विज्ञापन क्यों और कैसे
वर्तमान युग का आर्थिक ढांचा विज्ञानपनो पर आधारित है। प्रतेक पदार्थ का क्रय-विक्रय विज्ञापन की सफलता पर निर्भर करने लगा है। विभिन्न वस्तुओं के निर्माता अपनी वस्तुओं का विक्रय बढ़ाने के लिए विज्ञापन पर निर्भर करते हैं
अतः विज्ञापन-कला के विशेषज्ञ और विज्ञापन पर वे असीम धनराशि खर्च करते हैं ।क्योंकि विज्ञापन जितना आकर्षक और प्रभावी होगा वस्तुओं की बिक्री उतनी ही अधिक होगी तथा उत्पादन को लाभ अधिक मिलेगा।
विज्ञापन विशेषज्ञ और निर्माता यह भूल जाते हैं कि वे भ्रामक विज्ञापनों से मानव जीवन से खिलवाड़ कर रहे हैं ।कुछ विज्ञापन तो इतने भ्रामक होते हैं की ग्राहक को अपनी ओर अनायास ही आकर्षित करते हैं ओर ये विशेषकर महिलाओं को ओर उनमे भी कुछ महिलाएं अत्यधि आकर्षित होती है। तो समझो इनका निर्मित पदार्थ हाथों हाथ बिक जाएगा क्योंकि महिलाओं में प्रतिस्पर्धा की भावना अधिक पाई जाती है
भृम का स्वरूप
प्रतिदिन समाचार पत्रों में सेल व ग्रेड सेल के विज्ञापन प्रकाशित किए जाते हैं ।लेकिन वास्तविकता से परिचित होने पर ग्राहक बाद में पछताना है 25 से 50% तक की छूट का लालच दिया जाता है ।फलतः ग्राहक अनजाने में मकड़ी के जाल में फंस जाता है। जबकि वास्तविकता यह होती है पचास प्रतिशत वस्तुओं की कीमतों को पहले ही उतना अधिक कर दिया जाता है। जितने की छूट देनी होती है ।इसके अलावा निर्माता के रद्दी किए गए माल को भी शेल के नाम पर बेच दिया जाता है। इस प्रकार कंपनी ओर एजेंट को बहुत लाभ हो जाता है। ग्राहक बेचारा बाद में पछताता रहता है।
आजकल भ्रामक विज्ञापनों के विरुद्ध सरकार कठोर कदम उठा रही है तेल, साबुन ,शैंपू ,शीतल पेय ,डिटर्जेंट, चाय ,मसाले, टूथपेस्ट आदि प्रमुख रूप से उभर कर सामने आते हैं। निर्माता किसी ना किसी रूप में ग्राहक को आकर्षित करने के लिए भ्रामक विज्ञापन देकर अपने जाल में फंसा लेते हैं। कुछ पदार्थों उपभोक्ता के लिए घातक सिद्ध होते हैं। उदाहरण गोदरेज की बाल रंगने की तरल योगिक क्रिया में दावा किया गया था। इसके प्रयोग से बाल हमेशा के लिए काले हो जाते हैं ।लेकिन ऐसा होता नहीं है। कुछ समय पश्चात बार पुनः भूरे होने लगते हैं। इस प्रकार के भ्रामक विज्ञापनों पर सरकार को बहुत शक्ति से नियंत्रण करना चाहिए।
विज्ञापन की सफलता
वीज्ञापन कला की सफलता का रहस्य उस समय भी सामने आता है ।जब प्रतिष्ठित वस्तुओं के नकली लेवल मुद्रित कर घटिया किस्म के पदार्थ बाजारों में भर दिए जाते हैं ।ग्राहक अनजाने में धन का अपव्यय करते हैं ।तथा कालांतर में घातक रोगों का शिकार हो जाते हैं ।इसके अलावा प्रतिष्ठित वस्तुओं के रजिस्टर्ड नामों को स्पेलिंग के एक- दो वर्णों का अंतर करके तथा ब्रह्मा सज्जा वास्तविक वस्तु की तरह कायम कर ग्राहकों को उल्लू बनाया जाता है ।ग्राहक भी क्या करे? वह इस जाल में सरलता से फस जाता है।कितना भी बचने की कोशिश करे उसके लिए इस चक्रव्यूह से बाहर निकलना असंभव है।।
इस सबका उत्तरदायित्व विज्ञापनों पर जाता है ।निर्माता धन उपार्जन के लालच में असंख्य व्यक्तियों की जिंदगी से खिलवाड़ करने से नहीं जिझकते ।
मूल्य की दृष्टि से भी यदि विज्ञापनों का विश्लेषण करें ,तो यह स्पष्ट हो जाता है।निर्माता अपने एजेंट को अधिक लाभ पहुंचाने की दृष्टि से वस्तु के लेवल या पैकेट पर वास्तविक मूल्य से तीन या चार गुना मूल्य मुद्रित करवाते हैं। बेचने वाला दुकानदार समय एवं ग्राहक की नजाकत को नजर में रखकर वस्तु के मूल्य में कमी करता है ।साधारण ग्राहक उसके चंगुल में फंस जाता है।
आजकल के विज्ञापनों ने एक करामात है दिखाने शुरू कर दी है कि किसी ऐसी वस्तु पर में चिपक जाते हैं जिन पर मुद्रित मूल्य से अधिक मूल्य की रबड़ स्टांप लगी होती है ।इससे वे केवल साधारण ग्राहकों को ही नहीं अपितु चलाक से चालक ग्राहक भी फस जाते हैं फिर विक्रेता अपने मन की कीमत वसूलने में सफल हो जाता है।
उपसंहार
उपरोक्त तथ्यों के आधार पर अब यह बहुत आवश्यक हो गया है। कि सरकारी प्रशासन पर इस भ्रामक विज्ञापनों की ओर विशेष ध्यान दें ।इसके लिए उसे चाहिए कि वह ऐसे भ्रामक विज्ञापनों पर यथाशीघ्र रोक लगाएं।वे इस प्रकार के विज्ञापन कर्ताओं को ना केवल सख्त से सख्त चेतावनी दे,अपितु उन्हें
दंडित करें।इसके साथ ही ग्राहकों को भी अपने उत्तरदायित्व को निभाना होगा ।इसके लिए उन्हें चाहिए कि वे इस प्रकार के विज्ञापनों वाली वस्तु को ना खरीदें। जब तक वे इस ओर ध्यान देंगे ,तब तक उन्हें ना केवल घटिया और बुरे सामानों को खरीदने के लिए विवश होना पड़ेगा ।अपितु इसके लिए महंगी और भारी कीमत भी चुकानी पड़ेगी ।खेद की बात यह है कि इस तथ्य की ओर ना तो सरकार का ही कोई ध्यान गया है ।और ना वस्तु क्रेताओ का ही ।यही कारण है कि आजकल भ्रामक विज्ञापनों की बाढ़ आ गई है। और वह खूब फल-फूल रहे हैं।