दोस्तों, हमारे जीवन की पीढ़ी में बचपन ऐसा समय होता है जिसका आनंद हर कोई लेता है। लेकिन जब हम बच्चे होते हैं तो हमारा मन करता है कि हम बढ़े हो जाएं और जब हम बढ़े हो जाते हैं तो हमारा मन करता है कि हम फिर अपने बचपन में चले जाएं, क्योंकि बचपन में आनंद ही होता है और चिंता की कोई एंट्री नहीं होती।
अतः आज हम आपको मेरा बचपन विषय पर निबंध प्रस्तुत कर रहे हैं। इसके माध्यम से मैं अपने बचपन के किस्से आपको बताऊंगी। आप इस निबंध के प्रारूप के अनुसार अपने बचपन का भी एक निबंध लिख सकते हैं।
तो चलिए जानते हैं, मेरा बचपन विषय पर निबंध……
प्रस्तावना
बचपन हर व्यक्ति के जीवन का मौज मस्ती से भरपूर एक अहम हिस्सा होता है। यह एक ऐसा समय होता है जब हर बच्चा टेंशन फ्री और आनंद से भरा रहता है। बचपन में हर किसी का मन बेहद कोमल और चंचलता से भरा रहता है। बचपन में आप सभी का प्यार और दुलार प्राप्त करते हैं। इसलिए तो बचपन सबसे प्यारा होता है।
मेरा बचपन
मैं आपको अगर अपने बचपन के बारे में बताऊं तो मेरा बचपन बहुत ही सुहावना रहा और मेरा बचपन गाँव में ही बीता है। मैं बचपन में बहुत ही नटखट स्वभाव का होता था और घर में सबसे छोटा होने के कारण सबका दुलार भी खुब मिलता था। बचपन में सुबह सुबह खेतों की ठंडी हवा का आनंद लेना, बगीचे के आम और अन्य फलों को तोड़कर खाना और शाम को अपनी सहेलियों के साथ मेला घूमना कुछ इस तरह से बचपन के दिन हंसते खेलते व्यतीत हुआ करते थे।
मेरे बचपन का किस्सा
मेरे बचपन में मैंने एक बार स्कूल जाने से मना कर दिया था। मेरे घर के सभी लोग मुझे स्कूल ले जाने के लिए मना रहे थे। पापा ने मुझे डांट लगाई कि मुझे स्कूल जाना चाहिए। मेरे भैया ने भी मुझे बहुत डांटा कि मैं स्कूल जाऊं। लेकिन मेरा स्कूल जाने का बिल्कुल मन नहीं था। मेरी मम्मी ने मुझे स्कूल पापा के साथ भेज दिया। लेकिन मैं स्कूल में भी बहुत रोने लगी। पापा मुझे स्कूल से वापस लेकर आ गए लेकिन वो मुझसे बहुत गुस्सा हो गए। मेरी मम्मी ने मुझे बहुत समझाया फिर मैं अगले दिन से रोजाना स्कूल जाने लगी।
मेरे बचपन का प्रिय खेल
मुझे बचपन में क्रिकेट खेलना बहुत पसंद था। स्कूल से वापस आने के बाद में अक्सर गलियों में अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट खेला करती थी। इतना ही नहीं मुझे छोटे जानवरों से भी बेहद लगाव था। इसलिए स्कूल से वापस आने के बाद में अपनी गली मोहल्ले के कुत्ते के बच्चों को खिलाया करती थी। मुझे बचपन में सिपोलिया और लोहा लक्कड़ जैसे खेल खेलना भी बहुत पसंद था।
उपसंहार
तो कुछ इस तरह मेरा बचपन बीता.. दादी नानी के सुनहरी कहानियों के साथ और किस्सों के साथ मेरी रात हो जाती थी और दिन स्कूल में और स्कूल से आकर खेल खिलौना में बीत जाता था। दोस्तों में आपस में बहुत प्यार हुआ करता था और मेरे परिवार वाले भी मुझे बचपन में बेहद प्यार किया करते थे। यूं ही बचपन को बेहद अनमोल तोहफा नहीं कहा जाता है। यह जीवन की वह खड़ी है जिसमें आपको परिवार की छांव में रहकर मौज मस्ती करने का मौका मिलता है।