प्रस्तावना :- वन महोत्सव का प्रारंभ तत्कालीन कृषि मंत्री डॉक्टर कन्हैयालाल मुंशी द्वारा सन् 1950 में किया गया है। यह एक राष्ट्रीय महत्त्व है और जो प्रत्येक वर्ष जुलाई के महीने में मनाया जाता हे।
इस महोत्सव को मनाने के पीछे का कारण है लोगों में जागरूकता इस महोत्सव के दौरान स्कूलों, सरकारी दफ्तर और सरकारी बगीचे और गैर सरकारी जगह पर लोग मिलकर पेड़ पौधे लगाते हैं जिससे लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूकता आए।वन महोत्सव के दौरान पेड एवं पौधे लगाकर हमें वृक्षों से इंधन ,पशुओं के लिए चारा, प्राणवायु ,भोजन, कई प्राणियों का आश्रय स्थल ,शीतलु छाया, वर्षा, भूमि से जल, प्रदूषण से मुक्ति ,प्राकृतिक सुंदरता जैसे लाभ होते हैं।
विद्यालयों में इस महोत्सव के दौरान कई तरह की प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है जैसे निबंध स्पर्धा, चित्रकला, वक्तृत्व, स्पर्धा इत्यादि से युवा और नन्हे बच्चों को वन और पेड़-पौधे लगाने का महत्व समजाते हे। इस महोत्सव को मनाने का खास कारण है कि वनों के संरक्षण के प्रति लोग ज्यादा से ज्यादा ध्यान दें क्योंकि आज इंसान कई मुसीबतों का सामना कर रहा है, जहां घने वृक्ष हुआ करते थे, उसे विकास के नाम पर बड़ी-बड़ी इमारत और कारखाने बनाने के लिए काट दिए जा रहे हैं और उसके बदले में फिर से पेड़ भी नही लगाए जा रहे हैं की कमी के कारण वातावरण प्रदूषित हो रहा है। पानी की कमी हो रही है और पेट कम हो रहे हैं। वनों को काटकर खेती के लिए जमीन विकसित की जा रही है।
पशु पक्षी जो मात्र पेड़ों पर निर्भर है, उनकी हालत दयनीय है। यदि यह स्थिति रही तो यह समस्या बहुत गंभीर रूप धारण कर लेगी। धरती पर गर्मी की मात्रा इतनी बढ़ जाएगी कि इंसानों और पशुओं का जीना मुश्किल हो जाएगा। फेरों की कमी से वर्षा का स्तर भी ना ना के बराबर हो जाएगा। ऐसे में धरती पर जीवन की कल्पना मुश्किल हो जाएगी।
अतः समय आ गया है कि अगर आज हम नहीं संभले तो आने वाला समय शायद बहुत ही खराब होगा और इसलिए हर वर्ष इस महोत्सव को मनाते हैं और हमें अपने बच्चों को और आने वाली पीढ़ियों को वनो के ना होने के नतीजे से अवगत् करवाना चाहिए। हमें खुद उन्हें छोटे छोटे पेड़ लगाकर इसका महत्व समझाना चाहिए।इस महोत्सव को राष्ट्रीय स्तर पर काफी सराहना मिली है, लोग सामने आए हैं जो खुद और दूसरों को साथ लेकर पेड़ पौधे लगाते हैं। यह हमारा भी दायित्व है कि हम यह महोत्सव मना कर पर्यावरण के विकास में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें रहे करते रहे।
वन महोत्सव एक ऐसा महोत्सव है जिसमें भागीदारी कर के व्यक्ति अपने और प्रकृति के बीच में संबंध को ज्यादा गहराई से समझता है। जैसे हम कई पारिवारिक , सामाजिक , राष्ट्रीय ,अंतर्राष्ट्रीय ,एवं धार्मिक महोत्सव मनाते हैं और उन महोत्सव से जुड़ कर उनकी विशेषता समझते है। ऐसे ही वन महोत्सव है जो इंसान के लिए किसी भी अन्य उत्सव से बढ़कर है। इसका कारण है कि हमारे जीवन में वनों का महत्व यदि वन ही नहीं होंगे तो धरती पर किसी भी प्रकार का विकास संभव नहीं है।
वन हमारी सभ्यता और संस्कृति के रक्षक हैं। शांति और एकांत की खोज में हमारे ऋषि मुनि वनों में रहते थे। वहां उन्होंने तत्व ज्ञान प्राप्त किया और वहां विश्व कल्याण के उपाय भी सोचते वही गुरुकुल होते थे, जिसमें भावी राजा,दार्शनिक, पंडित आदि शिक्षा ग्रहण करते थे।
उपसहार :- वृक्षों की भारी तादाद में कटाई हो रही है। जलवायु बदल रही है। ताप की मात्रा बढ़ रही है। नदियों का जल दूषित हो रहा है और वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बहुत ज्यादा बढ़ गई है। इसलिए हमें वृक्षों को काटना नहीं चाहिए और ज्यादा से ज्यादा पेड़ पौधे लगाने चाहिए।