औद्योगीकरण का पर्यावरण पर प्रभाव निबंध, लेख

निबंध: औद्योगीकरण का पर्यावरण पर प्रभाव

प्रस्तावना: हम, पशु -पक्षी, पेड़- पौधे , वातावरण और यह पूरी पृथ्वी , पर्यावरण का निर्माण करते है। मनुष्य सिर्फ उन्नति के दौड़ में आगे भाग रहा है। मनुष्य की चिंतन क्षमता का समय के साथ अत्यधिक विकास हुआ है।  उसने विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र में काफी प्रगति कर ली है । मनुष्य ने अपने जीवन को आरामदायक और सुविधाजनक बनाने के लिए कई तरह के आविष्कार किये। मनुष्य ने सफलताओ की सीढ़ियां चढ़ी। आज   मनुष्य ने औद्योगीकरण के क्षेत्र में बड़ी उन्नति हासिल  की है।  मनुष्य ने वस्तु और सामग्रियों  के  निर्माण के लिए लाखो कल कारखाने स्थापित किये है।

कल कारखानों से लगातार निकलता हुआ धुंआ वातावरण को प्रदूषित कर रहा है। वृक्ष तेज़ी से काटे जा रहे है , ताकि मनुष्य अपना घर बना सके। वृक्ष को मनुष्य अंधाधुंध तरीके से अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए काट रहा है। निरंतर वृक्षों को काटने का मतलब पर्यावरण को समाप्त करना होता है। औद्योगीकरण के दौर में मनुष्य ने इतना अधिक विकास कर लिया है कि वह भूल गया है कि इसके कितने भीषण परिणाम हो सकते है। वनोन्मूलन अथवा वृक्षों की कटाई एक गंभीर समस्या है।

वृक्ष से वनो का निर्माण होता है।  वृक्ष से हमे लकड़ी , फल , औषधि कई प्रकार की चीज़ें  मिलती है।  वन पशु पक्षियों का घर है।  अगर मनुष्य वनो को काटेंगे तो  बेजुबान पशु पक्षी कहाँ जाएंगे। वन उनका प्राकृतिक घर है।  मानव ने वैज्ञानिक क्षेत्र में उन्नति तो कर ली पर वह मानवता से दूर चला जा रहा है।  उसे यह नहीं भूलना चाहिए , कि पर्यावरण ने उसे सब कुछ दिया है।  अगर वह उसे नुकसान पहुंचाता  है , तो इसका खामियाज़ा उसे भुगतना पड़ेगा। पर्यावरण को आहात करने के कारण हमे कई प्राकृतिक आपदाओं को सहन करना पड़ता है।  भूकंप , बाढ़ , सूखा जैसे परिस्थिति प्रत्येक वर्ष मनुष्य को झेलनी पड़ती है। पर्यावरण को बिगाड़ने और उन्हें दूषित करने का श्रेय मनुष्य की औद्योगिकरण को जाता है।  उन्नति के नाम पर हम अपने पर्यावरण की भयंकर दशा कर रहे है जिसके कारण वायुमंडल तीव्र गति से प्रभावित हो रहा है।

औद्योगीकरण के कारण , वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा अधिक बढ़ रही है। कई प्रकार के गैस जैसे मीथेन इत्यादि  पृथ्वी पर अत्यधिक गर्मी विकसित करने के लिए जिम्मेदार है। इसे अंग्रेजी में ग्रीन हाउस एफेक्ट कहा जाता है। ग्रीन हाउस इफ़ेक्ट अच्छा होता है लेकिन अत्यधिक ग्रीन हाउस गैसेस की वजह से पृथ्वी गर्म हो रहा है। अत्यधिक ग्रीन हाउस गैस पृथ्वी की गर्मी को रोक लेता है। जिससे पृथ्वी ज़रूरत से ज़्यादा गर्म हो रही है। इससे भूमंडलीय ऊष्मीकरण यानी  ग्लोबल वार्मिंग  जैसी स्थिति उत्पन्न हो चुकी है।

परमाणु शक्ति का उपयोग करने से रेडियोएक्टिव किरणे पृथ्वी पर सक्रीय हो रही है।  इससे कैंसर जैसे भयानक बीमारियां उत्पन्न हो रही है। कल कारखानों से हर दिन सिर्फ धुंआ ही नहीं बल्कि कचरा और जहरीले अवशेष  तत्वों को नदियों में बहा दिया जा रहा है।  इससे जल प्रदूषण की गंभीर स्थिति विश्व भर में उत्पन्न हो गयी है। नदियों में रहने वाले मछलियां , अन्य जीव , इन रसायनो की वजह से मर रहे है। नदियों का पानी समुद्र में जाकर मिश्रित हो रहा है। समुद्र की इन मछलियों को जब मानव खाते है तो वह भी बीमारियों के शिकार बन रहे है। औद्योगीकरण के इस चरण में प्रदूषण अपने चरम सीमा पर पहुँच गया है। इसका सबसे गहरा प्रभाव महानगरों पर पड़ा है। वहां सड़को पर गाड़ियों की संख्या लाखो से अधिक पहुँच गयी है। इनसे निकलने वाले गैस वायु को प्रदूषित कर रहे है जिससे बीमारियां फैल रही है।  लोगो को सांस लेने में तकलीफ हो रही है और ऑक्सीजन लेवल में भारी गिरावट देखी गयी है।

गाड़ियों से कार्बन मोनोऑक्साइड जैसे धुंए बाहर निकलते है और एक अनुसंधान के अनुसार यह कई रोगो को जन्म देती है। जापान एक विकसित देश है।  जापान की राजधानी टोक्यो को संसार का सबसे प्रदूषित शहर माना जाता है। वहां की वायु इतनी अधिक प्रदूषित हो गयी है कि वहां ऑक्सीजन सिलिंडर लगाए गए है।

टोक्यो में ऑक्सीजन सिलिंडर इसलिए स्थापित किये गए है ताकि लोग ज़रूरत पड़ने पर ऑक्सीजन लेने के लिए उसका इस्तेमाल कर पाए। हमारे देश की राजधानी दिल्ली सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में से एक माना गया है।  यहाँ लोग औद्योगीकरण का हिसाब देते हुए दूषित वातावरण में जीने को मज़बूर है। रोज़  नगरों और महानगरों में गाड़ियों के आवाजाही की वजह से ध्वनि प्रदूषण भी बढ़ गया है।  मोटर वाहन , ट्रक और बसों के हॉर्न जैसे लोगो को जीने नहीं देते है। लंदन भी प्रदूषित शहरों में गिना जाता है।

स्वच्छ नदियों के जल इतनी भयावह तरीके से प्रदूषित हो रहे है कि लोगो को पीने के लिए साफ़ पानी मिलना मुश्किल हो गया है। कई नगरों में जल स्तर नीचे जा चूका है। औद्योगीकरण के कारण गाँव के लोग शहरों की तरफ पलायन कर रहे है।  इससे शहरों की जनसंख्या बढ़ रही है।  उन्हें मकान का निर्माण करने के लिए भूमि की आवश्यकता है। जगह की कमी के कारण लोगो को वनो को काटना पड़ रहा है।  पर्यावरण पर यह प्रहार दिन – प्रतिदिन बढ़ता चलता जा रहा है। वृक्ष , वायु और वातावरण को शुद्ध रखता है। मनुष्य कच्चे माल प्राप्त करने के लिए धड़ल्ले से वनो को नष्ट कर रहा है और खुद को विनाश की तरफ धकेल रहा है।

औद्योगीकरण के वार से वन और प्राकृतिक संसाधन नष्ट हो रहे है। जिसके चपेट में मासूम जीव जंतु बुरी तरीके से प्रभावित हो रहे है। जीव जंतुओं की कई प्रजातियां विलुप्त हो गयी है और कुछ विलुप्त होने के कगार पर खड़े है। यदि इसी प्रकार से पर्यावरण नष्ट होता रहा , तो मानवीय सभ्यता और समस्त जीव जंतु समाप्त होने के खतरे तक पहुँच जाएंगे। मनुष्य को अपने औद्योगीकरण प्रगति में नियंत्रण लाने की आवश्यकता है।  अब वक़्त आ गया है कि हम प्राकृतिक आपदाओं की इस चेतावनी को समझे। मनुष्य को इस प्रकार से विकास करना होगा ,ताकि पर्यावरण को हानि ना पहुंचे।   यह मुश्किल है मगर ना मुमकिन बिलकुल नहीं। मनुष्य को कल कारखाने के जहरीले गैसों से पर्यावरण को दूर रखने के लिए , नगरों से दूर , ऐसे स्थान पर बनाना चाहिए  जहाँ लोगो को इसके गंभीर परिणाम ना झेलने पड़े।  जीव जंतु सुरक्षित रहे।  फैक्टरियों से निकला हुआ कचरा शहरों के जल को प्रदूषित ना करे।  वृक्षारोपण लोग अवश्य करे।  इसकी जागरूकता हर समय लोगो में फैलानी आवश्यक है। परमाणु शक्ति पर रोक लगाए जाए अन्यथा मनुष्य अपनी तरक्की में खुद भस्म हो जाएगा।

निष्कर्ष

औद्योगीकरण मनुष्य के जीवन की प्राथमिकता और ज़रूरत बन चुकी है। इस पर अंकुश लगाना मुश्किल है। अगर मनुष्य पर्यावरण और अपने विकास में सामंजस्य स्थापित करे , तो पर्यावरण का संतुलन बना रहेगा। मनुष्य को प्रदूषण को कम करने के साथ प्रकृति और जीव जंतुओं का संरक्षण करना आवश्यक है। विकास के साथ साथ प्रकृति के बचाव के लिए ज़रूरी और उपयोगी कदम उठाने होंगे। तभी हम एक सुन्दर प्रकृति और पर्यावरण का निर्माण कर पाएंगे। पर्यावरण की इस दयनीय अवस्था से अब पूरी मानव जाति चिंतित है। अब लोगो ऐसी समतियों का गठन कर रहे है जो इस पर्यावरण के संकटकाल को रोक सके और इस पृथ्वी को बचा सके।

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