अभिमान विनाश का कारण है

3.3/5 - (3 votes)

प्रस्तावना

अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है।  अहंकार आज की प्रवृति नहीं है बल्कि मनुष्यो में यह प्रवृति बरसो पुरानी है। पुराने समय से बहुत लोगो ने अपने रूप , रंग , अपने शासन और रुतबे  , अपने घर , अपनी जीत पर अंहकार किया है।  लेकिन यह अंहकार ज़्यादा समय तक टिक नहीं पाया  है। अहंकार की गति जितनी तेज़ होती है , उस मनुष्य का पतन उतनी ही जल्दी होता है। अंहकार यानी घमंड तब होता है जब मनुष्य को लगता है कि इस संसार में उससे ज़्यादा श्रेष्ठ और कोई नहीं है। जब वह यह सोच लेता है तो निश्चित तौर पर वह अपना विनाश खुद कर लेता है।  वह जिस वजह से अहंकार करता है , उस क्षेत्र में तरक्की नहीं कर पाता है। उसकी तरक्की वहीं समाप्त हो जाती है। वह अहंकार में इतना डूब जाता है कि उसे सही गलत , कुछ भी नज़र नहीं आता है। वह अपने ही अहंकार के जाल में फंस जाता है।

जो अहंकार करता है , उसका विनाश निश्चित है।  वह अपने लगाए हुए अंहकार के आग में जलकर भस्म हो जाता है। अगर कोई व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में उत्तम है तो उसे हमेशा और अधिक बेहतर प्रदर्शन करने  के बारे में सोचना चाहिए। अगर वह अपने प्रदर्शन से खुश होकर घमंडी बन जाता है , तो उसकी प्रगति रुक जाती है ।

जिस व्यक्ति ने अंहकार किया है , उसका घमंड वक़्त के साथ चूर चूर हो गया है। परिवर्तन जीवन की प्रक्रिया है।  अगर आज कोई व्यक्ति श्रेष्ठ है , तो उससे भी बेहतर कोई हो सकता है।  इतिहास गवाह है अंहकार करने वाले की हमेशा दुर्गति हुयी है। पहले पुराने वक़्त में रावण महान ज्ञानी के रूप में जाना जाता था।  वह भगवान शंकर के उपासक थे। रावण को अपने ज्ञानी होने पर घमंड था।  इस घमंड ने उसका सर्वनाश किया।

संसार का सबसे बुरा स्वभाव है अहंकार। जिस व्यक्ति के अंदर अहंकार अपनी जगह बना लेता है , उसके सोचने समझने की शक्ति नष्ट हो जाती है। सभी मनुष्य को अहंकार को अपने अंदर पनपने नहीं देना चाहिए। इससे उनकी बुद्धि का सर्वनाश हो जाता है। अहंकारी व्यक्ति को अपने अलावा कुछ दिखता नहीं है।  वह सिर्फ अपने आप से मतलब रखता है और स्वार्थी बन जाता है।  उसके मन में किसी के भलाई करने की बात नहीं आती है।  अहंकारी व्यक्ति सिर्फ अपना फायदा ढूंढता है।

अहंकारी व्यक्ति अपने अहंकार प्रवृति के कारण अपनों को चोट पहुंचाता है। अहंकार के नशे में अँधा होकर वह किसी की भी बेइज़्ज़ती  कर देता है।  वह सबको भावनात्मक तौर पर तकलीफ पहुंचाता है और खुद को अहंकार के अँधेरे में धकेल देता है। वह अहंकार के रास्ते में इतना आगे बढ़ जाता है कि वह वापस नहीं आ पाता है। अहंकारी व्यक्ति अपने अहंकार  को कायम रखने के लिए किसी भी सीमा को पार कर सकता  है।  वह इस बात से बेखबर रहता है कि उसका विनाश नज़दीक है।

अगर व्यक्ति में काबलियत है , गुण है और आर्थिक रूप से सुन्दर और संपन्न है तो उसे अच्छा महसूस करना चाहिए।  उसे घमंड नहीं करना चाहिए। अहंकार व्यक्ति को आगे नहीं बढ़ने देता है।  उसकी उन्नति जैसे रुक जाती है।  वह अपनी प्रशंसा खुद करने लगता है। अपने अंदर हमे अहंकार जैसी भावना को पनपने नहीं देना है। अगर व्यक्ति को सुख -शान्ति के साथ जीवन व्यतीत करना है , तो उसे अहंकार जैसी भावना का त्याग करना होगा।

अहंकारी व्यक्ति अपने से बड़ो की इज़्ज़त नहीं करता है।  उसे लगता है उसे ही ज़िन्दगी के बारे में सब कुछ पता है , कोई और उसकी बराबरी नहीं कर सकता है।  यह सोच उसके अंदर बैठ जाती है और आने वाली ज़िन्दगी में दुखो का पहाड़ टूट पड़ता है।  हमेशा व्यक्ति को जीवन में सकारात्मक सोच लेकर चलना चाहिए और अहंकार जैसी भावनाओ से कोसो दूर रहना चाहिए।

निष्कर्ष

अहंकारी व्यक्ति यह भूल जाता है कि उससे भी अच्छा और उत्तम कोई  हो सकता है।  वह इस बात को मानना नहीं चाहता है कि उससे भी अच्छा और कोई हो सकता है। अहंकारी व्यक्ति अपने ही अहंकार में फंसकर रह जाता है।  हम अगर जीवन में सफल होते है तो उसे आशीर्वाद और प्रोत्साहन के तौर पर लेना चाहिए नाकि अहंकार करना चाहिए। जितना मिले मनुष्य को उसमे खुश और संतुष्ट रहना चाहिए , अहंकार बिलकुल नहीं करना चाहिए।

Leave a Comment