हर किसी के जीवन में अनुशासन का विशेष महत्व होता है। अनुशासन से ही किए गए कार्यों में निश्चित रूप से सफलता प्राप्त होती है। इसलिए हर विद्यार्थी भी को अनुशासन सहित कार्य करने की आज्ञा दी जाती है। आज हम इस लेख के माध्यम से आपके लिए अनुशासन विषय पर निबंध लेकर प्रस्तुत हुए हैं, यह निबंध विद्यार्थियों की परीक्षाओं में सहायता प्रदान करेगा। साथ ही आपको इस निबंध के जरिए अनुशासन के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी भी प्राप्त होगी।
प्रस्तावना: अनुशासन जीवन का प्रमुख अंग है। प्रत्येक मनुष्य के लिए अनुशासित होना अति आवश्यक है। अनुशासन हीन व्यक्ति व्यवस्थित नहीं रह सकता और ना ही उत्तम सफलता को प्राप्त कर सकता है। वर्तमान समय में प्रत्येक व्यक्ति अनुशासनहीनता से अपना जीवन व्यतीत करता है। जिसके चलते स्वयं का जीवन ही नहीं अपितु सारा समाज प्रभावित होता है निरंतर होता ही जा रहा है। अतः अनुशासन संबंधित समस्त पक्षों पर विचार करना आवश्यक हो चुका है।
अनुशासन का स्वरूप: अनुशासन शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है अनु तथा शासन। अनु का अर्थ है पालन प्रशासन का अर्थ होता है नियम। इस प्रकार अनुशासन का संक्षेप अर्थ है नियमों का पालन। अनुशासन शब्द जब किसी भी कार्य से जुड़ता है तो इसका अर्थ यह होता है कि उस विशेष कार्य को नियमों के अनुसार अथवा नियमों का पालन करते हुए उस कार्य को पूर्ण करें। अनुशासन का अर्थ वह मर्यादा है जिसका पालन ही विद्या प्राप्त करने और उसका उपयोग करने के लिए अनिवार्य होता है।
अनुशासन का महत्व: अनुशासन का भाग सहज रूप से विकसित किया जाना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति के अंदर अनुशासन से कार्य करने की भावना जागृत होती है, तब हर क्षेत्र का हर कार्य ईमानदारी से तथा नियमों के अनुसार पूरा हो जाता है। विद्यार्थियों के जीवन पर भी अनुशासन का विशेष महत्व है। जो महत्व शरीर में व्यवस्थित व जनसंचार का है वही विद्यार्थी के जीवन में अनुशासन का है। प्रत्येक कार्य क्षेत्र में अनुशासन के होने से ही उन्नति संभव है। यही कारण है कि अनुशासनहीन व्यक्ति को पग -पग पर ठोकर व फटकार सहनी पड़ती है।
अनुशासनहीनता के कारण: आजकल के समय में अधिकतर व्यक्ति अनुशासन के विरुद्ध अपने समस्त कार्य को पूर्ण करते हैं। यह कार्य समान रूप से चलते रहते हैं, लेकिन इन कार्यों में व्यवस्थित स्थिति नहीं पाई जाती। जिस कारण आपका जीवन तथा आप से जुड़े लोगों का जीवन प्रभावित होता है। आइए जानते हैं कि लोगों में अनुशासनहीनता के क्या कारण हैं?
- बालक की पहली पाठशाला उसका परिवार है। प्रत्येक बालक पर माता-पिता के आचरण का प्रभाव पड़ता है। अधिकतर परिवार में माता-पिता दोनों नौकरी करते हैं या अलग-अलग रहते हैं और अपने बच्चों की ओर ध्यान देने हेतु ने अवकाश नहीं मिलता। जिसके चलते बालक उपेक्षित होकर विद्रोही बन जाता है। परिवार की तरफ से उचित मार्गदर्शन ना मिलने पर बालक के अंदर अनुशासनहीनता का अवगुण पैदा हो जाता है और अनुशासनहीनता का यह अवगुण बालक के अंदर जीवन प्रयत्न बना रहता है।
- समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, घूसखोरी, सिफारिश बाजी, चीजों में मिलावट, फैशनपरस्ती तथा प्रत्येक स्तर पर व्याप्त अनैतिकता को देखकर लोगों के अंदर अनुशासनहीनता जागृत हो जाती है।
- समाज में व्याप्त राजनीति में ही अनुशासनहीनता पाई जाती है। नेता अपने दलीय स्वार्थों की पूर्ति के लिए विद्यार्थियों को नौकरी आदि के प्रलोभन देकर पथभ्रष्ट करते हैं, अपने प्रचार प्रसार हेतु लोगों को पैसा देते हैं, लोगों को तोड़फोड़ आदि के लिए एक साथ हैं। देश की राजनीति में ही व्याप्त यह अनुशासनहीनता प्रत्येक व्यक्ति के अंदर आ जाती है।
- शिक्षा के स्तर पर भी अनुशासनहीनता व्याप्त है। कर्तव्य परायण एवं चरित्रवान शिक्षकों के स्थान पर योग्य शिक्षक, अनैतिक और भ्रष्ट अध्यापकों की नियुक्ति, अध्यापकों द्वारा ट्यूशन आदि के चक्कर में लगे रहना विद्यार्थियों के अनुशासन नियमों को तोड़ता है। आज के समय में अयोग्य विद्यार्थी योग्य विद्यार्थी पर वरीयता प्राप्त कर लेते हैं तब योग्य विद्यार्थी आक्रोश वर्ष अनुशासनहीनता में लिप्त हो जाते हैं।
निष्कर्ष: समाज में व्याप्त अनुशासनहीनता को मिटाकर ही देश के प्रत्येक व्यक्ति में अनुशासन के नियमों को जागरूक किया जा सकता है। प्रत्येक व्यक्ति अनुशासन के नियमों तथा लाभों को भलीभांति जानता है, लेकिन इसके बाद भी लोगों द्वारा अनुशासन के नियमों को तोड़ना उचित समझ लिया जाता है। अनुशासन के अनुसार ही जो व्यक्ति अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ता है, उसको ही अपने भविष्य में सफलता प्राप्त होती है।