घुड़दौड़ पर निबंध

घुड़दौड़ खेल बेहद ही प्राचीन क्रिया है। आज घुड़दौड़ खेल के रूप पूरे विश्व में लोकप्रिय है। अतः आज इस लेख के माध्यम से हम आपके लिए घुड़ दौड़ खेल पर निबंध लेकर प्रस्तुत हुए हैं। इस निबंध में आपको अश्वधावन अथवा घुड़दौड़ से संबंधित विभिन्न जानकारी प्राप्त होगी।

प्रस्तावना: घुड़दौड़ या अश्वधावन घोड़ों की रेस की प्रतियोगिता है। जिसमें घोड़े की नस्ल, वजन आदि के आधार पर भिन्न भिन्न वर्गो के तहत प्रतियोगिता कराई जाती है। घोड़े के ऊपर घुड़सवार द्वारा घोड़े का नियंत्रण संभाला जाता है। दौड़ को जीतने वाले घोड़े को तथा सवार को विजेता घोषित किया जाता है। दुनिया भर के देशों ने अपने अपने स्तर पर घुड़सवार खेल में परिवर्तन किए तथा दौड़ की दूरी तय की।

घुड़दौड़ का इतिहास: घुड़दौड़ का इतिहास पुरातत्व व प्राचीन काल का है। प्राचीन ग्रीस, प्राचीन रोम तथा प्राचीन मिस्त्र साथ ही अमेरिका में भी घुड़ दौड़ में विशेष रुचि दिखाई गई। स्पर्धा के रूप में घुड़दौड़ का पहला लिखित साक्ष्य 648 ई पूर्व 23 वीं ओलंपिक प्रतियोगिता में मिलता है। इसके 40 वर्षों के पश्चात् 33 वें ओलंपिक में प्रथम बार घुड़दौड़ प्रतियोगिता हुई। यूनान तथा रोम जैसे देशों में अश्वधावन बेहद प्रचलित तथा उनके ए था। इसके साथ ही ग्रेट ब्रिटेन में घुड़दौड़ का एक प्रतियोगिता के रूप में चलन रोमन अधिपत्य काल में हो गया था।
पिछले कुछ समय में इस खेल ईसाई धर्म के विरुद्ध माना जाने लगा था, परंतु इस खेल की रोचकता के चलते आज ही खेल विश्व भर में खेला जाता है। अश्वधावन आधुनिक स्तर पर, 1833 के समय फ्रांस में भी तेजी से प्रचलित हुआ था।

घुड़दौड़ के प्रकार:-

घुड़दौड़ खेल प्रतियोगिताओं में विभिन्न प्रकार के रूपों को शामिल किया जाता है। जो कि कुछ इस प्रकार हैं :

  1. फ्लैट रेसिंग- इसके अन्तर्गत दौड़ने वाले घोड़े सीधे या अंडाकार ट्रैक के चारों ओर सफेद पंक्तियों के मध्य तेजी से दौड़ते हैं। इस प्रकार की रेस भारत में अधिक देखी जाती है।
  2. धीरज रेसिंग- इस दौड़ में घोड़े देश की अत्यधिक दूरी तक दौड़ लगाते हैं। सामान्य तौर पर 25 से 100 मील तक की घुड़दौड़ तय की जाती है।
  3. हॉर्नेस रेसिंग- इसके अन्तर्गत एक चालक को खीज में खींचते हुए घोड़े दौड़ लगाते हैं।
  4. कूद दौड़- यह दौड़ कूदने के रूप में जानी जाती है। इसके अन्तर्गत घुड़दौड़ की ट्रैक पर कुछ जंपिंग बैरियर लगाते है जिसमें से घोड़े कूदते हुए दौड़ते हैं। दौड़ की एक और श्रेणी होती है जिसे विंकलाग दौड़ भी कहा जाता है, इसमें प्रत्येक घोड़े को उसकी क्षमता के आधार पर वजन दिया जाता है। वजन आवंटित करने वाली रेस को कंडीशन रेस कहा जाता है। इन अलग-अलग घुड़दौड़ के प्रकार में घोड़े की विभिन्न नस्लें उत्कृष्टता प्राप्त करते हैं।

घुड़दौड़ में उपयुक्त उपकरण:-

घुड़दौड़ के दौरान विभिन्न वस्तुएं आवश्यक रूप से प्रयोग में लाई जाती हैं। जो कि इस प्रकार हैं –

  1. कील, एक ऐसी वस्तु है जो पालतू घोड़े तथा अन्य घोड़े को सुसज्जित करने में सहायक वस्तु के रूप में प्रयोग की जाती है। काठी, रकाब, बागडोर, कवच आदि कील के रूप हैं।
  2. काठी एक ऐसा उपकरण है जो घोड़े की पीठ पर बांधा जाता है। यह घोड़े सवार के लिए लगाई जाती है। ताकि सवार ठीक तरीके से घोड़े पर बैठ सके। काठी के भी अलग अलग रूप होते हैं जैसे कि रेसिंग काठी, ऑस्ट्रेलियन काठी, धीरज काठी आदि।
  3. इसके साथ ही काठी में ही ब्रेस्टप्लेट, बालातंग, दुमची, काठी कम्बल की सहायता ली जाती है।
  4. रकाब, काठी के दोनों ओर लटकते हैं तथा घुड़ सवार के पैरों को सहारा देते हैं।
  5. सिर का कॉलर, घोड़े के सिर के चारों ओर की पट्टियों के विभिन्न व्यवस्थाओं से मिलकर बनता है।
  6. लगाम, घोड़े के सिर पर लगने वाले कॉलर अथवा ब्रिडल्स से जुड़ा होता है। इसके माध्यम से जानवर पर संचार नियंत्रण बना रहता है।
  7. इसके अतिरिक्त घोड़े की नाल तथा कोड़ा आदि वस्तुएं भी घुड़ सवारी के दौरान प्रयोग में लाई जाती हैं।

निष्कर्ष: राजा महाराजाओं के समय से घुड़सवार खेल प्रचलित है। आधुनिक समय में अमेरिका तथा फ्रांस जैसे देशों में यह खेल लोकप्रिय बना हुआ है। भारत के भी कई स्थानों पर घुड़सवार खेल की प्रतियोगिताएं आयोजित कराई जाती हैं। यह खेल लोगों के शौक तथा मनोरंजन का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

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