तीरंदाजी, धनुर्विद्या का एक रूप है। यह एक प्राचीन विद्या है। जिसे प्राचीन समय में युद्ध के दौरान प्रयोग किया जाता है। आज यह तीरंदाजी खेल के रूप में दुनियाभर में प्रचलित है। आज हम आपके लिए इस लेख के माध्यम से तीरंदाजी पर निबंध लेकर प्रस्तुत हुए हैं। इस निबंध में आपको तीरंदाजी से संबंधित विभिन्न जानकारी प्राप्त होगी।
आइए जानते हैं तीरंदाजी खेल पर निबंध:-
प्रस्तावना- तीरंदाजी में, खिलाड़ी एक निश्चित दूरी पर खड़े होकर लक्ष्य को भेदने के लिए तीर चलाने के लिए धनुष का प्रयोग करता है। तीरंदाजी अथवा धनुर्विद्या शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के ‘आर्कस’ शब्द से हुई थी। प्राचीन काल में इस कला का प्रयोग शिकार के लिए किया जाता था। परंतु आज तीरंदाजी के खेल ने लोगों के बीच अपनी प्रतिष्ठा को बढ़ा लिया है।
इतिहास- लगभग 10000 साल ईसा पूर्व मिस्त्र तथा न्यूबियन संस्कृतियों में शिकार और युद्ध के लिए धनुष व तीर का प्रयोग किया गया। जो कि तीरंदाजी का सबसे पहला प्रमाण माना जाता है। दुनिया के विभिन्न भारतीय, जापानी, चीनी इत्यादि धनुर्धारियों का उल्लेख इतिहास की किताबों में पढ़ा जाता है। प्राचीन काल से ही भारत में तीरंदाजी की कला सर्वाधिक विकसित रूप में परिलक्षित हुई है। भारत में तीरंदाजी के अध्ययन को संस्कृति शब्द धनुर्वेद नाम से संदर्भित किया जाता है।
यदि प्रथम तीरंदाजी प्रतियोगिता के आयोजन की बात करें, तो 1583 में इंग्लैंड के फिनस्बेरी में किया गया था। इस प्रतियोगिता के अन्तर्गत 3000 प्रतिभागियों ने प्रतिभाग किया था। 1900 में पेरिस ग्रीष्मकाल में तीरंदाजी के खेल को ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेल के रूप में अनुमोदित किया गया था।
तीरंदाजी खेल के प्रकार
तीरंदाजी खेल को कुल चार भागों में विभाजित किया गया है –
लक्ष्य तीरंदाजी: तीरंदाजी का सबसे पुराना रूप लक्ष्य तीरंदाजी है। जो कि ओलंपिक में अभ्यास की जाने वाली तीरंदाजी का एक प्रकार है।
फिल्ड तीरंदाजी: फील्ड तीरंदाजी में एक तीरंदाज भौतिक पक्षों पर ध्यान केंद्रित करते हुए विभिन्न जंगलों आदि चीज़ों को लक्ष्य के रूप में निर्धारित किए जाते हैं। जिसके बाद एक विशेष प्रकार के लक्ष्य को निश्चित संख्या में तीरों से मारना है।
क्लाउट तीरंदाजी: इस तीरंदाजी का प्रयोग मध्य युग में सैन्य प्रशिक्षण के रूप में किया जाता था। इस तीरंदाजी में एक ऊध्वारधर छड़ी को मानकर एक विशिष्ट दूरी पर रखा जाता है।
उड़ान तीरंदाजी: इस तीरंदाजी के अन्तर्गत लंबी संभव दूरी पर तीर चलाना शामिल रहा है।
तीरंदाजी खेल के नियम
• ओलंपिक खेलों में आयोजित होने वाले तीरंदाजी खेल में प्रतिस्पर्द्धा में शामिल होने वाले खिलाड़ी को एक रिकर्ब धनुष (तीर) का उपयोग करना होता है।
• तीरंदाजी खेल का लक्ष्य प्रारंभिक बिंदु से लेकर 70 मीटर दूरी तक निर्धारित किया जाता है।
• तीरंदाजी खेल के लक्ष्य में मुख्य 10 संकेंद्रित स्कोरिंग रिंग बने होते हैं। इन रिंगों को पांच रंगो में विभाजित किया गया है। इन्हीं के आधार पर तीरंदाज खिलाड़ी को अंक प्रदान किए जाते हैं।
• अंक प्रदान करने के लिए लक्ष्य में परिलक्षित आंतरिक सोने का रंग( बुल्सआई) – स्कोर 10/9 अंक, लाल रंग – 8/7 अंक, नीला रंग – 6/5 अंक, काला रंग – 4/3 अंक, सफेद रंग – 2/1 अंक।
• इसके अतिरिक्त तीरंदाजी खेल में दो तरीके से स्कोरिंग सिस्टम अपनाया जाता है। 5 जोन स्कोरिंग सिस्टम व 10 जोन स्कोरिंग सिस्टम।
• यह स्कोरिंग सिस्टम प्रतियोगिता के स्तर के आधार पर प्रयोग किए जाते हैं।
• स्कोरिंग को सम संख्या क्रम में किया जाता है।
तीरंदाजी में प्रयुक्त उपकरण-
• धनुष- तीरंदाजी में सबसे महत्वपूर्ण है धनुष जो कि पुरुष के लिए 22 किलो तथा महिलाओं के लिए 17 किलो का होना चाहिए।
• तीर- इसके बाद तीर महत्वपूर्ण उपकरण है जिसका व्यास 9.3 मिमी का हो तथा इसके अलावा उड़ान के लिए 5.5 मिमी का होना चाहिए।
• शूटिंग दस्ताने- उंगलियों को तीर से बचाने के लिए इनका प्रयोग किया जाता है।
• सशस्त्र रक्षक- हाथों को धनुष की डोर से बचाने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है।
• चेस्टगार्ड- धनुष की डोर से शरीर के कपड़ों को दूर रखने के लिए।
• तरकश- तीर रखने के लिए कमर के चारों ओर एक पात्र पहना जाता है।
निष्कर्ष- तीरंदाजी एक ऐसा खेल है जिसे आप 8 साल की उम्र से भी शुरू कर सकते हैं। आवश्यकता है तो सही दिशा निर्देश की। तीरंदाजी का खेल किसी भी मौसम में खेला जा सकता है। भारतीय पौराणिक कथाओं में तीरंदाजी का प्रयोग पढ़कर अधिकतर बच्चों की रुचि इस खेल के प्रति जागृत होती है। वास्तव में तीरंदाजी खेल बच्चों के विकास, आंखो की लिए एक अच्छे व्यायाम, एकाग्रता तथा आत्मविश्वास को बढ़ाने का सर्वोत्तम साधन है।