ड्रग्स फ्री इंडिया पर निबंध

ड्रग्स फ्री इंडिया पर निबंध
Hindi essay on Drugs free India
नशीली दवाओं के सेवन – दुरुपयोग पर निबंध

ड्रग्स के सेवन से नशे की लत को पूरा करना भारत की एक प्रमुख एवं व्यापक समस्या है। इस समस्या से जहाँ परिवार विघटित होता है, वहीं समाज संक्रमित होता है, तो राष्ट्र कमजोर होता है। यह मात्र एक सामाजिक समस्या ही नहीं है, अपितु चिकित्सकीय एवं मनोवैज्ञानिक समस्या भी है। एक ऐसा दलदल है, जिसमें धंसने वाला खुद तो तबाह होता ही है, साथ ही उसका पूरा परिवार भी तबाह होता है।

ड्रग्स के दुष्प्रभाव सिर्फ उस व्यक्ति को तबाह नहीं करते, जो इसके आदी होते हैं, बल्कि ये परिवार, समाज और राष्ट्र को भी जर्जर करते हैं। यही कारण है कि राष्ट्र को मजबूत बनाने के लिए उसे ड्रग्स से मुक्त रखना अनिवार्य है। ड्रग्स का सेवन यानी नशाखोरी की देन थ्रीडी बुराइयां हैं। पहली ‘डार्कनेस’ यानी जीवन में अंधेरा, दूसरी ‘डिस्ट्रक्शन’ यानी बर्बादी के मोड़ पर पहुँचना तथा तीसरी ‘डिवास्टेशन’ यानी सम्पूर्ण रुप से तबाही। ड्रग्स की बुराइयों एवं दुष्प्रभावों से परिवार, समाज एवं राष्ट्र को बचाने के लिए ही हमने ‘ड्रग्स फ्री इंडिया’ का सपना देखा है और इस सपने को साकार करने के लिए मजबूत पहल शुरु हो चुकी है। स्वयं देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘ड्रग्स फ्री इंडिया’ का आह्वान कर अपने मन की बात देशवासियों से साझा की है।

सामान्य अर्थों में ड्रग्स से आशय उन रासायनिक पदार्थों से है, जिन्हें लेने से मस्तिष्क पर उसकी रासायनिक प्रतिक्रिया होती है तथा शरीर और मन के सामान्य कार्यकलापों पर प्रभाव पड़ता है। ड्रग्स का सामान्य अर्थ दवा या औषधि भले ही है, लेकिन सामाजिक विज्ञानों में यह शब्द उन मादक द्रव्यों के लिए प्रयुक्त होता है, जिनका सेवन गैरकानूनी माना जाता है। इन पदार्थों का अधिक मात्रा में बार-बार सेवन किए जाने से जब व्यक्ति के शारीरिक तथा मानसिक कार्यकलापों पर हानिकारक प्रभाव पड़ने लगता है, तो यह अवस्था ‘ड्रग अब्यूस’ या ‘ड्रग एडिक्शन’ कहलाती है। विडंबना यह है कि इस अवस्था में पहुंचने वाला कोई भी व्यक्ति प्रायः सामान्य जीवन जीने लायक नहीं रह पाता। वह स्वयं को शारीरिक मानसिक एवं आर्थिक स्तरों पर तबाह कर लेता है। यह एक ऐसी अंधी सुरंग है, जो बर्बादी के मुहाने तक ले जाती है।
भारत में ड्रग्स की समस्या का फैलाव छोटे-छोटे गांवों और कस्बों से लेकर महानगरों तक में है।

यह कहना असंगत न होगा कि समूचा देश इस समस्या से आच्छादित है। यह समस्या किसी वर्ग विशेष से भी जुड़ी नहीं है। गरीब मध्यम एवं आभिजात्य सभी वर्गों में ड्रग्स का चलन है। किसी के लिए यह मौजमस्ती का साधन एवं स्टेटस सिंबल का प्रतीक है, तो किसी के लिए थकान मिटाने का। कोई असफलता और हताशा को मिटाने के लिए ड्रग्स की ओर उन्मुख होता है। तुलनात्मक दृष्टि से देखें, तो युवा वर्ग ड्रग्स की गिरफ्त में कुछ ज्यादा हैं।

युवा वर्ग ड्रग्स की अंधेरी गली में कई कारणों से प्रवेश करता है। कभी इसका कारण जीवन का एकाकीपन होता है, तो कभी भावनात्मक असुरक्षा अथवा माता-पिता से मिलने वाले प्यार में कमी। घरेलू कलह, जीवन की असफलताएं, विभिन्न कारणों से मिलने वाला तनाव, गलत संगत, एक अनूठे आनंद की अनुभूति की ललक, पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव, समस्याओं से निजात की क्षणिक अनुभूति, मित्रों का दबाव या दुष्प्रेरणा आदि वे मुख्य कारण हैं, जो युवकों तथा कभी-कभी अल्पवयस्कों तक को नशे का आदी बना देते हैं। इसक अलावा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फैले ड्रग्स माफिया के संजाल में सम्मिलित लोग भी अपना धंधा चमकाने के लिए युवकों को गुमराह कर ड्रग्स का व्यसनी बनाते हैं।

ड्रग्स के व्यसन के अनेक दुष्परिणाम सामने आते हैं। इन्हें व्यसनी खुद तो भुगतता ही है, उसका परिवार भी बर्बाद होता है। समाज और राष्ट्र भी प्रतिकूल रुप से प्रभावित होता है। ड्रग्स का दलदल इतना खतरनाक होता है कि इस दलदल में फंसने वाला व्यक्ति कहीं का नहीं रहता है। वह शारीरिक, आर्थिक एवं मनोवैज्ञानिक स्तरों पर तबाह हो जाता है। एक बार ड्रग्स का व्यसनी होने पर यह लत छूटती नहीं और इस लत का शिकार व्यक्ति जब आर्थिक रुप से खोखला हो जाता है, तब नशे की लत को पूरा करने लिए चोरीछिनैती जैसे अपराध करता है।

ऐसा भी देखा गया है कि नशे की अवस्था में पहुँचने के बाद व्यसनी हत्या और बलात्कार जैसे जघन्य अपराध तक कर डालते हैं। वे अनेक प्रकार की शारीरिक व्याधियों के शिकार भी बन जाते हैं। इनमें प्रमुख व्याधियां होती हैं – रक्तचाप में गड़बड़ी, विक्षिप्तता, पागलपन, मोतियाबिंद, अवसाद, तनाव, मनोव्यथाएं, नपुंसकता तथा श्वास संबंधी बीमारियां। अधिक अवसाद की अवस्था में व्यसनी को आत्महत्या की ओर उन्मुख होते भी देखा गया है। ड्रग्स के व्यसनी को 3 डी बुराइयां कहीं का नहीं छोड़ती। डार्कनेस (जीवन का अंधियारा), डिस्ट्रक्शन (बर्बादी) एवं डिवास्टेशन (तबाही) उसे खोखला कर देती हैं।

ड्रग्स का एक घातक पक्ष यह भी है कि इससे प्राप्त होना वाला पैसा उन आतंकवादियों के पास पहुंचता है, जो खूरेजी में आगे हैं तथा अशांति एवं अस्थिरता फैलाने के लिए आतंकवाद का सहारा लेते हैं। यहाँ यह रेखांकित करना आवश्यक है कि संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार विगत वर्षों में पाकिस्तान विश्व में हेरोइन, ब्राउन शुगर, स्मैक एवं हशीश के सबसे बड़े उत्पादक व वितरक के रुप में विकसित हुआ है। पाकिस्तान में राजनेता से लेकर बड़े-बड़े फौजी अधिकारी भी ड्रग्स की तस्करी में सहयोग देते हैं। यह किसी से छिपा नहीं है कि पाकिस्तान आतंकवाद को बढ़ाने एवं आतंकवादियों को प्रश्रय देने में किस कदर आगे है। यह कहना असंगत न होगा कि आतंकवादी जो गोलियां दागते हैं, वे ड्रग्स के पैसे से ही खरीदी जाती हैं। इस प्रकार ड्रग्स के व्यसनी परोक्ष रुप से आतंकवादियों तक पहुंचता है, जिससे खरीदे गए अस्त्र-शस्त्रों से वे खून की होली खेलते हैं।

हमारी सरकार ड्रग्स की समस्या को रोकने के लिए कानूनी स्तर पर प्रयासरत रही है। संविधान के अनुच्छेद 47 के अनुसार चिकित्सकीय प्रयोग के अतिरिक्त स्वास्थ्य के लिए हानिप्रद मादक पदार्थों व वस्तुओं के उपयोग को निषिद्ध करने कि लिए वर्ष 1985 में नशीली दवाएं एवं मनोविकारी पदार्थ कानून (ND PS Act) लागू करने के साथ ही मादक पदार्थों का सेवन करने वालों की पहचान, इलाज, शिक्षा, बीमारी के बाद देख-रेख, पुनर्वास व समाज में पुनर्स्थापना के लिए प्रयास किए गए, तथापि इनके सकारात्मक परिणाम प्राप्त नहीं हुए। ड्रग्स की समस्या धीरे-धीरे विकराल होती चली गई।

वस्तुतः ड्रग्स की समस्या एक ऐसी समस्या है, जिसे सिर्फ कानून बनाकर नहीं निपटा जा सकता है। यह एक ऐसी समस्या है, जिसके निवारण के लिए विधिक प्रयासों के साथ-साथ पारिवारिक एवं सामाजिक स्तर पर भी प्रयासों की जरुरत है। परिवार में माता-पिता का यह दायित्व बनता है कि वे अपने बच्चों को भटकाव और भ्रम से बचाने के लिए उन्हें ध्येयवादी बनाएं। ध्येय की तरफ बढ़ने में बच्चों की भरपूर मदद करें। ऐसा इसलिए आवश्यक है, क्योंकि जब जीवन का कोई लक्ष्य या ध्येय नहीं होता है, तो जीवन में एक प्रकार की रिक्तता आ जाती है। इस अवस्था में जीवन में ड्रग्स का प्रवेश आसान हो जाता है। ध्येय को सामने रखकर आगे बढ़ने वाले बच्चे भटकाव का शिकार नहीं होते हैं। अभिभावकों का यह दायित्व बनता है कि वे जीवन की भागदौड़ में से समय निकालें और अपना यह समय बच्चों को दें। बच्चों के साथ बैठकर सिर्फ उनकी लौकिक प्रगति पर ही चर्चा न करें, अपितु उनके मन में भी झांकें। उन्हें भरपूर भावनात्मक संरक्षण तो प्रदान करें हीं, उनकी गतिविधियों, साथ-संग पर भी नजर रखें। यदि बच्चे में कोई बदलाव दिख रहा हो, तो उसकी परख करें। ऐसा करके अभिभावक शुरु में ही बच्चे को ड्रग्स के दलदल की तरफ बढ़ने से रोक सकते हैं।

ड्रग्स की समस्या के निवारण में समाज की भी भूमिका निर्णायक हो सकती है। समाज के जिम्मेदार लोगों का यह दायित्व बनता है कि वे ड्रग्स के व्यसनियों को उपेक्षित न करें और न ही उन्हें समाज से बहिष्कृत करें। ऐसे लोग सहानुभूति के पात्र होते हैं, अतः सहानुभूतिपूर्वक उनमें बदलाव लाने तथा उन्हें सही मार्ग पर लाने की चेष्टा करें। खेल, शिक्षा, संस्कृति, धर्म, मीडिया, राजनीति एवं अन्य क्षेत्रों से जुड़े गणमान्य लोगों का यह दायित्व बनता है कि वे इस संदर्भ में जनजागृति लाने का काम करें। लोगों को ड्रग्स की बुराइयों से बचने का संदेश दें। इससे एक सकारात्मक वातावरण तैयार होगा, जो समस्या पर अंकुश लगाने में सहायक सिद्ध होगा।

‘ड्रग्स फ्री इंडिया’ के स्वप्न को साकार करने के लिए आज समग्र प्रयासों की आवश्यकता है। व्यक्ति को स्वयं, उसके परिवार, यार दोस्तों, समाज, सरकार और कानून सभी को मिलकर इस दिशा में काम करना होगा। किसी भी व्यक्ति को नशे की लत से बाहर लाना असंभव नही है। यह थोड़ा मुश्किल जरुर है। यदि समग्र प्रयास किए जाएं तो यह काम आसान हो सकता है। हमारे समक्ष ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जिनसे पता चलता है कि व्यसनी नशे की लत से बाहर आए और उन्होंने एक अच्छा नागरिक बन कर राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दिया। यकीनन एक मजबूत भारत के लिए एक आवश्यक है कि हम भारत को ड्रग्स मुक्त देश बनाएं। यह पहल शुरु भी हो चुकी है। नई सुबह करीब है।

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