भारत का पावर सेक्टर एक बड़े संकट से गुजर रहा है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि कोयले से चलने वाले पावर प्लांट, जो कि भारत की 70% बिजली पैदा करने के लिए जिम्मेदार हैं। कोयला सबसे अधिक मात्रा में पाए जाने वाला जीवाश्म ईंधन है। इसका उपयोग घरेलू ईंधन के रूप में लोहा, इस्पात, भाप इंजन जैसे उद्योगों में और बिजली पैदा करने के लिए किया जाता है। कोयले से उत्पन्न बिजली को ‘थर्मल पावर’ कहते हैं। बता दें, कोयला एक ठोस कार्बनिक पदार्थ है, जिसको ईंधन के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। ऊर्जा के प्रमुख स्रोत के रूप में कोयला अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। कुल प्रयुक्त ऊर्जा का 35% से 40% भाग कोयलें से प्राप्त होता हैं। कोयले से अन्य दहनशील और उपयोगी पदार्थ भी प्राप्त किए जाते हैं। आज हम इस लेख में कोयले की कमी या बिजली की आपूर्ति पर ही बात करेंगे।
कोयले की कमी के पीछे का कारण क्या है?
देश में कोयले से चलने वाले पावर प्लांट्स द्वारा उत्पन्न 70% बिजली में से लगभग तीन-चौथाई बिजली, घरेलू खनन कोयले का उपयोग करके उत्पन्न होती है। वहीं, बची हुई चौथाई ऊर्जा आयात किए हुए कोयले का उपयोग करके उत्पन्न की जाती है।
दुनिया के कई हिस्सों में अर्थव्यवस्थाएं तेजी से बढ़ती जा रही हैं, जिससे कोयले की आयात की मांग भी बढ़ती जा रही है।
भारत दुनिया की सबसे बड़ी कोयला खनन कंपनी का दावा करता है, मगर भारत में प्रति व्यक्ति खपत अभी भी कम है।
कोयले का इस्तेमाल स्टील बनाने के लिए ब्लास्ट फर्नेस में किया जाता है। ये घरेलू स्तर पर उपलब्ध नहीं होता है। इसकी लगातार कमी है।
बिजली की इतनी कम आपूर्ति का मुख्य कारण कोयले की ही कमी है।
कोयल की कमी से पड़ने वाले प्रभाव
अगर ऐसे ही उद्योगों को बिजली की कमी का सामना करना पड़ रहा है, तो इससे भारत के आर्थिक क्षेत्र की बहाली में देरी हो सकती है।
चाहे तो कुछ व्यवसाय उत्पादन को कम भी कर सकते हैं।
भारत की आबादी और अविकसित ऊर्जा बुनियादी ढांचे के कारण लंबी अवधि तक गंभीर बिजली संकट की स्थिति रह सकती है।
कोयला संकट कैसे गहराया?
कोयले का आयात घटना इस संकट की सबसे बड़ी वजह है। दुनिया के दूसरे सबसे बड़े कोयला आयात भारत ने पिछले कुछ सालों से लगातार अपना आयात घटाने की कोशिश की है। मगर इस दौरान घरेलू कोयला सप्लायर्स ने उतनी ही तेजी से अपना उत्पादन बढ़ाया नहीं है। इससे सप्लाई गैप पैदा हुआ। बता दें, अब इस गैप को सरकार चाहकर भी नहीं भर सकती है। इसकी सबसे बढ़ी वजह रूस-यूक्रेन युद्ध… इनकी वजह से इंटरनेशनल मार्केट में कोयले की कीमत 400 डॉलर यानी कि 30 हजार रुपए प्रति टन के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई हैं।
कोयले की कमी के पीछे कौन है जिम्मेदार?
CIL के अनुसार बात करें, तो इस संकट के लिए थर्मल पावर प्लांट्स जिम्मेदार हैं। बता दें, कोयले के स्टॉक में गिरावट आई, क्योंकि पावर यूटिलिटी ने ऐसा होने दिया। साथ ही CIL ने कहा कि वित्त वर्ष की शुरुआत में कोयले का स्टॉक 28.4 मीट्रिक टन के स्तर पर था।
निष्कर्ष
कोयले और बिजली की कमी देश में लगातार बढ़ती जा रही है। ऐसे में हमें ध्यान देना होगा कि हम बिजली का प्रयोग उतना ही करें, जितनी हमें जरूरत है। यदि हम अभी से बचत नहीं करेंगे तो आने वाले समय में हमारी आगे की पीढ़ी को बिना बिजली के ही जीवन व्यतित करना होगा। भारतीय रेलवे कोयले की बढ़ती मांग को पूरा करने और अपनी माल ढुलाई में विविधता लाने के लिए कथित तौर पर अगले तीन से पांच सालों में एक लाख अतिरिक्त वैगन खरीदने की योजना बना रहा है। इसलिए हमें अभी से कोयले और बिजली की बचत पर ध्यान देना होगा।