प्रदूषण की समस्या पर निबंध

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प्रदूषण की समस्या पर निबंध।
pradushan ki samasya par nibandh

विश्व की सबसे गंभीर समस्या है “प्रदूषण” भारत में भी वायु प्रदूषण दिन -प्रतिदिन बढ़ता चला जा रहा है। आज भारत और कई देशों में वायु, जल, और मिटटी का प्रदूषण सर चढ़कर बोल रहा है। भारत में बड़ी -बड़ी सड़कों का निर्माण करने की वजह से वृक्षों को नियमित रूप से काटा जा रहा है। सड़कों पर प्रति दिन और रात भागते हुए वाहन और गाड़ियां जहरीली गैस छोड़ती है। यह जहरीली गैस वायु को प्रदूषित कर देता है। यह वायु में जलीय वाष्प के साथ मिलकर वायु को भयंकर रूप से प्रदूषित करता है। रोज़ हम इसी वातावरण में सांस लेते है और जीते है। वायु प्रदुषण से हमारे शरीर को काफी नुक्सान पहुँचता है। बड़े-बड़े शहरों जैसे दिल्ली, मुंबई और कोलकाता में भारी मात्रा में वायु और जल प्रदूषण के नतीजे मिल रहे है। दिल्ली प्रदूषण के मामले में सबसे ऊपर है।

इससे जीव-जंतुओं और मनुष्य को कई सारी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। वायु प्रदूषण से कई तरह की बीमारियां मनुष्य को हो रही है। ध्वनि प्रदूषण भी एक गंभीर समस्या है। सड़कों में बढ़ते हुए गाड़ियों की ध्वनियों से मनुष्य को घुटन और सरदर्द जैसी बीमारियां होती रहती है। मनुष्य की स्वार्थ भावना की वजह से प्रदूषण जैसी समस्याएं उतपन्न हो रही है। मनुष्य बड़ी -बड़ी इमारतें और कारखाने बनाने के लिए वनो और वृक्षों को निर्दयता पूर्वक काट रहे है। वृक्षों की वजह से वर्षा होती है। वर्षा की मात्रा पृथ्वी पर प्रदूषण की वजह से कम होती जा रही है। वृक्ष और पेड़ पौधे अगर जीवित रहेंगे तो प्रदूषण की समस्या से हम निपट सकते है।

कल-कारखानों से बढ़ता हुआ धुंआ प्रदूषण में आग में घी की तरह काम कर रहा है। इस पर मनुष्य जाति को आवश्यक कदम उठाने होंगे। मनुष्य को समझना होगा की सिर्फ तकनीकी उन्नति और आर्थिक विकास के लिए वह प्रकृति को दाव पर लगा रहा है। हमे अपने प्राकृतिक संसाधनों की कदर करनी चाहिए। हम प्राकृतिक संस्धानों को बिना सोचे समझे उसका गलत उपयोग कर रहे है और नतीजा हम सबके समक्ष है।

जल प्रदूषण भी एक घोर गंभीर मनुष्य द्वारा उतपन्न की हुई समस्या है। भारत की कई नदियाँ फ़ैक्टरिओं के कचड़े और प्रदूषित, नुकसानदेह रसायन तत्वों को झेल रही है। इसके साथ गांव और कई जगह पर लोग खुले में शौच, कपड़े धोना और पशुओं को नहलाते है। जिससे नदियाँ और पोखर का पानी असवभाविक रूप से प्रदूषित हो रहा है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो नदियों का स्वच्छ जल प्रदूषित होने के कारण मनुष्य बिमारियों से घिर जाएगा। जल प्रदूषण से कई तरह की पेट की बीमारियां हो रही है और होती आयी है। किसान खेतों में कई रासायनिक पदार्थों का उपयोग करता ताकि फसल बहुत अच्छे पैमाने पर विकसित हो। लेकिन यह रासायनिक तत्व जल के नालो के माध्यम से नदियों तक पहुँच कर जल को दूषित कर देता है। जल के प्रदूषित होने से जल में रहने वाले जीव मर जाते है।

जनसंख्या वृद्धि और विज्ञान और तकनीकी उन्नति ने प्रदूषण जैसे संकट को पृथ्वी पर निमंत्रण दिया है। वायु प्रदूषण से फेफड़ों की बीमारियां होती है और लोगों को सांस लेने में दिक्क्त होती है। लाउड स्पीकर और बसों के ऊँचे ध्वनियों के कारण लोगों को सुनने में तकलीफ होती है और इससे तनाव उतपन्न होता है।

प्रदूषण की वृद्धि में फ्रिज, वातानुकूलित यन्त्र और कई प्रकार इलेक्ट्रॉनिक मशीन ज़िम्मेदार है। प्रदूषण से ग्लोबल वार्मिंग यानी वैश्विक तापमान की वृद्धि हो रही है। अंटार्टिक में जमी हुई बर्फ पिगल रही है जिससे समंदर का स्तर विश्वभर में बढ़ रहा है। इससे प्राकृतिक आपदाएं यानी बाढ़ जैसी समस्याएं उतपन्न हो रही है।

निष्कर्ष

जितनी पृथ्वी पर हरियाली और पेड़ -पौधे खत्म होंगे उतना ही यह प्रदूषण अपनी चरम सीमा पर होगा। प्रदूषण को रोकने लिए अभी मानव जाति जागरूक हुई है लेकिन और जागरूक होने की आवश्यकता है।

जहाँ हम वृक्ष काटे वहां पांच पौधे अवश्य लगाए। वृक्षारोपण बहुत ही एहम माध्यम है। लोगों में प्रदूषण के खिलाफ जागरूकता फैलाये। कल -कारखानों का निर्माण मनुष्यों के घरों और सार्वजनिक जगहों से दूर हो ताकि प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सके। कल-कारखानों को ज़रूरी सुचना दी जाए की वह रसायनभरे तत्वों को  सीमित मात्रा से प्रवाहित करे ताकि प्रकृति और उनके जीवो को कोई नुक्सान ना पहुंचे। हम सभी को यह निश्चित रूप से एक जुट होकर प्रदूषण कोजड़ से मिटाने की हर मुमकिन छोटी से छोटी कोशिश करनी चाहिए। प्रदूषण पर पूर्ण रूप से अंकुश लगाने के लिए मनुष्य को वह सारे कार्य बंद करने होंगे जो प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है। पृथ्वी और प्रकृति के हित के लिए प्रदूषण को नियंत्रित करने की आवशयकता है।



pradushan ki samasya par nibandh image
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प्रदूषण की समस्या 400 शब्दों में
Pradushan ki samasya Hindi mai

वैज्ञानिक उन्नति के साथ-साथ प्रदूषण की समस्या भी बढ़ती जा रही है। भौतिक सुखों को प्राप्त करने के लिए आवश्यकता या औद्योगीकरण के चक्कर में अनेक छोटे-बड़े, कल-कारखानों और उद्योगों की स्थापना की गई। जनसंख्या में अनवरत् वृद्धि के कारण ग्राम, नगर और महानगरों का विस्तार हुआ। बिना किसी पूर्वनिर्धारित योजना के नगर बसने लगे। इसके लिए जंगलों को काटकर साफ कर दिया गया। कल-कारखाने दिन-रात धुआँ उगलने लगे जिससे प्रदूषण होने लगा। इन उद्योगों में उत्पादित बेकार पदार्थों को नदियों में डाला जाने लगा। फलस्वरूप दूषित वातावरण का निर्माण होने लगा और जन स्वास्थ्य में भारी गिरावट आने लगी।

कल-कारखानों के निरंतर स्थापित होते जाने और जंगलों की अंधाधुंध कटाई के कारण जीव-जन्तु समाप्त हो रहे हैं, कुछ प्राणी तो प्रायः लुप्त हो गए हैं। यही कारण है कि प्रकृति की स्वभाविक क्रिया में असंतुलन उत्पन्न होने लगा है और उसकी शोधक क्षमता शिथिल हो गई है। कारखाने दूषित और अनियन्त्रित जल तथा अन्य बेकार पदार्थ बाहर निकाल, दुर्गन्धयुक्त गैस फैलाकर वायु को दूषित कर रहे हैं।

वायु-प्रदूषण से मानव के अस्तित्व के लिए एक बड़ा खतरा उत्पन्न हो रहा है। दूषित वायु में साँस लेने के कारण फेंफड़ों के रोग पनपते हैं, आँखे खराब होती हैं। यातायात के साधनों और मशीनों के शोर से ध्वनि प्रदूषण फैलता है। जिससे कान बहरे हो जाते है। इस तरह मनुष्य कई मानसिक एवं शारीरिक रोगों से ग्रस्त होता जा रहा है।

वैज्ञानिक उन्नति और औद्योगिकरण के वर्तमान वातावरण में हम एक तरफ तो प्राकृतिक साधनों को नियन्त्रित कर रहे हैं और दूसरी ओर स्वयं कृत्रिमता की चकाचौध से अंधे होकर उसके पीछे भागते जा रहे है, अतः इससे बचने के लिए हमें प्राकृतिक और मानव-निर्मित कृत्रिम वातावरण में संतुलन कायम करना होगा, ताकि प्रकृति का सुन्दर स्वरूप बना रहे और मानव सभ्यता के विकास की सम्भावनाए भी बनी रहे।

ग्रामीण जीवन की खुशहाली पर महानगरों का जीवन आश्रित है। ग्रामीण संस्कृति को भी नगरीय संस्कृति के सामने फलने-फूलने का अवसर प्राप्त होना चाहिए। कारखानों को शहरों, नगरों से दूर स्थापित किया जाना चाहिए। जिससे उनसे निकलने वाला धुआँ, जहरीली गैस का प्रभाव लोगों तक न पड़े। मानव को साँस लेने के लिए शुद्ध आक्सीजन मिलती रहे। वायु प्रदूषण को रोकने के लिए खाली भूमि पर अधिक से अधिक संख्या में वृक्षारोपण करना चाहिए। लोगों को अपने आवास के आस-पास पेड़ लगाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। सौर ऊर्जा का प्रयोग करना चाहिए, जिससे अनावश्यक शोर न हो। यह सब तरीके अपनाने के बाद हम अपनी पृथ्वी को प्रदूषण से मुक्त कर सकेंगे और साथ ही साथ इसे स्वच्छ भी रख सकेंगे।

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