पुराने वक़्त में खासकर गाँवों में शौचालय का प्रबंध नहीं था। गाँवों के घरो में शौचालय नहीं हुआ करता था। लोगो को शौच करने के लिए बाहर जाना पड़ता था। पहले के लोग घरो में शौचालय रखना पसंद नहीं करते थे। पहले के ज़माने में खुले मैदान और जंगल ज़्यादा हुआ करते थे और अक्सर लोग खुले मैदानों और जंगलो में शौच के लिए जाया करते थे। तब इससे गाँवों में साफ़ सफाई रहती थी। देश की आबादी जैसे ही बढ़ती रही जंगल भी कटने लगे |तब महिलाओं को खासकर बाहर जंगलो में शौच के लिए जाना जैसे असुरक्षा का कारण बन जाता था। पहले जंगलो में शौच करने की वजह से दिक्कत नहीं होती थी और लोगो का मल खाद बन जाता था जो भूमि के लिए अच्छी होती थी ।
लोग जब खुले मैदानों, खेतों और रेल पटरियों पर शौच करते है , इससे गंदगी फैलती है। लेकिन आज कुछ गाँवों के नागरिक शौचालय का उपयोग करते है और प्राचीन काल से चली आ रही इस रीत को थोड़ रहे है जो अच्छा और सकारात्मक कदम है ।
देश की सरकार ने पहले से अधिक स्वच्छता को प्राथमिकता दी है। सरकार के कोशिशों की वजह से गाँवों के घरो में शौचालय बन रहे है। घरो में शौचालय का निर्माण करवाकर खुला शौच और मुक्त गाँव बनने का आरम्भ किया है। अब शहरों में भी बाज़ारो और सड़को के किनारो पर शौचालय का प्रबंध किया गया है।
अब लोग पहले से अधिक जागरूक हो गए है और गाँवों में लोग शौचालय का इस्तेमाल कर रहे है।खुले में शौच करने से अस्वच्छ वातावरण पैदा होता है और साफ़ सुथरे जगह गंदे हो जाते है।खुले में शौच करने से भयंकर बीमारियां होती है।राष्ट्रपति गांधी जी ने स्वच्छता पर बहुत पहले से ज़ोर दिया था। उन्होंने स्वच्छ भारत का सपना बहुत पहले से देखा था। स्वतंत्रता के पश्चात देश ने उन्नति की मगर स्वच्छता पर कुछ ख़ास ध्यान नहीं दिया।
साल २०१४ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गांधी जी जयंती के शुभ अवसर पर स्वच्छता अभियान की शुरुआत की थी ।स्वच्छता अभियान के दौरान गाँवों में शौचालय का निर्माण करवाने से लेकर गांवो में लोगो को इसकी अहमियत बतायी गयी।
इस अभियान से पहले गाँवों की स्थिति खराब थी। महिलाओं को सवेरे होने से पहले शौच करने के लिए बाहर जाना पड़ता था और असुरक्षा का भय लगा रहता था कि कोई उन्हें ऐसी स्थिति में ना देख ले।महिलाओं को शहरों और गाँवों के बाहर शौच करने जाना पड़ता था। उन्हें इससे भय और शर्म भी आती थी लेकिन सदियों से चली आ रही परम्परा को मानने के लिए विवश रहती थी।
आमतौर पर गाँवों में औरतों को रात होने का इंतज़ार करना पड़ता था ताकि वह शौच के लिए जा सके। टीवी चैनेलो और समाचार इत्यादि संचार माध्यम का उपयोग करके जनजागरण कार्यक्रम चलाये गए। इन कार्यक्रमों को देखकर लोगो में खासकर गाँवों में जागरूकता फैली और लोगो ने शौचालय और स्वच्छता के महत्व को भली भाँती समझा।प्राचीन काल से चली आ रही इस परंपरा को समाप्त कर लोगो ने शौचालय का उपयोग किया।यूनिसेफ के रिपोर्ट के मुताबिक साल २०२० में देश के कई जिलों , राज्यों , गाँवों में लोगो ने खुले में शौच करना बंद कर दिया था।
लगभग पच्चास करोड़ लोगो ने साल २०१४ से अब तक शौचालय का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। यह अपने आप में एक बहुत बड़ी सफलता है। जो लोग खुले में शौच के लिए जाया करते थे , वह अब शौचालय का इस्तेमाल कर रहे है। इस अभियान की सही माईनो में जीत हुयी है।स्वच्छ भारत अभियान एक सफल अभियान था। यह एक लाजवाब सफलता थी जिसमे कम वक़्त में लोगो ने इसके महत्व को समझा और अमल भी किया। खुले में शौच मुक्त गाँव जैसे मुहीम के लिये सरकार ने अपनी तरफ से प्रयत्न किये और नागरिको में जागरूकता फैलाने के लिए विज्ञापन का सहारा भी लिया।
देश की उन्नति के लिए गाँव की प्रगति भी उतनी ही ज़रूरी है जितना की शहरों की। गाँवों को स्वच्छ और बीमारी मुक्त करने के लिए यह अभियान बेहद ज़रूरी है।खुले में शौच करने से लोग अपना सम्मान खो बैठते है। शौचालय का इस्तेमाल करके लोग अपना सम्मान बचा सकते है और बीमारियों से भी दूर रह सकते है।इससे वह अपने देश को स्वच्छ और उन्नत बना सकते है। शहरो में भी लोग खुले में शौच नहीं कर रहे है।
निष्कर्ष
सरकार ने इस मुहीम को गंभीरता से लिया है और हर परिवार को गाँवों में केंद्र सरकार से शौचालय बनवाने के लिए आर्थिक मदद मिली । धीरे धीरे गाँवों के लोगो ने शौचालय के महत्व को समझ लिया है। जब देश स्वच्छ होगा , तो देशवासी स्वस्थ और सुरक्षित रहेंगे। हर नागरिक की यह जिम्मेदारी है कि वह आस पास सफाई रखे। सभी लोगो को शिक्षित करना ज़रूरी है और लोगो को इस बात का ज्ञात कराना ज़रूरी है कि बाहर शौच करने से कई बीमारियां जन्म देती है। हम सभी लोगो को और छात्रों को मिलकर खुले में शौच मुक्त गाँव मुहीम को आगे बढ़ाना चाहिए ।