वनों के महत्व
प्रस्तावना: वन लगाना पुण्य का कार्य है पुराने जमाने में कई पेड़ पौधे तथा लताओं को काटना, नष्ट करना तथा उन्हें बर्बाद करना पाप समझा जाता था। कुछ पौधों को लगाने से यज्ञ करने का फल मिलता है ऐसा हमे हमारे धर्म ग्रंथों में भी पड़ने को मिलता है। बरगद ,पीपल ,पाकर और (पिलखन) एक प्रकार का वृक्ष जिसका विशेष महत्व बताया गया है ।और जो व्यक्ति इनको लगाता है ।उसे यज्ञ करने ,नगर भोज करने, तथा अनेक गांव के दान करने जैसा फल प्राप्त होता है।
वनों से लाभ:
वनों में नाना प्रकार के पेड़ पौधे, जड़ी बूटिया, जीवजंतु ,सरीसृप आदि भी पाए जाते हैं। वन जितने सघन होंगे उतने ही लाभकारी भी होंगे। सघन वनों की आद्रता वातावरण में शीतलता रखती है। यदि वन ज्यादा होंगे तो वर्षा भी ज्यादा होगी। वनों का अधिकता एक सीमा तक बाढ़ तथा भूमि के कटाव को भी रोकती है ।मणिपुर (उत्तर पूर्व )में पाई जाने वाली छोटी-छोटी पहाड़ियां पथरीली ना होकर रेतीली और भुरभुरी मिट्टी से बनी है ।इस प्रकार की पहाड़ियों की मिट्टी बरसात में कटकर जलाशय नदियों में भर जाती है। जिसकी वजह से नदियों एवं जलाशयों उथले होते रहते है। सरकार का ध्यान इस ओर गया क्योंकि नदियों और जलाशयों के कारण बाढ़ आने का खतरा ज्यादा बढ़ जाता है। अतः सरकार ने पहाड़ी ओर जंगल लगाने शुरू कर दिया है। और जिन क्षेत्रों में जंगल सघन होते जा रहे हैं। वहां भूमि का कटाव रुका है।
वनों में रहने वाले जंतुओं से लाभ:
वनों में पशु-पक्षी, हिंसक जीव-जंतु ,निर्भय होकर विहार करते हैं। ये सभी पर्यावरण को साफ सुथरा रखने में हमारे मदतगार है।हमे इनको ना मारने का हक है।ना सताने का हक है।फिर भी हम इंसानों की बजह से वनों के सबसे बड़े प्राणी हाथी, गैंड को हम लोगों ने बहुत नुकसान पहुंचाया है। पशु पक्षियों की अनेक जातियों प्रजातियां लुप्त होती जा रही हैं। और यदि हमारी यही मनोवृति रही तो जो शेष है। वह भी धीरे-धीरे समाप्त हो जाएंगे। अतः हमारा कर्तव्य है कि हम सभी अन्य प्राणियों को जंगलों में उसी प्रकार स्वच्छंद विचरण करने का अवसर दें जिस प्रकार का अवसर हम सभी चाहते हैं ।इसे वन की शोभा बढ़ेगी व पर्यावरण और वातावरण दोनों को साफ सुथरा रखने में हमारे सहयोगी बने रहेंगे।
वनों का नुकसान हमारा नुकसान:
वनों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए क्योंकि वह हमें बहुत कुछ देते हैं ,वनों में कई प्रकार के फल जैसे महुवा, जंगली आम, जामुन ,शरीफा, चिरौंजी आधी स्वयं ही मिल जाते हैं।वंशलोचन, लाख, गंधक,विरोज़ा, गोंद,रबर,रेशम और जड़ी बूटियां भी मिलती है। बीड़ी बनाने के पत्ते जिससे सरकार को लाखों अरबों की आय होती है। ये सब वनों से ही प्राप्त जोते है। इसके अतिरिक्त वनों की इमारती सूखी लकड़ी एवं सघन वनों से उगे पुराने आवांक्षित पेड़ों को काटकर उनका विविध प्रकार से होने वाला उपयोग भी ऐसा उपहार है जो वन में हमें सहर्ष ही देते हैं। इन सब गुणों के बावजूद हम वनों के दुश्मन बन गए हैं ।और विना किसी बात को सोचे समझे अंधाधुन वनों के विनाश में लगे हुए हैं। इस मनोवर्ती को रोकना चाहिए और यदि जरूरत पड़े तो इस मनोवृत्ति को जबरदस्ती रोकना चाहिए। ताकि देश में वर्षा ज्यादा हो ,वातावरण पर्यावरण साफ-सुथरा बना रहे और वनों से होने वाली आय में भी वृद्धि हो जो हमें वनों से उपहार के रूप में स्वतः प्राप्त होती है।
वनों की वनसम्पदा का घटना:
भारत में वन संपदा घटी है। और चिंताजनक रूप में इसके घटने की वजह से सरकार को सावधान होना पड़ा है। बस्तियां बसनी है ।तो ऊसर – बंजर पड़ी जमीनों पर बसाइए। दलदली जमीन को पाटिये ।कुछ ऐसा कीजिए कि जंगल बचे रहें। अगर जंगल बने रहेंगे तो आप बचे रहेंगे। पर्यावरण शुद्ध होगा ,बरसात होगी ,अन्य पैदा होगा ।इसलिए वन विकास के लिए सोचना पड़ेगा ।मात्र योजना बनाने से कुछ भी नहीं होगा ।सोच- विचार करकेकाम करने होंगे ताकि वन बढ़े,उनकी हरियाली बढ़े,वहां रहने वाले जीव जंतु बड़े और वहां के पेड़ पौधे फले फूले जहां वन उजाड़े गए हैं। वहां वन लगाए जाने चाहिए। सरकार को चाहिए कि वह एक सुधीर्गकालिक अवधि तक लकड़ी के फर्नीचरो तथा घरों में लगने वाली इमारती लकड़ी के उपयोग पर सख्ती से पाबंदी लगा दे। ताकि लकड़ी का उपयोग ही कुछ समय के लिए कानूनी ढंग से बंद किया जा सके।
उपसंहार
वन हमारी एक अचल एवं प्रकृति- प्रदत संपदा है। इनको सुरक्षित रखने से हमारी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होगी। कृषि की पैदावार बढ़ेगी,वातावरण और पर्यावरण शुद्ध होगा ।वन- संपदा एक न्यास है।हम उसके न्यासी है। हमें सदा वनों के विकास की बात ही सोचनी चाहिए और वही करना चाहिए जिससे उनकी वृद्धि होती रहे और वे निरंतर फलते-फूलते रहे।