महिला दिवस पर निबंध

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दोस्तों, हम सभी यह बात भलीभांति जानते हैं कि महिलाओं यानि नारी के बिना यह सर्वजगत अधूरा है। लेकिन कुछ रूढ़िवादी सोच के कारण महिलाओं को कभी कभी हीनता का शिकार भी होना पड़ता है। महिलाओं की स्थिति सुदृढ़ और उनके सम्मान के लिए हर वर्ष 8 मार्च को महिला दिवस मनाया जाता है।

अतः आज हम अपने इस लेख के माध्यम से आपके लिए महिला दिवस पर निबंध लेकर प्रस्तुत हुए हैं। यह निबंध आपको महिलाओं की पराकाष्ठा तथा स्वाधीनता से परिचित कराएगा। आइए जानते हैं, महिला दिवस पर निबंध….

दुर्गा जैसा शौर्य है तुझमें
तुम वीरों की माता हो,
ममता की जीवित मुहूर्त हो,
भारत की वह नारी हो।।

प्रस्तावना

मनुस्मृति में नारी के संबंध में एक उक्ति मिलती है, यंत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता। अर्थात जहां नारियों की पूजा होती है वहां देवताओं का निवास रहता है। इस कथन का मूल मंत्र हुए है समाज को नारी का आदर करने के लिए प्रेरणा देना, क्योंकि जहां नारी का आदर सम्मान किया जाता है वही सुख समृद्धि एवं शांति रहती है। महिला व पुरुष समाज रूपी गाड़ी के दो पहिए है यदि इनमें से एक पहिया निकल जाएगा तो गाड़ी नहीं चल पाएगी। यही कारण है कि समाज में महिलाओं का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है।

प्राचीन काल में नारी का स्थान

प्राचीन काल में भारतीय समाज में नारी को अत्यंत महत्व प्रदान किया जाता रहा है। उपनिषदों में प्रतिपादित किया गया है कि धार्मिक अनुष्ठान बिना पत्नी के अधूरे माने जाते थे इसीलिए राम जी ने अश्वमेध यज्ञ समय सीता की स्वर्ण प्रतिमा बनवाई थी। प्राचीन भारत में नारी शिक्षा का भी विधान था। इसका प्रमाण है विदुषी नारियां मैत्रेयी, गार्गी विद्योत्तमा, अनुसूया आदि। जिन्होंने बड़े-बड़े विद्वानों को भी परास्त किया। सीता, सावित्री, शकुंतला को नारी रत्न माना गया है जिन्होंने अपने कार्य एवं व्यवहार से संसार के समक्ष आदर्श महिला का रूप उपस्थित किया है। वहीं प्राचीन भारत में नारी को अनेक अधिकार प्राप्त थे।

वर्तमान में महिलाओं का वर्चस्व

प्राचीन काल में नारी की समाजिक भूमिका का उल्लेख करते हुए कवि कालिदास ने महिला को गृहणी, सचिव, प्रियसखी कहा है। मध्यकाल में आकर नारी की स्थिति अत्यंत सोचनीय हो गई। उसे घर की चारदीवारी में बंद होने को विवश होना पड़ा। दुश्मनों का शासन स्थापित हो जाने पर देश में पर्दा प्रथा का प्रचलन हुआ और नारी की स्वतंत्रता पर अंकुश लग गया। उसे यथासंभव घर के कामकाज तक सीमित कर दिया गया।बाल विवाह सती प्रथा का पर्दा प्रथा जैसी सामाजिक बुराइयों का जन्म भी इसी काल में हुआ।

परंतु आधुनिक काल में पुनः नारी के गौरव की प्रतिष्ठा हुई। स्वतंत्रता संग्राम में नारियों की महत्व भूमिका रही। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अपने अपूर्व शौर्य का परिचय देकर महिला की शक्ति का बोध कराया, तो वहीं सरोजिनी नायडू, विजयलक्ष्मी, पंडित कस्तूरबा कमला नेहरू जैसी नारियों ने अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष में सक्रिय भूमिका निर्वाह किया। वर्तमान में हर एक महिला अपने क्षेत्र में प्रगति कर रही है। साथ ही अपनी शक्ति का प्रबल इस्तेमाल करने में सक्षम हो चुकी है।

महिला दिवस की शुरुआत

महिलाओं की आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक उपलब्धियों के उपलक्ष्य के तौर पर महिला दिवस मनाया जाता है। हर वर्ष दुनिया भर में 8 मार्च अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। इस दिन महिलाओं के प्रति सम्मान, प्यार और उनमें एक नई चेतना जागरूक करने की पहल की जाती है। 8 मार्च को महिला दिवस विश्व स्तर पर मनाया जाता है। इसके अतिरिक्त भारत में भी महिला दिवस मनाया जाता है। जो कि राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में आयोजित होता है। महिला दिवस के दिन लोग वास्तविक तौर पर महिलाओं के सच्चे महत्व और मूल्य को स्वीकार करते हैं।

निष्कर्ष

महिला दिवस मनाने से उच्च स्तर पर समाज में नारी के प्रति दृष्टिकोण में बदलाव आया है। बेटियों का लालन-पालन जागरूक परिवार में बेटों के समान किया जाने लगा है। चाहे ज्ञान विज्ञान का क्षेत्र हो, चाहे कला उद्योग का क्षेत्र हो, चाहे खेलकूद का क्षेत्र हो महिलाओं ने अपनी प्रतिभा का डंका संपूर्ण क्षेत्र में बजाया है।

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