प्रस्तावना: सिनेमा लोगो के मनोरंजन का महत्वपूर्ण साधन है। लोगो के दैनिक थकान और तनाव को दूर करने के लिए सिनेमा एक उत्तम साधन है। आजकल के युवाओं पर सिनेमा का गहरा असर देखने को मिलता है। सन १८९५ में एडिसन ने एक उपकरण की मदद से चित्रों को एक एक बाद चलते हुए दिखाया था। फिर उन्नीसवीं शताब्दी में जाकर फिल्मो का आविष्कार हुआ। सबसे पहली फ्लिम वर्ष १९२८ में बनी थी। इसका नाम लाइट्स ऑफ़ न्यूयोर्क था। पहले फिल्मो में इतने अधिक आधुनिक तकनीकों का उपयोग नहीं किया जाता था।
अभी विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने काफी उन्नति कर ली है। पहले फिल्मो के दृश्य इतने साफ़ और प्रत्यक्ष रूप से स्पष्ट नहीं होते थे।पहले ब्लैक एंड वाइट फिल्मो का ज़माना था। अब ऐसा नहीं है अभी रंगीन फिल्में और उच्चकोटि ध्वनि और साउंड इफेक्ट्स का इस्तेमाल फिल्मो में किया जाता है।
सिनेमा समाज में हो रहे गतिविधियों का आईना है। सिनेमा से लोगो का केवल मनोरंजन ही नहीं होता बल्कि उनकी जिन्दगी पर गहरा प्रभाव पड़ता है।जीवन के विभिन्न पहलुओं पर , समस्याओं पर भावनाओ पर , सत्य आधारित घटनाओ पर फिल्मो का निर्माण होता है।
लोगो का सिनेमा के प्रभावों पर अलग अलग राय है। कुछ लोगो को लगता है कि सिनेमा देश की संस्कृति पर बुरा प्रभाव डालते है।कुछ लोगो को यह लगता है सिनेमा जीवन में होने वाले सही पहलुओं और मुद्दों को सामने लाता है।लोगो को सच्चाई से रूबरू करवाता है।
समाज में रहने वाले कुछ लोगो का मानना है कि सिनेमा में कभी कभी अश्लील चीज़ें दिखाई जाती है। इससे लोगो की मानसिकता और सोच पर बुरा असर पड़ता है।लेकिन यह कहना कि सिनेमा का लोगो पर खाली गलत असर पड़ता है। यह बिलकुल गलत है। सिनेमा लोगो में जीवन के मुद्दों और समस्याओं को लेकर जागरूकता फैलाता है। इतिहास में देश ने क्या झेला , किसने क्या किया इत्यादि कई विषयो पर रोशनी सिनेमा ने डाली है।
सिनेमा के माध्यम से लोगो को अच्छे और बुरे का फर्क मालुम पड़ता है।समाज में हो रहे कुरीतियों के बुरे असर पर फिल्में बनती है। इससे दर्शको को पता चलता है कि कुरीतियों को मिटाकर नयी सकारात्मक सोच को अपनाना चाहिए ।सिनेमा को केवल दोष देना गलत होगा। यदि कुछ दर्शक बुरे चीज़ो को अपनाये और अच्छे विचारो , सोच का त्याग करे , उसमे सिनेमा की कोई गलती नहीं है।
समाज में पनप रहे बुराईयों जैसे हिंसा , चोरी , लूटपाट इत्यादि को मिटाने की कोशिश सिनेमा भली भाँती करता है। इससे लोग बुराईयों से परिचित होते है और इसके प्रति जागरूक हो जाते है।सिनेमा में इन बुराईयों का पुरजोर विरोध किया जाता है।
सन १९१३ को दादा साहेब ने सर्वप्रथम एक मूक फिल्म बनाई थी। उस फिल्म का नाम राजा हरिश्चंद्र था। यह हमारे देश की पहली फिल्म थी। तब वह ज़माना था जहां फिल्मो में काम करने को अच्छा नहीं माना था। तब महिलाओं का सिनेमा जगत में काम करना अत्यंत बुरा समझा जाता था।
सिनेमा द्वारा देशभक्ति और देश प्रेम का सन्देश दिया जाता है। सिनेमा सभी तरह के पहलुओं का एक दर्पण है।सिनेमा सामाजिक बुराईयों और अत्याचारों को दूर करता है।सिनेमा लोगो को आईना दिखाता है कि उनके आस पास भ्रष्टाचार और बुराईयां फैली हुयी है। उनसे वह वाकिफ हो जाए और अपनी ओर से सचेत रहे।
पहले इतिहास संबंधित फिल्में ज़्यादा बनती थी। लेकिन वक़्त के साथ – साथ सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर फिल्में भी बनी। बड़े बड़े स्वाधीनता सेनानियों पर भी फ्लिमें बनी जिससे हम देशवासियों को उनके बलिदानो के बारे में जानने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इसी तरह दुनिया से संबंधित समस्याओं पर भी फिल्में बनी जिससे हमें बहुत सारे चीज़ों को करीब से जानने का मौका मिला।
आजकल फिल्म निर्माता आधुनिक , राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर फिल्में बनाते है। इससे दर्शको को आस पास हो रहे अन्याय और भ्रष्टाचार के विषय में जानकारी मिलती है। ऐसे कई बड़े बड़े फिल्म निर्माता है जिनके फिल्मो में सही मुद्दे जैसे देश में हो रहे अपराधों और आम लोगो पर अत्याचार इत्यादि देखने को मिलता है।
हमारे देश में कई भाषाओं जैसे हिंदी , गुजराती , तमिल , तेलुगु , भोजपुरी , बंगाली , मलयालम , कन्नड़ इत्यादि भाषाओं में फिल्में बनती है। कुछ दक्षिण भारतीय फ्लिम निर्माता अपनी फ्लिमों को कई भाषाओं में डब करके दर्शको को दिखाते है। इससे उनका मुनाफा और अधिक बढ़ जाता है।
हमारे देश के कई फिल्मो में हिंसा और अश्लील चीज़ें दिखाई जाती है जिससे युवाओं पर गलत असर पड़ता है। इसलिए फ्लिम निर्माताओं को युवाओं की मानसिकता को ध्यान में रखकर फिल्में बनानी चाहिए।बॉलीवुड इंडस्ट्री में हर फिल्मों पर करोड़ो रूपए लगाए जाते है। आजकल नयी युवा पीढ़ी मशहूर होने के लिए और पैसा कमाने के लिए बॉलीवुड इंडस्ट्री में आने की कोशिश करते है।
भारतीय सिनेमा के लिए यह गर्व की बात है कि भारतीय फिल्मो को विश्व स्तर पर पुरस्कार मिल रहा है। भारतीय फिल्मो को ऑस्कर में भी नॉमिनेशन मिला है। आजकल भारतीय सिनेमा जगत के कलाकार हॉलीवुड फिल्में भी कर रहे है। विदेशो में भी भारतीय फिल्मों को देखा जाता है और काफी प्रशंसा भी मिली है।
निष्कर्ष
सिनेमा मनोरंजन का उत्तम साधन है। सिनेमा किसी भी धर्म या वर्ग के लोग साथ मिलकर देख सकते है। जैसे ही श्वेत श्याम फिल्मो की जगह रंगीन सिनेमा ने ली , तब से सिनेमा लोगो में अधिक मशहूर हो गया। सिनेमा देखने के लिए लोग सिनेमाघरों में जाकर टिकट काटते है।सिनेमा समाज के लोगो को प्रभावित करता है। यह लोगो पर निर्भर करता है कि वह किस तरह से प्रभावित होते है।