सरोजिनी नायडू पर निबंध

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हमारे भारतवर्ष की भूमि में कई ऐसे महान व्यक्तित्वों ने जन्म लिया है, जिनकी प्रेरणा और कार्यों के चलते उन्हें आज भी याद किया जाता है। इन्हीं महान व्यक्तित्व में से एक थी सरोजिनी नायडू। जो कि महान कवयित्री व राजनीतिक कार्यकर्ता थी। सरोजिनी नायडू के विषय में जानकारी देने के लिए तथा समाज में उनका परिचय हर किसी को ज्ञात हो,

इसलिए विद्यालयों में सरोजिनी नायडू के व्यक्तित्व के विषय में जानकारी दी जाती है। इसके साथ ही सरोजिनी नायडू के जीवन से जुड़े निबंध विषय भी विद्यार्थियों को दिए जाते हैं। तो आज के आर्टिकल के जरिए हम आपको सरोजिनी नायडू के जीवन पर निबंध प्रस्तुत कर रहे हैं, जो आप सभी के लिए बेहद लाभकारी व ज्ञानकारी साबित होगा…

प्रस्तावना

भारत कोकिला, कहीं जाने वाली सरोजिनी नायडू महान कवयित्री और राजनीतिक कार्यकर्ता थी। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की दूसरी महिला प्रेसिडेंट भी थी। इतना ही नहीं सरोजिनी नायडू भारत की प्रथम महिला राज्यपाल (उत्तर प्रदेश) भी बनी। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में सरोजिनी नायडू ने अपनी अहम भूमिका निभाई। उन्होंने अपना महत्वपूर्ण योगदान भारत के नाम किया। गांधी जी के साथ मिलकर उन्होंने स्वतंत्रता अभियानों में हिस्सा लिया और राष्ट्र को मुक्त कराने के लिए अनेक प्रयत्न किए। यही कारण है कि उनका व्यक्तित्व बेहद गौरवशाली रहा है।

सरोजिनी नायडू का जीवन व परिवार

सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी 1879 में हुआ था। इनका जन्म भारत के तेलंगाना राज्य के हैदराबाद में हुआ था। इनके पिता का नाम अघोरनाथ चट्टोपाध्याय था और माता का नाम वरदा सुंदरी देवी था। इनके भाई विरेंद्रनाथ और हरिंद्रानाथ थे और बहन सुहासिनी थी। जिनमें से विरेंद्रानाथ एक क्रांतिकारी थे और हरेंद्रानाथ एक कवि व अभिनेता थे। इनका जन्म बंगाली ब्राह्मण के घर हुआ था। सरोजिनी नायडू के कुल 8 भाई-बहन थे जिसमें यह सबसे बड़ी थी।

सरोजिनी नायडू ने 12 वर्ष की आयु में मैट्रिकुलेशन पास किया। अपनी उच्चतम शिक्षा के लिए यह इंग्लैंड चली गई। वहां इन्हें पढ़ने के लिए एग्जाम चैरिटेबल ट्रस्ट के द्वारा स्कॉलरशिप भी दी गई। इंग्लैंड में 3 साल पढ़ने के बाद यह 1898 में भारत वापस आ गईं। इंग्लैंड से वापस लौटते ही इनका विवाह गोविंदाराजुलू नायडू से हो गया। जो कि एक भौतिकविद थे और नायडू परिवार से आते थे।

सरोजिनी नायडू का राजनीतिक जीवन

सरोजिनी नायडू के राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1904 में हुई। जिसमें उन्होंने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी भागीदारी दी। सरोजिनी नायडू ने महिलाओं के अधिकारों व शिक्षा के प्रति आवाज उठाई। वर्ष 1914 में महात्मा गांधी से मिलकर उन्होंने भारत की स्वतंत्रता आंदोलन के सशक्तिकरण के लिए उन्हें श्रेय दिया। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की दूसरी महिला प्रेसिडेंट बन गईं थीं। 1917 में उन्होंने भारतीय महिला संगठन की स्थापना भी की।

उन्होंने गांधी जी द्वारा शुरू किए गए सत्याग्रह आंदोलन में भी अपनी भागीदारी दी। 1930 में दांडी मार्च यात्रा के दौरान उन्होंने गांधी जी को मना कर इस यात्रा में सम्मिलित होने की अनुमति प्राप्त की। 6 अप्रैल 1930 को गांधी जी जब गिरफ्तार हुए तो सरोजनी नायडू को ही इस अभियान का नया नेत्री घोषित किया गया।

सरोजिनी नायडू का लेखन जीवन, पुस्तकें तथा अन्य कार्य

सरोजिनी नायडू ने मात्र 12 साल की उम्र में ही लेखन कार्य शुरू कर दिया था। उन्होंने अपना लेखन इंग्लिश भाषा में शुरू किया। जिसके चलते 1905 में उनकी पहली पुस्तक द गोल्डन थ्रेसोल्ड को लंदन में प्रकाशित किया गया था। इस प्रकार उनका लेखन करियर भी स्वचालित रहा।

महिलाओं को जागृत करने के लिए सरोजनी नायडू ने 1915 में अवैक कविता की रचना की। उनकी कविताओं को 1928 में न्यूयॉर्क में भी प्रकाशित किया गया। उनकी महत्वपूर्ण पुस्तकें निम्नलिखित रहीं – द गोल्डन थ्रेसोल्ड, द वर्ल्ड ऑफ टाइम, द ब्रोकन विंग।

सरोजिनी नायडू की मृत्यु

15 फरवरी 1949 को दिल्ली से उत्तर प्रदेश आने के बाद सरोजिनी नायडू का स्वास्थ्य काफी खराब रहने लगा। जिसके चलते डॉक्टर ने उन्हें आराम करने को कह दिया। लेकिन उनका स्वास्थ्य अधिक खराब रहने लगा। जिसके चलते 1 मार्च को डॉक्टरों ने उनका इलाज किया और 2 मार्च 1949 की शाम 3.30 पर सरोजिनी नायडू का देहांत हो गया।

पूरे भारतवर्ष में इस ख़बर से मातम छा गया था। 2 मार्च 1949 को लखनऊ के गवर्मेंट हाउस में सरोजिनी नायडू की हृदय घातक के कारण मृत्यु हो गई। इस प्रकार भारत की प्रिय सेविका ने अपनी मिट्टी पर आखिरी सांस ली।

उपसंहार

12 वर्ष की उम्र में अपने जीवन को लेखन कार्य में पिरोने वाली सरोजिनी नायडू सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। उनका जीवन सदा भारत के लिए समर्पित रहा। यही कारण है कि यह देश और देशवासियों उन्हें कभी नहीं भुला पाएंगे।

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