। अच्छा तो यही है कि हम इस प्रकार की क्षुद्रता से बचकर जीवन मे सरलता तथा सादगी को स्थान दे जिससे हमारा चिंतन उच्च विचारों की मंशा बन जाये।

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