प्रस्तावना
भारत में विभिन्न धर्म, जाति व संप्रदाय के लोग निवास करते हैं। जिनकी अपनी एक विशेष विचारधारा है व संकल्प धारणाएं हैं। लेकिन विचार चाहे जो भी हो, वह देश हित में ही होना अनिवार्य हो जाता है। इस धरती को ही मानना उनका कर्तव्य व अधिकार हो जाता है।
माता भूमि: पुत्रोहम पृथिव्या:।। अर्थात, यह धरती मेरी माता है और मै इसका पुत्र हूं। जब आप इस धरती को अपनी माता मान लेते हो तब आप वास्तव में स्वयं को जागरूक कर लेते हैं।
देश हित में विद्यार्थी जागे
आज के विद्यार्थी कल के शिक्षित नागरिक होंगे, अतः देश के गौरव का दायित्व भी इन्हीं विद्यार्थियों के कंधों पर होगा। इतना बड़ा उत्तरदायित्व जिनके कंधों पर आने वाला है उन विद्यार्थियों को सफल, सशक्त और शिक्षित होना चाहिए। स्वतंत्र भारत के सुविचार प्रसाद के निर्माण के लिए उसके आधारभूत विद्यार्थियों को अत्यंत बलवान व दूरदर्शी बनना होगा। उन्हें अपने जीवन का सर्वांगीण विकास करना होगा।
जागरूकता की पहल
राष्ट्र की उन्नति एक शिक्षित नागरिक पर निर्भर करती है। देश के प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि उत्तम शिक्षा द्वारा वह अपना भौतिक तथा मानसिक विकास करने के लिए प्रयत्नशील हो, शारीरिक शिक्षा, व्यायाम तथा परिश्रम के द्वारा हष्ट पुष्ट व बलवान बनें महापुरुषों के जीवन चरित्र से शिक्षा का प्रेरणा प्राप्त करें। पहले अपना निर्माण करें फिर अपने देश व जाति का कल्याण करने में निकल पड़े।
भारतीय के सेवा क्षेत्र
हमारे जिस कार्य से देश की उन्नति हो वही कार्य गौरव बढ़ाने की सीमा में आ जाता है। देश की वास्तविक उन्नति व गौरव बनाए रखने के लिए हमें सब प्रकार से अपने देश की सेवा करनी चाहिए।
• भारत प्रजातंत्र आत्मक देश है जिसमें वास्तविक शक्ति जनता के हाथ में रहती है। अपने मताधिकार का उचित प्रयोग करके जनप्रतिनिधि के रूप में सत्य, निष्ठा व ईमानदारी से कार्य करके और देश को जाति, संप्रदाय की राजनीति से मुक्त करके हम उसके विकास में सहयोग दे सकते हैं।
• समाज में फैली कुरीतियों को दूर करके भी हमें देश को सुधारना चाहिए।शिक्षा बाल विवाह छुआछूत व भ्रष्टाचार आदि अनेक बुराइयों को दूर करके हम अपने देश की अमूल्य सेवा कर सकते हैं और अपने देश के अन्य लोगों को सुरक्षित भी कर सकते हैं।
• जो मनुष्य आर्थिक दृष्टि से अत्यधिक संपन्न है उन्हें देश की विकास योजनाओं में सहयोग देना चाहिए।उन्हीं देश के रक्षा कोष में उत्साह पूर्वक अधिकतम धन देना चाहिए जिससे देश के प्रतिरक्षा शक्ति मजबूत हो सके।
निष्कर्ष
आज जब तक कि देश समस्याओं का सामना कर रहा है ऐसे समय में हमारा कर्तव्य है कि हम अपने व्यक्तिगत सुखों का त्याग करके देश के सम्मान, रक्षा, विकास के लिए तन मन धन को न्योछावर कर दें। हम सभी भारत की वैचारिक, अंतरमानस आधारित एकात्मता के मूल दर्शन, देश के विकास के कार्यों को समझें और इसके हित में अपना आचरण व कार्य नियम निर्धारित करें। यही भूमि के पुत्रों से अपेक्षित है।