प्रस्तावना: सहशिक्षा आधुनिक प्रणाली है।और पश्चिमी देश की देन है। सहशिक्षा का अर्थ है छात्रा – छात्रों का एक ही विद्यालय में एक ही समय एक ही अध्यापक द्वारा एक साथ मिलकर विद्याध्ययन करना है। पहले यह प्रणाली भारत मे नही थी। इस प्रणाली से लाभ तथा हानियां दोनों ही है। यधपि यह प्रणाली भारत मे पूर्ण रूप से सफल नही हुई, फिर भी इसका परीक्षण हो रहा है। बहुत से भारतीय विचारवान इस प्रणाली को छात्र-छात्राओं के लिए चारित्रिक पतन का कारण समझते है। कुछ प्रगतिशील महान भाव इसके पक्ष में भी है।
पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण: इसका पक्ष लेने वाले लोग अनेक तर्को द्वारा इसकी विशेषता सिद्ध करते हुए इसे लसभप्रद बता रहे है। उनका कहना है।की सहशिक्षा हमारे सामाजिक जीवन की प्रगति के लिए उपयोगी है। इससे अनेक प्रत्यक्ष लाभ है।
(1) अलग विद्यालय की आवश्यकता नही होंगी। यदि देश मे सहशिक्षा प्रणाली प्रचलित कर दी जाए तो छात्र -छात्रों के लिए पृथक-पृथक विद्यालय बनाने की आवश्यकता न होती। एक ही भवन में लडके -लड़कियों के स्कूल एवं कालेजों का प्रबंध हो जाएगा।
(2)प्रतिस्पर्धा की भावना छात्र-छात्राओं में पढ़ाई के लिए प्रतिस्पर्धा की भावना पैदा होगी। इससे उनका बौद्धिक विकास होगा।और दोनों वर्ग एक दूसरे से आगे निकलने का प्रयास करेंगे।
(3) व्यर्थ की झिझक दूर होगी सहशिक्षा से सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि लड़कियों में पाई जाने वाली व्यर्थ की लज्जा दूर होंगी।लड़के लड़कियों के सम्मुख झेंप महसूस नहीं करेंगे।इससे दोनो में सहानुभूति की भावना उत्पन्न होंगी।वे एक दूसरे के सुख दुख में साझीदार बनेंगे ।
(4) एक दूसरे की मनोवृति का ज्ञान
सहशिक्षा से छात्र-छात्राओं में एक दूसरे की मनोवर्ती ओर स्वभाव को समझ लेने की अधिक क्षमता आ जाती हैं।यह बात उनके भावी जीवन के लिए बहुत उपयोगी है।
तनिक विचार करने से प्रतीत होगा कि इन युक्तियों में अधिक बल नहीं है । किसी भी अच्छी सरकार का यह परम कर्तव्य है की जैसे भी हो अन्य विभागों में बचत करके भी लड़कियों के शिक्षा का पूरा प्रबंध करें क्योंकी ईसी से देश का भविष्य उज्जवल हो सकता है।
विरोधी दृष्टिकोण
सह शिक्षा के विरोधी इसमें अनेक त्रुटियां बताते हैं। उनका कहना है कि इससे हमारी परंपराओं तथा संस्कृति पर भीषण आघात हो रहा है। उनके कथा अनुसार सहशिक्षा में अनेक हानियां हैं।
(1) हमारे शास्त्रों का मत: भारतीय शास्त्रों का विधान है कि लड़के और लड़कियों के पाठशाला में प्राप्त अंतर होना चाहिए बल्कि दोनों के विद्यालय विपरीत दिशा में होना चाहिए।
(2) भारतीय दृष्टिकोण के विपरीत: सहशिक्षा का पूर्ण रूप से विदेशी शिक्षा पद्धति का भारतीय इतिहास में कहीं उल्लेख नहीं मिलता सभी महापुरुषों ने इसका विरोध किया है महात्मा कबीर ने नारी की तुलना आग से की है।
(3)विद्यालय का दूषित वातावरण: वर्तमान युग में देखने में आता है कि प्राय विद्यालयों का वातावरण दूषित होता है।अतः लड़के और लड़कियां दोनों का चरित्र भ्रष्ट हो रहा है। संदेश का चारित्रिक हास हो रहा है।
(4) छात्र-छात्राओं के भिन्न रुचि
छात्र-छात्राओं की भिन्न रूचि -पुरूष और स्त्री में रूचि की भिन्नता प्राकृतिक है।दोनों की शिक्षा एक प्रकार की नहीं हो सकती और दोनों का कार्यक्षेत्र भी प्रथक -पृथक है।इसलिए उनकी शिक्षा पृथक-पृथक स्थानों में होनी चाहिए।
भारतीय परंपराओं के प्रतिकूल होते हुए भी सहशिक्षा भारत में आई।इसके अनेक कारण है।प्रथम तो पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव, वर्तमान शिक्षा प्रणाली में विदेशी शासकों के नीति, लड़कियों की उच्च शिक्षा के लिए मांग,तथा अधिकारियो की उक्त मांग को पूरा करने की असमर्थता आती है।
उपसंहार
सरशिक्षा के समर्थकों के विचारशील सम्मति यह है।कि प्राम्भिक श्रेणियों तक सहशिक्षा अच्छी है।माध्य्म अवस्था की कन्याओं के लिए यह शिक्षा हानिकारक है। उस अवस्था में ही अज्ञान के दुष्परिणाम प्रकट होते हैं। बड़ी अवस्था में भी सहशिक्षा से कोई हानि नहीं। क्योंकि लड़की अपना अच्छा गलत खुद सोच सकती है। सहशिक्षा से अनेक लाभ है। लेकिन इससे एक हानि भी है ।जससे सब पर पानी फिर जाता है। उत्तम तो यहीं होंगा की लड़के और लड़कियों को पृथक- पृथक शिक्षा दी जानी चाहिए ताकि उन्हें किसी प्रकार का भय न रहे।