सच्चा धर्म पर निबंध

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मानवता को जीवंत रखने वाला ‘धर्म’ एक ऐसा स्रोत है, जिसका अस्तित्व पूरी दुनिया में विभिन्न रूपों में मान्य है। विश्व का हर एक मनुष्य धर्मो के विभिन्न स्वरूपों में से किसी एक धर्म से विशेष संबंध रखता है। धर्म की ज्योत प्राचीन काल से वर्तमान तक प्रकाशमान है। प्रत्येक धर्म अपने आप में परिपूर्ण है, कोई भी धर्म किसी भी दूसरे धर्म को झूटा या सच्चा कहने की भावना नहीं रखता। प्राचीन समय में मौजूद किसी भी धर्म को गलत अथवा झूटा नहीं माना गया। ऐसे में किसी भी एक धर्म को सच्चे धर्म की उपाधि देना अनुचित होगा।

धर्म का अर्थ –

धर्म संस्कृति भाषा के धृ धातु से बना है। जिसका अर्थ होता है – धारण करना। इस प्रकार धर्म में उपस्थित हर वह गुण जो नैतिकता व मानवता के कल्याण के लिए है मनुष्य को उन गुणों को धारण करना चाहिए। संयम, शील, निस्वार्थ भाव, सेवा, प्रेम, सहानुभूति, दया, परोपकार आदि गुणों का पालन करने वाला मनुष्य धर्म का पालन करता है। धर्म के तत्वों में, दया, क्षमा, विन्रम, सत्यता, संयम, परोपकार, समय का पालन, लक्ष्य का बोध, आदर- सम्मान आदि गुणों का समावेश है। धर्म का उद्देश्य मानव जीवन सहित संपूर्ण विश्व का कल्याण करना है व जगत में सुख व आनंद की बौछार करना है। विश्व में मुख्य प्रकार से सात धर्म विद्यमान है – हिन्दू, जैन, इस्लाम, यहूदी, ईसाई, सिख, बौद्ध। इसके अतिरिक्त अन्य धर्मो के उपासकों की संख्या बेहद कम है। हर धर्म के अपने नियम है जो धर्म के अनुयायियों द्वारा अपनाए जाते है। वेषभूषा, आहार, धर्म से संबंधित पर्व, मान्यताएं एक दूसरे से बेहद अलग है।

सच्चा धर्म –

प्रत्येक धर्म के आध्यात्मिक जीवन की यात्रा भिन्न भिन्न होती है। परंतु प्रत्येक धर्म अपने अनुयायियों को एक उच्च कोटि का तथा नैतिकता से परिपूर्ण मानव बनाने की चेष्टा रखता है। विभिन्न धर्मो के भिन्न भिन्न धर्म उपासक होकर भी इनमें अपने अपने धर्म को श्रेष्ठ सिद्ध करनी की भावना कभी नहीं विकसित हुई। बौद्ध धर्म के त्रिरत्न में से एक धम्म जिस पर संपूर्ण बौद्ध धर्म आधारित है, उसका वास्तविक अर्थ ही नैतिकता है। इसके अतिरिक्त हिन्दू धर्म जो की वेदों पर आधारित हैं। हिन्दू धर्म के प्रत्येक ग्रंथ जीवन, परिवार, समाज व राष्ट्र को बेहतर बनाने के लिए अनेक सूत्रों से परिपूर्ण है। हिन्दू धर्म से संबंधित कथाएं, श्लोक इत्यादि सदैव सहिष्णुता, सत्यता, त्याग आदि नैतिक भावनाओं से संबंधित रही है। सिख धर्म का मूल सिद्धांत मानवता की सेवा है। इस प्रकार यह स्पष्ट है, कि नैतिकता के गुणों से युक्त व मानव जाति के कल्याण का उद्देश्य रखने वाला धर्म सच्चे धर्म की श्रेणी में आता है। सच्चा धर्म मानव की आत्मा को शान्ति देकर उसे पवित्र आत्मा का रूप देता है।

जीवन कल्याण का मार्ग धर्मानुसार ईश्वर की आराधना से पार होता है परन्तु इस मार्ग में बैर, कपट, द्वेष, स्वार्थ जैसी भावनाएं हमारी मार्ग की रुकावट बनने का प्रयास अवश्य करती है। उस समय एक सच्चे धर्म के उपासक अपने धर्म द्वारा सिखाए गए उच्च कोटि के गुणों का पालन करके मार्ग को निष्कपट रूप से पार कर जाते है।

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