जन्म से ही व्यक्ति को मौलिक अधिकारों की प्राप्ति होती है। जिनका उद्देश्य समाज में शांति तथा समानता स्थापित करना है। मानवाधिकार का विषय सदैव से ही विशेष रहा है। ये अधिकार व्यक्ति को जीवनपर्यंत सुविधा प्रदान करते हैं। आज हम इस लेख के माध्यम से मौलिक/ मानव अधिकारों विषय पर निबंध लेकर प्रस्तुत हुए हैं।
प्रस्तावना: मानवाधिकार अथवा मौलिक अधिकार, ऐसे अधिकार हैं जो प्रत्येक व्यक्ति को प्राप्त होते हैं। इन मानव अधिकारों की प्राप्ति से ही व्यक्ति अपने जीवन में विभिन्न विकल्पों को चुन पाता है। मानवाधिकार बहुआयामी हैं, जिसके अन्तर्गत सरल तथा जटिल दोनों प्रकार के मुद्दे शामिल हैं। कुछ राष्ट्र मानवाधिकारों का उल्लघंन करते हैं। ऐसे में अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय द्वारा मानवाधिकारों की उल्लंघन की जांच की जाती है।
मौलिक अधिकार: मानक व्यवहारों को स्पष्ट करने वाले मौलिक तथा मूलभूत अधिकार जिनका प्रत्येक व्यक्ति हकदार है, वे कुछ इस प्रकार हैं…
मानव अधिकारों को इन प्रमुख भागों में विभाजित किया जा सकता है –
१. नैतिकता के अधिकार
२. कानून अधिकार,
३. प्राकृतिक अधिकार,
४. नागरिक अधिकार,
५. आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक अधिकार
६. मौलिक अधिकार।
भारत में प्रत्येक नागरिक को 6 मानवाधिकार अथवा मौलिक अधिकार दिए गए हैं जो कि निम्नलिखित हैं :
१.स्वतंत्रता का अधिकार
२.समानता का अधिकार
३. धर्म की स्वतन्त्रता का अधिकार
४. शोषण के खिलाफ अधिकार
५. सांस्कृतिक एवं शैक्षिक अधिकार
६. संवैधानिक उपाय करने का अधिकार।
मौलिक अधिकारों का उल्लघंन: निस्संदेह, मौलिक अधिकारों का प्रयोग हर मनुष्य के लिए महत्वपूर्ण है। मानव द्वारा इन मौलिक अधिकारों का प्रयोग अपने जीवन को उन्नत स्तर पर पहुंचाने के लिए किया जा सकता है। परंतु जब इन मौलिक अधिकारों का उपयोग देशद्रोह, समाज में निरंकुशता तथा किसी दूसरे व्यक्ति को आहत करने के लिए किया जाता है। तब मौलिक अधिकारों का हनन होने लगता है। अतः मौलिक अधिकारों का उल्लघंन तथा उन अधिकारों का अनुचित प्रयोग करने पर देश की सरकार द्वारा कुछ दण्ड प्रक्रिया अपनाई जाती है। समाज में अपराधिक मानसिकता फैलाने वाले लोगों को सजा प्रदान की जाती है।
मौलिक अधिकारों का महत्व: मौलिक अधिकार प्राकृतिक अधिकार है। मनुष्य के जीवन को स्वतंत्र तथा सम्मानित रूप से जीने के लिए मौलिक अधिकार प्रदान किए जाते हैं। मौलिक अधिकारों का हर एक पहलू नागरिक के जीवन को सफल बनाने के उद्देश्य से दिया जाता है। धर्म, जाति, लिंग के भेदभाव से परे, मौलिक अधिकार समाज की दिशा शूल को बदलने की ताकत रखते हैं। मौलिक अधिकारों के अन्तर्गत देश के हर एक व्यक्ति को अपने ऊपर हो रहे शोषण के खिलाफ आवाज उठाने की शक्ति प्राप्त होती है। इन अधिकारों में कुछ ऐसे प्रावधान भी किए गए हैं जिससे इन अधिकारों का गलत प्रयोग ना किया जा सकें।
निष्कर्ष: मौलिक अधिकार हमारे जन्मसिद्ध अधिकार हैं। जो कि सुरक्षा, समानता तथा स्वतंत्रता के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। देश की कार्यव्यवस्था, आर्थिक व्यवस्था तथा शांति व्यवस्था के नजरिए से मौलिक अधिकार समाज के लिए रीढ़ की हड्डी हैं। जो प्रत्येक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति के समान ही मजबूत तथा सक्षम बनाते हैं।