प्लास्टिक की थैलियों के दुष्प्रभाव

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प्लास्टिक की थैलियों के दुष्प्रभाव
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प्रस्तावना


आज हम वैज्ञानिक युग में है इस युग में रहते हुए हम यह अनुभव करते हैं। और यह हम देखते हैं कि विज्ञान हमें वरदान के रूप में मिला है। तो अभिशाप के रूप में भी यह हमारे लिए कम नहीं है। हमने देख लिया है ।और मान भी लिया है ।कि विज्ञान का वरदान और अभिशाप पक्ष हमारे उपयोगिता की दृष्टि से है ।इसलिए विज्ञान को सरासर वरदान मान लिया जाता है। या उसे एकदम अभिशाप के रूप में समझ लेना हमारी कोरी मूर्खता सिद्ध होगी इस प्रकार इस का वरदान या अभिशाप होना हमारी उपयोगिता पर ही निर्भर करता है ।इसी संदर्भ में हम प्लास्टिक की थैली को ले रहे हैं।

प्लास्टिक की हमारे जीवन मे उपयोगिता


यहां हम बखूबी जानते हैं कि विज्ञान की देन में प्लास्टिक का कम महत्व नहीं है ।आज इसका प्रभाव इतना बढ़ गया है ।
कि यह हमारे दैनिक आवश्यकता का एक अभिन्न अंग बन गया है। इसका मुख्य कारण यही है कि यह बहुत ही सुविधाजनक हो गया है कि पीतल और तांबे जैसी महंगी और कठिनता से प्राप्त होने वाली वस्तुओं की अपेक्षा प्लास्टिक अधिक सस्ता और सहज वस्तु दिखाई देती है। इसलिए प्लास्टिक का उत्पादन विश्व के सभी देशों ने बड़ा लिए हैं ।ऐसा लगता है कि इसका उत्पादन 30 से 35 लाख तक बढ़ गया था। इसका यही कारण है कि प्लास्टिक का उत्पादन इसकी खपत के स्वरूप लगातार बढ़ता ही जा रहा है।

प्लास्टिक के उत्पादन की वृद्धि लगातार होने का कारण इसकी बढ़ती हुई उपयोगिता है।इसने हमारे जीवन के प्रत्येक क्षेत्रों में प्लास्टिक जो बढ़त बनाई है उसमें उसकी महत्वपूर्ण स्थान है। यह कहना किसी प्रकार से समुचित और यथार्थ होगा कि आज पूरे संसार में पॉलिथीन ने अपनी छाया फैला दी है ।आज ऐसा शायद ही कोई व्यक्ति होगा जिसने पॉलिथीन का नाम ना सुना हो और नाही जिसने पॉलिथीन को नहीं देखा हो। सच यह है कि पॉलिथीन घर – घर की बहुत बड़ी आवश्यकता की वस्तु बन गई है।

पॉलीथिन के निर्माण में हानिकारक रंग और वस्तु


पॉलीथिन बनाने के लिए आवश्यकता अनुसार विभिन्न प्रकार के रंगों का प्रयोग किया जाता है ।पॉलिथीन में अनेक रंगों के पिगमेंट मिलाकर रंग-बिरंगे लिफाफे बनाए जाते हैं ।जीवन के अन्य क्षेत्रों की तरह कृषि के क्षेत्र में भी पॉलीथिन थैलियों की भूमिका बहुत बड़ी दिखाई दे रही है। इस तरह से कृषि क्षेत्र में अपनी अधिक और व्यापक उपयोगिता प्रस्तुत कर रही है ।हम देख रहे हैं कि विकसित देशों में प्लास्टिक की थैली और कृषि का अटूट और घनिष्ठ संबंध स्थापित हो गया है ।अमेरिका जापान ओर इसराइल सहित यूरोप के अनेक देशों के किसानों ने प्लास्टिक की थैलियों के हर सम्भव लाभ और उपयोग लिया है। अन्य विकासशील देशों ने भी इस और अपनी दौड़ लगानी शुरू कर दी है। इस दृष्टि से हमारा देश भारत भी पीछे नहीं है। यहां के भी किसानों सहित व्यापारियों आदमियों ने भी इसकी उपयोगिता बहुत बड़े पैमाने पर शुरू कर दिए हैं।

अति सदैव हानिकारक होती है।


हम यह स्पष्ट कर चुके हैं कि विज्ञान के दो पक्षों वरदान का पक्ष और अभिशाप का पक्ष” अति सर्वत्र वर्जते “यही सूक्ति भी इसी संदर्भ में है ।अति सदैव हानिकारक होती है । प्रकृति द्वारा उपलब्ध कराए गए वस्तुओं की तुलना विज्ञान प्रदर्शनी की थैलियां अत्यधिक उपयोगी होकर भी हानिकारक सिद्ध हो रही है ।दूसरे शब्दों में यह की प्लास्टिक की थैलियों की उपयोगिता हमारे लिए किसी ना किसी तरह हानि प्रद होने लगी है।

प्लास्टिक की थैलियों के हानि प्रद होने के कारणों पर जब हम विचार करते हैं ।तो हम यह पाते हैं कि प्लास्टिक की थैलियों में प्राकृतिक रूप में विघटित होने की क्षमता नहीं होती है इस प्रदूषण की समस्या को बल मिलता है ।फलस्वरुप प्रदूषण की समस्या और भयंकर होने लगी है ।इससे हमारे स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ने लगा है ।धीरे-धीरे यह समस्या पर्यावरण के लिए एक बहुत बड़ा प्रदूषण तैयार करने लगी है।

उत्पादन से लेकर प्रयोग तक पॉलीथिन से हानि


प्लास्टिक थैलियों से होने वाली हानियों के विषय में हम कह सकते हैं ।कि उत्पादन की प्रक्रियाओं से लेकर उपयोग के विभिन्न तरीकों तक यह प्रदूषण के प्रमुख कारणों में एक है ।यह सच है कि प्लास्टिक की थैलियां विशुद्ध कार्बन युक्त रासायनिक पदार्थों से ही तैयार होती है इसलिए जब इनके उत्पादन प्रक्रिया शुरू होती है तब उस समय इससे गैसों का रिसाव शुरू हो जाता है उसे श्रमिकों के स्वास्थ्य पर तो बिल्कुल बुरा प्रभाव पड़ता ही है इसके साथ ही साथ पर्यावरण भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाता है इसके निर्माता यह भली-भांति जानते हैं कि उन थैलियों के उत्पादन के समय फोसजीन,फार्मोलहाइड,जैसे विषैले कारकों का प्रयोग होता है ।जिससे कैंसर त्वचा और स्वास्थ्य संबंधित रोग तो उत्पन्न होते ही हैं उसके साथ ही साथ वातावरण भी विषैला बने बिना नहीं रह पाता है।

प्लास्टिक की थैलियां उपयोग उपरांत इधर-उधर गड्ढों और नालियों में फेंक दी जाती है इनसे प्रदूषण फैलता है यह नालियां और गड्ढों में फस कर उन्हें बंद कर देती है इन्हें नष्ट करना कठिन होता है ।जमीन के ऊपरी भाग पर फैली सिंथेटिक कूड़ा करकट की मात्रा प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया को प्रभावित करती है। पानी में भी रही प्लास्टिक की थैलियां अनेक प्रकार के गंभीर समस्याएं उत्पन्न कर देती है।

उपसंहार


सचमुच में आज प्लास्टिक की थैलियां पर्यावरण विदों के लिए चिंताजनक सिद्ध हो रही है प्लास्टिक की थैलियों से होने वाली हानियों को लेकर सरकार चिंतित है इसलिए सरकार ने देश में प्लास्टिक कल्चर पर नियंत्रण एवं विकास की जरूरत को सैद्धांतिक रूप से एन.सी.ए की सिफारिशों के आधार पर स्वीकार कर लिया है।

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