पुस्तकालय पर निबंध

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Hindi Essay on library short essay 600 words.

पुस्तकालय का अर्थ:- पुस्तकालय वह स्थान है जहाँ विभिन्न प्रकार के ज्ञान, सूचनाओं, स्रोतों आदि का जमावड़ा(संग्रह) रहता है। पुस्तकालय शब्द अंग्रेजी के लाइब्रेरी [library] शब्द का हिंदी रूपांतर है। लाइबेरी शब्द की उत्पत्ति लेतिन शब्द ‘ लाइवर ‘ से हुई है, जिसका अर्थ है पुस्तक। पुस्तकालय का इतिहास लेखन प्रणाली पुस्तकों और दस्तावेज के स्वरूप को संरक्षित रखने की पद्धतियों और प्रणालियों से जुड़ा है। पुस्तकालय यह शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है- पुस्तक + आलय। पुस्तकालय उस स्थान को कहते हैं जहाँ पर अध्ययन सामग्री (पुस्तकें, पत्रपत्रिकाएँ, मानचित्र, हस्तलिखित ग्रंथ, एव अन्य पठनीय सामग्री) संगृहीत रहती है और इस सामग्री की सुरक्षा की जाती है। पुस्तकों से भरी अलमारी अथवा पुस्तक विक्रेता के पास पुस्तकों का संग्रह पुस्तकालय नहीं कहलाता क्योंकि वहाँ पर पुस्तकें व्यावसायिक दृष्टि से रखी जाती हैं।

मानव शरीर को स्वस्थ बनाये रखने के लिए जिस प्रकार हमें पौष्टिक तथा संतुलित भोजन की आवश्यकता होती है। उसी प्रकार मानसिक स्वास्थ्य के लिए ज्ञान की प्राप्ति आवश्यक है। मस्तिष्क को बिना गतिशील बनाये ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता। ज्ञान प्राप्ति के लिए विद्यालय जाकर गुरु की शरण लेनी पड़ती है। इसी तरह ज्ञान अर्जित करने के लिए पुस्तकालय की सहायता लेनी पड़ती है। लोगों को शिक्षित करने तथा ज्ञान देने के लिए एक बड़ी राशि व्यय करनी पड़ती है। इसलिए स्कूल कालेज खोले जाते हैं और उनमें पुस्तकालय स्थापित किये जाते हैं। जिससे कि ज्ञान चाहने वाला व्यक्ति सरलता से ज्ञान प्राप्त कर सके।

पुस्तकालय के दो भाग होते हैं। वाचनालय तथा पुस्तकालय। वाचनालय में देशभर से प्रकाशित दैनिक अखबार के अलावा साप्ताहिक, पाक्षिक तथा मासिक पत्र-पत्रिकाओं का पठन केन्द्र है। यहां से हमें दिन प्रतिदिन की घटनाओं की जानकारी मिलती है। पुस्तकालय विविध विषयों और इनकी विविध पुस्तकों का भण्डार ग्रह होता है। पुस्तकालय में दुर्लभ से दुर्लभ पुस्तक भी मिल जाती है।

भारत में पुस्तकालयों की परम्परा प्राचीनकाल से ही रही है। नालन्दा, तक्षशिला के पुस्तकालय विश्वभर में प्रसिद्ध थे। मुद्रणकला के साथ ही भारत में पुस्तकालयों की लोकप्रियता बढ़ती चली गई। दिल्ली में दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी की सैकड़ों शाखाएं हैं। इसके अलावा दिल्ली में एक नेशनल लाइब्रेरी भी है। पुस्तकें मनुष्य की मित्र होती हैं। एक ओर जहां वे हमारा मनोरंजन करती हैं वहीं वह हमारा ज्ञान भी बढ़ाती हैं। हमें सभ्यता की जानकारी भी पुस्तकों से ही प्राप्त होती है। पुस्तकें ही हमें प्राचीनकाल से लेकर वर्तमानकाल के विचारों से अवगत कराती है। इसके अलावा पुस्तकें संसार के कई रहस्यों से परिचित कराती हैं। कोई भी व्यक्ति एक सीमा तक ही पुस्तक खरीद सकता है। सभी प्रकाशित पुस्तकें खरीदना सबके बस की बात नहीं है। इसलिए पुस्तकालयों की स्थापना की गई। पुस्तकालय का अर्थ है पुस्तकों का घर। यहां हर विषय की पुस्तकें उपलब्ध होती हैं। इनमें विदेशी पुस्तकें भी शामिल होती हैं। विद्यालय की तरह पुस्तकालय भी ज्ञान का मंदिर है।

पुस्तकालय कई प्रकार के होते हैं। इनमें पहले पुस्तकालय वे हैं जो स्कूल, कालेज तथा विश्वविद्यालय के होते हैं। दूसरी प्रकार के पुस्तकालय निजी होते हैं। ज्ञान प्राप्ति के शौकीन व्यक्ति अपने-अपने कार्यालयों या घरों में पुस्तकालय बनाकर अपना तथा अपने परिचितों का ज्ञान अर्जन करते हैं। तीसरे प्रकार के पुस्तकालय राजकीय पुस्तकालय होते हैं। इनका संचालन सरकार द्वारा किया जाता है। इन पुस्तकों का लाभ सभी लोग उठा सकते हैं। चौथी प्रकार के पुस्तकालय सार्वजनिक होते हैं। इनसे भी सरकारी पुस्तकालयों की तरह लाभ उठा सकते हैं।

इनके अतिरिक्त स्वयं सेवी संगठनों व सरकार द्वारा सचल पुस्तकालय सेवाएं चलाये जा रहे हैं। यह पुस्तकालय एक वाहन पर होते हैं। हमारा युग ज्ञान का युग है। वर्तमान में ज्ञान ही ईश्वर है व शक्ति है। पुस्तकालय से ज्ञान वृद्धि में जो सहायता मिलती है वह और कहीं से सम्भव नहीं है। विद्यालय में विद्यार्थी केवल विषय से संबंधित ज्ञान प्राप्त कर सकता है लेकिन पुस्तकालय ज्ञान का खजाना है।


Hindi essay on library

पुस्तकालय पर निबंध,
Hindi Essay on library 900 words.

भूमिका:- जिस प्रकार संतुलित आहार से हमारा शरीर हस्टपुस्ट होता है। उसी प्रकार मानसिक विकास के लिए अध्ययन तथा स्वास्थ्य का बड़ा महत्व है। इस संसार मे ज्ञान से बड़कर कोई अन्य वस्तु पवित्र  नही हो सकती। ज्ञान के अभाव में मानव था पशु में कोई अंतर नहीं होता। ज्ञान ही ईशवर है। ज्ञान प्राप्त करने के अनेक साधन है। जिसमें सत्संग, देशाटन तथा सद्ग्रन्थों का अध्धयन है। इन सब मे पुस्तक को ज्ञान पताप्ति का सर्वश्रेष्ठ साधन मना गया है। पुस्तकें ज्ञान राशि के अथाह भंडार को अपने मे संचित किये रहती है। इनके द्वारा घर बैठे हजारो वर्षो के सद्ग्रन्थों की प्राप्ति होती है। जो हमें पुस्तकालयों से होती है। जिनमे हम विज्ञान से परिचित हो सकते है।

पुस्तकालय की उत्पत्ती:- पुस्तकालय दो शब्दों के योग से बना है। पुस्तकों का घर। केवल पुस्तको को एक स्थान पर एकत्रित करने अथवा एक कमरे में भर देने से पुस्तकालय नहीं बन जाता। पुस्तकालय तो एक ऐसा स्थान है। जिसके उपयोगादी का सुनियोजित विधान होता हैं।

पुस्तकालय का महत्व:- पुस्तकालय वह स्थान है। जहाँ पुस्तकों का समूह होता है। यह पुस्तकें पाठकों को कुछ समय के लिए पढ़ने के लिए उधार दी जाती है। जब समय समाप्त हो जाता है, तो वे पस्तकें वापस कर देते है और नई पस्तकें उधार ले लेते है। प्रत्येक जो पुस्तकालय से पुस्तक उधार लेता है, उसे मासिक या वार्षिक शुल्क चुकाना पड़ता है। फिर वह पुस्तकालय का सदस्य बन जाता है और पुस्तक उधार लेने का अधिकार प्राप्त कर लेता है।

पुस्तकालय सबका सच्चा दोस्त:- पुस्तकालय उनको एक अच्छा अवसर प्रदान करता है। जो पुस्तके क्रय नही कर सकते है। हमारे देश मे प्रत्येक पाठक प्रत्येक पुस्तक खरीद नही सकता है। बहुत कम लोग ऐसा कर पाते है। पुस्तकालय सार्वजनिक सम्पत्ति है। सरकार कस्बो, नगरों, गाँवो में पुस्तकालय खोलती है और उनकी भी मद्त हो जाती है। जो पुस्तक खरीदने में असमर्थ होती है। लेकिन शिक्षा प्राप्त करना चाहते है। इसलिए पुस्तकालय गरीब हो या कोई अमीर व्यक्ति सभी की एक सच्चा मित्र के समान होती है।

पुस्तकालय में पुस्तकों के प्रकार:- पुस्तकालय में अनेक प्रकार की पुस्तकें होती है। पाठक अपनी पसंद  की पुस्तकें उधार लेते है। पुस्तकालय में उपन्यास, जीवनी, आत्मकथाएं, कविताएं, कहानियां आदि से सम्बंधित पुस्तके होती है। कुछ पुस्तकालयों में समाचार पत्र और पत्रिकाएं भी मिलती है।

पुस्तकालय विभिन्न प्रकार के होते है। इनमें से प्रथम प्रकार के पुस्तकालय वे है। जो विद्यालयों, महाविद्यालयो तथा विशवविद्यालय, में विधमान है। दूसरे प्रकार के निजी पुस्तकालय है। जिनके स्वामी तथा उपयोग करने वाले प्रायः एक ही व्यक्ति होते है। अध्यपको, वकीलों, डॉक्टरों, साहित्यकारों राजनीतियो तथा अन्य ज्ञान पिपासुओं एवं धनाढ्यों के पुस्तकालय इसी श्रेणी में आते है। तीसरे प्रकार के पुस्तकालय वर्गगत होते है। इनका स्वामी कोई सम्प्रदाय या वर्ग होता है। इन पुस्तकालयो का प्रयोग केवल इन्ही सम्प्रदायो अथवा संस्थानों से सम्बद्ध व्यक्ति कर पाते है। चौथे प्रकार के पुस्तकालय सार्वजनिक होते है। ये भी प्रायः संस्थागत अथवा राजकीय होते है। इनका सदस्य कोई भी हो सकता है। ये भी दो प्रकार के हो सकते है।

स्थायी एवं चलते फिरते। इनके अतिरिक्त चल व्यापारिक पुस्तकालय भी होते है। जो बसों या रेलगाड़ी में होते है। इनके अतिरिक्त राजकीय पुस्तकालय भी होते है। जिनकी व्यवस्था सरकार द्वारा होती है तथा इनका प्रयोग विशेष व्यक्तियों तक सीमित होता है। ये जन साधरण की पहुँच से बाहर होते है।

पुस्तकालय के लाभ:- पुस्तकालय से अनेक लाभ है। ये ज्ञान का सक्षम भण्डार है। पुस्तकालय एक ऐसा स्त्रोत है। जहाँ से ज्ञान की निर्मल धारा सदैव वहति रहती है। रामचन्द्र शुक्ल ने ठीक कहा है।

“पुस्तकों के द्वारा हम किसी महापुरुष को जितना जान सकते है। उतना उनके मित्र क्या पुत्र तक भी नही जान सकते”

एक ही स्थान पर विभिन्न भाषाओं, धर्मो, विषयों, वैज्ञानिको, आविष्कारो ऐतिहासिक तथ्यों से सम्बंधित पुस्तकें केवल पुस्तकालय मे ही उपलब्ध हो सकती है।

पुस्तकालय के द्वारा हम आत्मबुद्धि तथा आत्म परिष्कार कर सकते है। पुस्तकों से एक ऐसी ज्ञान धारा बहती है। जो हमारे ह्रदय और हमारे मस्तिष्क का विकास करती है। एकान्त तथा शांत वातावरण में अध्ययनशील होकर कोई भी व्यक्ति ज्ञान की अनेक मणियो को प्राप्त कर सकता है। इस स्थान पर विभिन्न देश तथा कालो के अमूल्य अप्राप्य ग्रन्थ, सुलभता से मिल सकते है पुस्तकों के ज्ञान से हमारा सामान्य ज्ञान भी बढ़ता है।

आधुनिक महंगाई और निर्धनता में प्रत्येक व्यक्ति के लिये अधिक गर्न्थो का क्रय करना सम्भव नही है। पुस्तकालय में नाममात्र का शुल्क देकर अथवा मुफ्त सदस्यता प्राप्त करके अनेक ग्रन्थों का अध्ययन किया जा सकता है। पुस्तकालय में जाकर हमारा पर्याप्त मनोरंजन भी होता है। यहाँ हम अपने अवकाश के क्षणों का सदुपयोग कर सकते है। पुस्तकालय में बेठने से अध्ययन व्रती को बढ़ावा मिलता है तथा गहन अध्ययन सम्भव होता है। महात्मा गांधी कहा करतें थे कि – भारत के प्रत्येक घर मे पुस्तकालय होना चाहिए।

पुस्तकालय की पुस्तक का सदुपयोग:- पुस्तकालय समाजिक महत्व की जगह है। अतः यहाँ के ग्रन्थों को बर्बाद नही करना चाहिए। पुस्तकें समय पर लौटानी चाहिए तथा उनके पृष्ठो को गंदा नही करना चाहिए और न ही पृष्ठ फाड़ने अथवा चित्र काटने चाहिए। पुस्तकालय में बैठ कर शांतिपूर्ण अध्ययन करना चाहिए। पुस्तक जहां से निकली है। अध्यनोपरांत पुस्तक वहीं रख दी जानी चाहिए।

उपसंहार:- आज हमारे देश मे अनेक पुस्तकालय है। परंतु अभी भी अच्छे पुस्तकालय की बहुत कमी है। इस अभाव को दूर करना  सरकार का कर्त्तव्य है। अशिक्षा, निर्धनता, अधिकारो की उपेक्षा आदि के कारण हमारे देश मे पुस्तकालय की हिन दशा है। पुस्तकालय का छात्रों के लिए विशेष महत्व है। अच्छे पुस्तकालय राष्ट निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। अतः सरकार तथा अन्य संस्थानों को चाहिए कि अच्छे पुस्तकालय की स्थापना करें व पुस्तक के महत्व पर लोकमान्य तिलक ठीक ही कहा करते थे।

“में नरक में भी उत्तम पुस्तकों के स्वागत करूँगा, क्योंकि पुस्तके जहां होंगी वही स्वर्ग आ जाएगा”।


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8 thoughts on “पुस्तकालय पर निबंध”

  1. This essay is so long.i don’t need so long essay.this is so difficult to make short essay from this.there are so many inessential lines that doesn’t make any sense.i will figure it out to make my essay taking help from other websites.

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  2. Thanks a lot for this…
    Really this is great and it helped me a lot to complete my Essay in hindi ……
    Once again I would like to say thank you ………………………………………………………………..🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏☺️☺️☺️☺️☺️☺️☺️😄☺️☺️☺️😄☺️☺️

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  3. Very nice essays and beautiful lines….thank u soooo much….it really this lines helped me for completing my hindi essay….ttttyyyyysssssmmmmm…..😘😘🤗🤗👍👍👍👍👌👌👌👌👏👏👏👏

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