श्रम का महत्व पर निबंध

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आज इस लेख के माध्यम से श्रम का महत्व विषय पर निबंध लेकर प्रस्तुत हुए हैं। यह निबंध विद्यार्थियों की परीक्षाओं में सफलता प्रदान करेगा। साथ ही इस निबंध के माध्यम से आपको श्रम के महत्व की जानकारी भी प्राप्त होगी। आइए जानते हैं, “श्रम का महत्व” विषय पर निबंध..

“परिश्रम ही सफलता की कुंजी है।”

प्रस्तावना- प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक श्रम का महत्व विभिन्न महानुभावों व रचनाकारों ने बताया है। हमारा जीवन श्रम के बिना अधूरा है। बिना श्रम के उन्नति व सफलता प्राप्त करना असंभव है। इस धरती पर अपने जीवनयापन करने के लिए हर जीवित प्राणी को श्रम का सहारा लेना पड़ता है। अपनी अनिवार्य वस्तुओं के लिए, अपने परिवार का भरण पोषण करने के लिए तथा इसके साथ ही समाज में अपना वर्चस्व बढ़ाने के लिए श्रम किया जाता है। बिना कर्म के जीवन शून्य है और श्रम कर्म से अभिन्न नहीं है।

श्रम का अभाव- आधुनिक समय में हमारा जीवन मशीन यंत्रों पर निर्भर हो चुका है। फैक्ट्रियों घरों तथा बड़े बड़े कार्यालयों में आजकल विभिन्न मशीन यंत्र मौजूद है। जो कि हमें श्रम करने से रोकते हैं। मशीनी यंत्रों में हम इतना लीन हो चुके हैं कि, मनुष्य जीवन बेहद आलसी होता जा रहा है। यही नहीं शारीरिक श्रम से लेकर मानसिक श्रम आज का आधुनिक यंत्रों की वजह से कम हो चुका है। छोटे-छोटे यंत्र हमें बेहद आलसी बनाते जा रहे हैं। जिसके कारण हमारा शरीर व हमारा दिमाग विकसित होने से रुकने लगा। वातानुकूलित कमरे में बैठकर कोई व्यक्ति बाहर की लालसा हवाओं को ग्रहण नहीं कर पाता।

इस प्रकार श्रम के अभाव से शरीर शिथिल हो जाता है। शरीर में अधिक तनाव व अनिद्रा पैदा हो जाती है। यह स्थितियां शरीर में बीमारियों को जन्म देती है। इस प्रकार श्रम के अभाव में मनुष्य भयंकर बीमारियों का शिकार हो जाता है।

श्रम का रूप- मानव जीवन के जन्म से ही श्रम का जन्म हुआ है। श्रम का प्रादुर्भाव मानव सभ्यता के साथ हुआ है। जैसे-जैसे मानव सभ्यता का विकास हुआ है वैसे-वैसे श्रम की तकनीकों में भी विकास देखने को मिलता है। मनुष्य अपनी पूरी दिनचर्या में जो कार्य करता है। वह भी श्रम के अंतर्गत आता है। श्रम एक ऐसी क्रिया, जिसमें मनुष्यों के प्रयत्नशील कार्य सम्मिलित किए जाते हैं।


मात्र शारीरिक श्रम ही श्रम नहीं होता है। अर्थात जरूरी नहीं है कि खेत जोतना ही श्रम है या लोहा पीटना एक श्रम है। बल्कि मानसिक रूप से भी श्रम किया जाता है। विद्यार्थी अपने अध्ययन में जो मेहनत करते हैं वह मानसिक श्रम कहलाता है। इसके साथ ही आज के आधुनिक समय में जो लोग घंटो तक मोबाइल या कंप्यूटर पर बैठकर काम करते हैं। उन्हें शारीरिक रूप से नहीं बल्कि मानसिक रूप से श्रम करना पड़ता है।

श्रम का महत्व- “उद्यमेन ही सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथै:” अर्थात् कार्य की सिद्धि केवल इच्छा से नहीं वरन् कठिन परिश्रम से होती है । इस उक्ति से यह स्पष्ट होता है कि श्रम के बिना जीवन का कोई मूल्य नहीं है। हर व्यक्ति को अपने अपने स्तर पर श्रम के माध्यम से ही शिखर हासिल करना पड़ता है।

कहा जाता है कि शेर को भी मृग का शिकार करना पड़ता है। शेर को शिकार करने के लिए भी श्रम करना पड़ता है, शिकार स्वयं शेर के मुख में नहीं आता है। जो व्यक्ति श्रम नहीं करता तथा भाग्य पर निर्भर रहता है। वे स्वयं पर कभी विश्वास नहीं कर पाता तथा अपने जीवन के हर अच्छे बुरे के लिए भाग्य पर निर्भर रहता है।लेकिन एक श्रम करने वाला व्यक्ति सदैव अपनी सफलता को प्राप्त करने में विश्वास रखता है। श्रम करने वाला व्यक्ति अपनी सफलता के लिए निरंतर प्रयास करता रहता है व अंत में सफलता की कुंजी को प्राप्त कर लेता है।

निष्कर्ष- महादेवी वर्मा की उक्त पंक्तियां –

“अब तक धरती अचल रही पैरों के नीचे,
फूलों की दे ओट सुरभि के घेरे खींचे,
पर पहुँचेगा पन्थी दूसरे तट पर उस दिन,
जब चरणों के नीचे सागर लहराएगा।”

हमें यह बताती हैं कि हमें लक्ष्य प्राप्ति के लिए लहरों के समान प्रवाहमान होना पड़ेगा। यदि हम किनारे पर खड़े रहकर सागर को पार करने की कल्पना करते रहें और स्वयं को को कष्ट देने से रोकते नहीं तो हम कभी भी भवसागर को सरलता से पार नहीं कर पाएंगे। ईश्वर की सदैव उनकी मदद करते हैं जो स्वयं अपनी मदद करते हैं। जीवन में श्रम का महत्व कुछ यूं है कि श्रम आपको कभी किसी पर आश्रित नहीं रहने देता। श्रम के जरिए आप आत्मसम्मान के साथ-साथ आत्मविश्वास भी हासिल कर लेते हैं।

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