राष्ट्रीय पशु बाघ पर निबंध

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भारत का राष्ट्रीय पशु बाघ पर निबंध
ashtriya pashu bagh par nibandh

हमारे देश का राष्ट्रीय  पशु बाघ है। इसका सम्पूर्ण वैज्ञानिक नाम है पेंथेरा टाइग्रिस।  यह मांस खानेवाला जानवर है। यह मैमल्स यानी स्तनधारी श्रेणी के अंतर्गत आता है।  यह बिल्ली परिवार से ताल्लुक रखता है। बाघ एशिया में मुख्यतः  भारत  , चीन , भूटान और साइबेरिया जैसे देशो में पाया जाता है।

ज़्यादातर बाघ भारत के पश्चिम बंगाल के सुंदरबन के घने जंगलो में पाया जाता है , जिसे राष्ट्रिय उद्यान कहा जाता है। इसके साथ ही बाघ दक्षिण एशियाई देशो में भी पाया जाता है। आम तौर पर बाघ दिन में सोता है और रात को शिकार करते हुए पाया जाता है।  बाघ का शरीर दस फ़ीट तक लम्बा होता है।  बाघ के दो कान और आँख के संग एक लम्बी पूँछ होती है। 

यह चार पैरो वाला जानवर है। शरीर का रंग पीले और भूरे रंग का होता है। बाघ के सम्पूर्ण शरीर में काले रंग की धारिया होती है , जो उन्हें शिकार करते समय मदद करती है। शिकार करते समय वह इन धारियों के कारण नज़र नहीं आते है। काले धारियों की वजह से उनके आने का एहसास दूसरे जानवर नहीं कर पाते है , जिससे वह आसानी से शिकार करते है। बाघ वनो के जंगलो में रहना पसंद करता है। बाघ को हिरण ,सूअर  , बैंस , गाय और बकरी इत्यादि के मांस खाने का शौक है। कुछ बाघ इंसानो को खाना ज़्यादा पसंद करते है उन्हें मैन ईटर कहा जाता है।

नियमित शिकार करने की वजह से बाघों की संख्या में गिरावट आ रही है। बाघों का शिकार करके उनके अंगो की तस्करी करना गैर कानूनी जुर्म है। पिछले कुछ दशकों में असीमित बाघों के शिकार की वजह से इसकी प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार में खड़ी है। इसलिए बाघों के संरक्षण के लिए वन विभाग ने कड़े नियम लागू किये है। आज भारत के कई राष्ट्रीय उद्यान में बाघों के संरक्षण के कारण उनके संख्या में वृद्धि हुयी है , जो की निश्चित तौर पर एक सकारात्मक कदम है। अब भारत में तीन हज़ार बाघ मौजूद है।  पहले की तुलना में इसकी संख्या बड़ी है जो की एक सराहनीय प्रयास है।

 भारत में बाघों के अस्तित्व को बचाने के लिए 1973  में देश के सरकार ने प्रोजेक्ट टाइगर का उद्घाटन किया है।  इस प्रोजेक्ट के कारण बाघों की संख्या में सराहनीय वृद्धि देखी गयी। बाघ अपने अद्वितीय लुक की वजह से भी राष्ट्रीय पशु घोषित किया गया है।

 बाघ शिकार के समय धीमे पाँव आते है और अपने शिकार को धर दबोचते है। बाघ का वजन तक़रीबन 550  पौंड तक का हो सकता है। बाघ देखने में बहुत ही सुन्दर और आकर्षक होता है , मगर उतना ही हिंसक होता है।  यह जंगलो के लगभग सभी जानवरो का शिकार करके खा सकता है।  बाघ के गद्देदार पैरों में तेज पंजे होते हैं। बाघों के पंजो में नुकीले नाख़ून होते है। चार दांत होते हैं, ऊपरी जबड़े में दो  दांत और निचले हिस्से में दो दांत होते है , जो बाकी की तुलना में बहुत विशाल  और लंबे होते हैं।

इसकी दो खूबसूरत आंखें हैं जो रात के दौरान इंसानों से छह गुना बेहतर दृष्टि प्रदान करती  हैं। इसकी आंखें घरेलू बिल्ली के समान हैं। सफेद बाघों की नीली आंखें होती हैं। इसकी आँखें अंधेरी रात में एक जलते हुए दीपक की तरह लगती हैं। इसके दो कान हैं , जो शिकार करते समय दूसरे जानवरों की आवाज सुनने में उसकी मदद करते हैं। टाइगर के चार लंबे कैनाइन दांत हैं, ताकि वह मांस को चबाकर खा सके।   कैनाइन दांत शिकार को पकड़ने और उसका गला घोंटने में बहुत मददगार होते हैं। बाघ की  एक लंबी पूंछ होती  है जो  शिकार करते समय सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। बाघ की  पूंछ उसे शिकार के पीछे तेज़ी से दौड़ते समय संतुलन बनाये रखने में मदद करती है।

 बाघ के कान और आँखे  मनुष्य की तुलना में अधिक देख और सुन सकते है। बाघ का नाक इतना शार्प और तेज़ होता है कि किलोमीटर की दूरी से आ रही गंध को भांप लेता है , इसलिए वह हमेशा चौकन्ना रहता है। आज बाघ के संरक्षण करने के कारण , अन्य देशो के मुकाबले भारत में  बाघ की  आबादी ज़्यादा है।

बाघ एक शक्तिशाली जानवर है , इसलिए भारत सरकार ने इसे राष्ट्रीय  पशु के तौर पर इसका चयन किया है। बाघ वन में शिकार के दौरान  चुपचाप झाड़ियों के पीछे छुपा रहता है , जो भी पशु उसके रास्ते से होकर गुजरता है , उसका शिकार करता है। बाघ ने बहुत बार मनुष्यो पर भी धावा बोला है। प्रकृति के नियम के समक्ष बाघ मज़बूर है।  उसका गठन ही ऐसा हुआ है। बाघ को अंग्रेजी में टाइगर कहा जाता है और यह कार्नीवोरस जानवर के अंतर्गत आता है। बाघ की सबसे अधिक संख्या सुंदरबन में पायी जाती है।  पूरे बंगाल में इसे रॉयल बंगाल टाइगर कहा जाता है। बाघ की तकरीबन आयु 25 से 30  वर्ष  तक की  होती है।

कुछ  लोग कहते हैं कि बाघों का मूल स्थान एशिया है और कुछ लोग कहते  है कि अफ्रीका। यह माना जाता है कि बाघों की उत्पत्ति एशियाई महाद्वीप में होती है, अफ्रीका में नहीं। अफ्रीका में बाघों को   बंगाल और चीन से लाया गया था। इसलिए बाघों कि उत्पत्ति एशिया में ही सबसे पहले हुयी थी।

निष्कर्ष

वनो के निरंतर कटने से बाघों का निवास स्थान खतरे में पड़ गया है।  भारत की आबादी इसका कारण है।  लोगो को रहने के लिए निवास स्थान की ज़रूरत है , जिसके लिए निरंतर वृक्ष काटे जा रहे है।  राष्टीय उद्यान में भी लोगो ने किसी किसी जगह अपना बसेरा बना लिया है , जिसके कारण बाघों और अन्य जानवर  को रहने के लिए जगह नहीं मिल पा रही है।  मनुष्य अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए हड्डियों , दांतो और बाघ के चमड़े का व्यापार करती है , जो अवैध है। प्राकृतिक आपदाओं के शिकार भी बाघ और अन्य पशु हो रहे है।  इसलिए और अधिक बाघों के संरक्षण की आवश्यकता है। भारत सरकार ने बाघों की सारी प्रजातियों को बचाने के लिए अपना अच्छा योगदान दिया है।  इस योगदान में हमे भी एक जिम्मेदार नागरिक के तौर पर  उनका साथ देना चाहिए |

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