गुरु तेग बहादुर पर निबंध

प्रस्तावना

हमारे देश की भारतीय संस्कृति महान है। इस देश के इतिहास-पुरुषों ने ‘ग्रहण’ के बजाय ‘त्याग’ का मार्ग अपनाया। नानक हों या गुरु गोबिंद सिंह, भगत सिंह हों या राजगुरु, उनका जीवन अपने लिए नहीं दूसरों के लिए सदा समर्पित रहा था। भारत में मुसलमानों के अत्याचारों से पीड़ित भारत की जनता को मुक्ति दिलाने के लिए सिक्ख गुरुओं का बलिदान अविस्मरणीय है। इन्हीं बलिदानों में गुरु तेग बहादुर का बलिदान और बलिदान हमारे इतिहास का एक गौरवशाली और अमिट अध्याय है।

गुरु तेग बहादुर का जीवन परिचय

गुरु तेग बहादुर जी का जन्म 1621 ई. में अमृतसर में सिक्खों के आठवें गुरु श्री हरगोबिंद जी के घर हुआ था। गुरु हरगोबिंद जी के पांच पुत्र थे। जिनमें से गुरु तेग बहादुर जी सबसे छोटे थे। गुरु हरगोबिंद जी को उन्हें गद्दी देने का विचार नहीं था। गुरु तेग बहादुर आध्यात्मिक रंग में ही रंगे हुए थे। जिस कारण उनका सामाजिक जीवन मौन था।

गुरु तेग बहादुर जी ने गद्दी पर बैठते ही सिक्खों को संगठित कर आनंदपुर नामक स्थान की स्थापना की और जगह-जगह घूमकर अपने विचारों का प्रचार-प्रसार किया। गुरु जी बंगाल, बिहार, असम आदि अनेक स्थानों पर गए। गुरु गोबिन सिंह जी का जन्म पटना में गुरु तेग बहादुर जी के घर हुआ।

गुरु तेग बहादुर का त्याग

भारत के वीर सपूत सिक्खों ने नवम गुरु तपस्या की मूर्ति, भक्ति की मूर्ति, गुरु तेग बहादुर को बनाया। जिनका आगमन भारत में औरंगजेब के शासन में हुआ था। औरंगजेब सबको मुसलमान बनाना चाहता था। धर्म की दृष्टि से वह बड़ा संकीर्ण और कट्टर था। वह हिंदुओं को मुसलमान बनाने के लिए तरह-तरह के अत्याचार कर रहा था।

लोग उसके अत्याचारों से भयभीत थे। हिन्दुओं में खलबली मच गई। अपना बचाव करना कठिन था। ऐसे समय में गुरु तेग बहादुर जी ने जाति, देश और धर्म को बचाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। गुरु तेग बहादुर ने अत्याचार का जवाब अत्याचार से नहीं बल्कि त्याग से दिया।
 24 नवम्बर 1675 को दिल्ली के चांदनी चौक पर गुरु तेग़ बहादुर जी का शीश काट दिया गया। गुरु तेग़ बहादुरजी की याद में उनके ‘शहीदी स्थल’ पर गुरुद्वारा बना है, जिसका नाम गुरुद्वारा ‘शीश गंज साहिब’ है।

गुरु तेग बहादुर जी के उपदेश

गुरु तेग बहादुर जी एक धर्मगुरु ही नहीं एक अच्छे साहित्यकार भी थे। उन्होंने स्वयं अनेक प्रकार की रचनायें कीं और साहित्यकारों का सम्मान भी किया। कविता की भाषा अत्यंत सरल है, भावों में प्रवाह है और कविता का विषय धार्मिक है।

सिख गुरु ने ग्रंथ साहिब के लिए कई भजन लिखे। उनके अन्य कार्यों में 116 शबद, 15 राग और 782 रचनाएं शामिल हैं। जिन्हें पवित्र सिख ग्रंथ साहिब में भी जोड़ा गया था। उन्होंने ईश्वर, मनुष्य, रिश्ते, मानवीय स्थिति, शरीर और मन, भावनाओं, सेवा, मृत्यु और गरिमा जैसे विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला के बारे में लिखा।

निष्कर्ष

इस प्रकार गुरु तेग बहादुर सिख धर्म के होते हुए भी समस्त धर्मों की रक्षा के लिए आगे बढ़े। बिना किसी हिचक के उन्होंने अपने जान की बाजी लगा दी। गुरु तेग बहादुर हमेशा समस्त धर्मों के ईश्वर को समान मानते थे। उन्होंने सभी लोगों को परमात्मा की संतान बताया। वास्तव में गुरु तेग बहादुर का जीवन सदा अविस्मरणीय तथा प्रेरणादायक रहेगा।

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