मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना

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यह पंक्तियाँ  है कवि  अलामा इकबाल की है। वे उर्दू के लोकप्रिय शायर थे। देश प्रेम की भावना से कूट कूट कर भरी है यह पंक्तियाँ। इन पंक्तियों ने देशवासियों के दिलो में देश प्रेम की भावना को जगा दिया।  लोग साम्प्रदायिकता की भावना से मुक्त होकर देश को स्वतंत्र करवाने के पीछे अपने आपको समर्पित किया। यह मानवता से भरा हुआ सन्देश है जो भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में दिया गया था। धर्म हमे किसी तरह का भेदभाव और लड़ाई झगड़ा करना नहीं सिखाता है। प्रत्येक धर्म या मजहब के लोग अपने देश को आजाद करवाने के लिए एकजुट हो गए थे । कवि जी की इन पंक्तियों से असल तात्पर्य समझाया है। मजहब एक पवित्र भावना जिसका सम्मान हर नागरिक को करना चाहिए।  धर्म विश्वास की भावना से बंधा हुआ होता है।

धर्म बाहरी दिखावे , बैर भाव की भावना से कहीं ऊपर है। मजहब लोगो को सिखाता है अहिंसा का दामन कभी ना छोड़े और सभी का भला करे। मजहब यह स्पष्ट करता है कि चाहे सभी धर्म के ईश्वर के नाम और रूप अलग हो , लेकिन वह फिर भी एक है और एक सूत्र में बंधे हुए है।

मजहब के नाम पर लड़ना बेवकूफी है। जो लोग मजहब की आड़ में लड़ाई करवाते है , वह स्वार्थी और गलत नियत वाले होते है।  वह विभिन्न जगहों पर दंगे करवाते है। हमारे देश में मजहब का सहारा लेकर ब्रिटिश ने भी काफी दंगे करवाए और जिसमे गलत मंशा रखने वाले लोगो ने अपने हाथ सेंके। हमारे देश में मजहब की वजह से दो टुकड़े हुए और देश विभाजित भी हुआ था। इतिहास से हटकर यदि हम आज वर्त्तमान को गौर से देखे तो मजहब के नाम पर कुछ स्थानों पर दंगे फसाद होते है।  यह सब करके अशांति फैलती है और सभी के मन में डर पनपता है।

हमारे देश में विभिन्न जाति , प्रजाति और अलग अलग संस्कृतियों के लोग निवास करते है।  राजनैतिक दल अपने फायदे के लिए कुछ लोगो को धर्म के नाम पर भड़का देते है। इससे भयानक  स्थिति उतपन्न हो  जाती है।    उन्हें कई हिस्सों में बाँट देते है। मजहब एक गंभीर और संवेदनशील विषय है।  इसके साथ छेड़छाड़ करना अनुचित है।

धर्म के नाम पर देश में कई विवाद और दंगे हुए जैसे अयोध्या में  जन्मभूमि पर बाबरी मस्जिद होने से तनाव जैसे हालत पैदा हुए और मस्जिद को तोड़कर , उस जगह पर राम मंदिर का निर्माण किया गया। यह बात सत्य है कि देश का विभाजन की मांग करने वाले कुछ लोग ही थे जो ब्रिटिश शासको के महज मोहरा थे। जो व्यक्ति मजहब के असली तात्पर्य को समझते थे वह इस विभाजन से असहमत थे।

इतिहास गवाह है कि धार्मिक अन्धविश्वाश के कारण ईसा को भी सूली  पर लटकाया और उन्हें दर्दनाक मौत मिली।  लेकिन फिर भी उन्होंने यही  कहा कि प्रभु इन सभी लोगो को शान्ति , सुख और सद्बुद्धि मिले। ऐसे कितने ही महान लोग है जिन्हे काफी तकलीफो का सामना करना पड़ा लेकिन उन्होंने किसी भी धर्म के विरुद्ध अपशब्द नहीं कहे।

महात्मा गांधी जैसे महापुरुषों ने अपने जीवन का बलिदान दिया मगर मजहब से संबंधित कभी कोई गलत वाक्य और गलत शब्द नहीं कहे। हम किसी भी धर्म  के पुस्तकों को पढ़कर कर देखे तो उसमे पूजा और धर्म से संबंधित पवित्र बातें कही गयी है।  ऐसे किताबो में किसी भी धर्म के विरुद्ध गलत नहीं कहा गया है।  हमे दूसरे लोगो के धर्म और विश्वास का सम्मान करना चाहिए तभी हमे इज़्ज़त मिलेगा। सभी धर्म प्रेम , सदाचार , सच इत्यादि चीज़ो की शिक्षा देते है।  हमारा देश धर्मनिरपेक्षता पर विश्वास करता है। यहाँ लोग स्वतंत्र रूप से किसी भी धर्म को   मान सकते  है।

निष्कर्ष

सभी धर्म को इज़्ज़त देना  यह हमारा कर्त्तव्य है।  लोगो को अपने धर्म का पालन अवश्य करना चाहिए मगर दूसरे मजहब के लोगो का असम्मान नहीं करना चाहिए। एक ही देश में विभिन्न धर्म के लोग रहते है। मजहब हमे यह सिखाता है कि हम किसी को नुकसान ना पहुंचाए। खुद भी ख़ुशी से जीए और औरो को भी ख़ुशी से जीने दे। ईश्वर ने हमे इस संसार में इसलिए भेजा है ताकि हम ख़ुशी से रह सके और लोगो की सहायता कर सके।

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