चंद्र ग्रहण पर निबंध

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जब पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच आ जाती है और सूर्य के प्रकाश को चंद्रमा तक पहुंचने से रोकती है। इस प्रक्रिया को चंद्र ग्रहण कहते है। जब पृथ्वी की छाया से चंद्रमा पूरी तरह या फिर आंशिक रूप से ढक जाती है, इस स्थिति में पृथ्वी सूर्य की किरणों को चंद्रमा तक नहीं पहुंचने देती है। इस वजह से पृथ्वी के उस हिस्से में चंद्र ग्रहण नजर आता है। ज्यामितीय प्रतिबंध के कारण चंद्रग्रहण केवल पूर्णिमा को घटित हो सकता है।

चंद्र ग्रहण के प्रकार


चंद्र ग्रहण 3 प्रकार के होते हैं, जिन्हें पूर्ण चंद्र ग्रहण, आंशिक चंद्र ग्रहण और उपच्छाया चंद्रग्रहण कहते हैं।
पूर्ण चंद्र ग्रहण– जब सूर्य, पृथ्वी और चन्द्रमा एक सीध में आ जाते हैं और पृथ्वी की छाया चांद को पूरी तरह से ढक लेती है तब पूर्ण चंद्र ग्रहण का नजारा देखने को मिलता है। इस दौरान चंद्रमा पूरी तरह से लाल दिखाई देता है। जिसे सुपर ब्लड मून कहते हैं।
आंशिक चंद्र ग्रहण– जब चंद्रमा और सूर्य के बीच पृथ्वी आ जाती है और चंद्रमा के कुछ ही भाग पर पृथ्वी की छाया पड़ पाती है। इसे ही आंशिक चंद्र ग्रहण कहते हैं।
उपच्छाया चंद्र ग्रहण– उपछाया चंद्र ग्रहण जिसे पेनुमब्रल भी कहते हैं। इस अवस्था में सूर्य और चंद्र के बीच पृथ्वी उस समय आती है, जब सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी एक सीधी रेखा में नहीं होते हैं। इस स्थिति में पृथ्वी की बाहरी हिस्से की छाया यानी उपच्छाया ही चंद्रमा पर पड़ती है। जिससे चन्द्रमा की सतह धुंधली पड़ जाती है, इसी को उपच्छाया चंद्र ग्रहण कहा जाता है। इस स्थिति में चंद्रमा का न तो रंग बदलता है और न ही आकार।


ब्लड मून क्या है?


वैज्ञानिकों के अनुसार, सुपर मून पर चंद्रमा आम दिनों के मुकाबले 14 प्रतिशत बड़ा और 30 प्रतिशत से अधिक चमकीला होता है। इस दौरान चांद का रंग लाल हो जाता है, इसलिए इसे ब्लड मून भी कहते है। ग्रहण के दौरान चंद्रमा के रंग बदलने पर वैज्ञानिकों का ऐसा मनना है कि इस दौरान सूरज की रोशनी पृथ्वी से होकर चंद्रमा पर पड़ती है। ग्रह की छाया पड़ने की वजह से चंद्रमा का रंग ग्रहण के दौरान बदल जाता है। दरअसल यह सुपर ब्लू मून, सुपर मून और पूर्ण ग्रहण का संयोजन है।


हिंदू धर्म के अनुसार चंद्र ग्रहण


मान्य ता है कि जब राहु और केतु चंद्रमा को जकड़ लेते हैं, तब चंद्रग्रहण लगता है। कहते हैं कि समुद्र मंथन के दौरान जब भगवान विष्णुज देवताओं को अमृत पिला रहे थे, स्वर्भानु नामक एक दैत्य ने छल से अमृत पान करने की कोशिश की थी। लेकिन इस दैत्य की हरकत को देख रहे चंद्रमा और सूर्य ने भगवान विष्णु को इसकी जानकारी दी। इसके बाद भगवान विष्णु ने अपना सुर्दशन चक्र चलाया और दैत्य का सिर काट कर धड़ से अलग कर दिया। लेकिन दैत्यश के गले की नीचे अमृत की कुछ बंदें उतर चुकीं थीं। इस कारण सिर व धड़ अमर होकर दो दैत्य बन गए। सिर वाला हिस्सा राहु तो धड़ वाला हिस्साध केतु कहा जाने लगा। मान्यनता है कि राहु और केतु इसी का बदला देने के लिए चंद्रमा और सूर्य पर हमला करते रहते हैं। जब ये दोनों ग्रह चंद्रमा को जकड़ते हैं तो उसे चंद्र ग्रहण कहते हैं।


विज्ञान के अनुसार चंद्र ग्रहण


विज्ञान के अनुसार, पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है, जबकि चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर घूमता है। पृथ्वी और चंद्रमा घूमते-घूमते एक समय पर ऐसे स्थान पर आ जाते हैं जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा तीनों एक सीध में रहते हैं। जब पृथ्वी धूमते-धूमते सूर्य और चंद्रमा के बीच में आ जाती है। चंद्रमा की इस स्थिति में पृथ्वी की आड़ में पूरी तरह छिप जाता है और उस पर सूर्य की रोशनी नहीं पड़ पाती है, इसे चंद्र ग्रहण कहते है।


चंद्र ग्रहण कब पड़ रहा है?


इस साल का पहला चंद्र ग्रहण पंचांग के अनुसार 16 मई को लगेगा। यह चंद्र ग्रहण साउथ-वेस्ट यूरोप, साउथ-वेस्ट एशिया, अफ्रीका, नॉर्थ अमेरिका के ज्यादातर हिस्सों, साउथ अमेरिका, प्रशांत महासागर, हिंद महासागर अंटार्कटिका और अटलांटिक महासागर से दिखाई देगा। यह पूर्ण चंद्र ग्रहण होगा। भारत में इस चंद्र ग्रहण की दृश्यता शून्य होगी, इसलिए यहां इसका सूतक काल नहीं लगेगा।

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