प्रस्तावना: छुआछूत का अर्थ है :- किसी से दूर रहना उसको छूने को भी पाप समझना। समाज मे निम्न ओर छोटी-उपेक्षित जातियों से नफरत ओर घृणापूर्ण व्यवहार। इस प्रकार के व्यवहार और कार्य हमारे देश मे सदियों से होते चले जा रहे है। यह इसलिय हमारे देश मे रूढ़िवादी व्यवस्था अभी तक निर्मूल नही हो पाई है। वह आज भी वर्ण-व्यवस्था पर आधारित ओर संचालित है। फलतः हमारी सामाजिक व्यवस्था के अनुसार सबसे कमजोर और उपेक्षित जाती को उपेक्षित समझने रखने के लिए अछूत मान लिया गया है।
छुआछूत का इतिहास: हमारी वर्ण व्यवस्था मनुवादी व्यवस्था है। अर्थात इसे मनुमहाराज ने व्यवस्थित किया था। उनकी व्यवस्था के अनुसार हमारा सम्पूर्ण समाज चार वर्णो में विभाजित है। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य ओर शुद्र,। इनमे शुद्र जाती उपयुकर्त तीनों जातियों से हीन ओर नीच कोटि में रखी गयी है। इस दृष्टि से इसे सबसे हेय दृष्टि से देखा जाता है। यही कारण है। है कि इसे आज तक समाज मे अपेक्षित ओर समुचित स्थान प्राप्त नही हुआ। इस आधार पर इसे सबसे खोटे, गन्दे ओर निंदनीय कर्म करने के लिए बाध्य होना पड़ता है। फलतः वह अपने अनुसार उन्नति और सुख को प्राप्त नही कर पाता है।
छुआछूत के प्रति अमानवीय व्यवहार: छुआछुत के प्रति हमारा समाज सदियों से अब तक अमानवीय कदम उठाता रहा है। दूसरे शब्दों में हमारे समाज मे छुआछूत के लिए कोई सहानुभूति ओर सह्रदयता के भाव नही है।
उनके प्रति तो पशुता पूर्ण व्यवहार ही हमारे समाज की देन है। यही कारण है कि अति प्राचीन काल से ही शूद्रों अर्थात अस्पर्शयो को जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं से बहुत दूर रखा गया। उन्हें बस्तियों से दूर रखा गया है। हर प्रकार के अधिकारों से वंचित रखा गया वे विवश होकर गड्ढों का पानी पीने के लिए मजबूर होते रहे हैं। उन्हें छूने पर छूने वालों को नहीं अपितु उन्हें ही कठोर और बड़े दण्ड दिए जाते रहे हैं। इस प्रकार उन्हें ना तो किसी घर पर जाने का अधिकार प्राप्त हुआ और ना ही उन्हें मंदिर, तीर्थ स्थल आदि पवित्र स्थानों में जाने या प्रवेश करने की कभी कोई छूट ही मिली। इस प्रकार के सारे प्रतिबंध सभी वर्णो द्वारा लगाए प्रतिबंध थे। जो छुआछूत को हर प्रकार से दलित और कुंठित करने के उद्देश्य से लगाए गए थे। इनसे उन्होंने छुआछूत की आजादी और खुशी का थोड़ा भी हिस्सा नसीब होने से दरकिनार कर रखा है इसलिए वह अपने विवाह आदि के अवसरों का मनचाहा आनंद लेने से सदैव अछूते रहे। ईस प्रकार के प्रतिबंधों से तंग और दुखी होकर एक बार डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने महात्मा गांधी से स्पष्ट रूप में कहा था।
” गांधी जी मेरा कोई अपना देश नहीं है इस भूमि को मैं कैसे अपना देश कहूं और इस धर्म को कैसे मान लें जबकि हमसे पशुओं से भी अधिक बुरा व्यवहार किया जाता है”
छुआछूत को दूर करने के उपाय: छुआछूत को दूर करना बहुत बड़ी मानवता है मानवता और ईश्वर के प्रति घोर अपराध और बहुत बड़ा कलंक है छुआछूत को दूर करने के लिए सबसे पहले स्वामी दयानंद ने प्रयास किया था। उन्होंने अछूतों को गले लगा कर ऊंच-नीच रूढ़ि पर प्रहार किया। इसके बाद महात्मा गांधी ने इस समस्या के समाधान के लिए हद तक प्रयास किया। इसके लिए उन्होंने ने कहा” छुआछूत मानवता और ईश्वर के प्रति घोर अपराध है” उन्होंने इसके लिए केवल भाषण ही नहीं दिए, अपितु उन्होंने भंगी और अछूतों की बस्तियों में जा जाकर उनके साथ रहकर इस भेदभाव को दूर करने का पूरा प्रयास किया ।उन्होंने छुआछूत अर्थात चर्मकारों भंगियों को हरिजनों का नाम देकर अपनी सहानुभूति और मानवता का मार्ग प्रशस्त किया। इससे समाज में फैली छुआछूत की भावना काफी हद तक दूर हो गई। उन पर अत्याचारों के दौर कम हो गए। उन्हें सम्मान मिलने शुरू हो गए।
छुआछूत की वर्तमान स्थिति: छुआछूत की वर्तमान स्थिति बहुत हद तक संतोषजनक है। स्वतंत्र भारत के संविधान में छुआछूत के लिए विशेष कानून बनाए गए। संविधान निर्माता डॉ .अंबेडकर ने छुआछूत अर्थात अछूतों के प्रति अत्यंत सहानुभूति दिखाई। ऐसा इसलिए कि वे स्वयं ही इसी श्रेणी के थे। उन्होंने अछूतों के लिए अपनी गहरी सहानुभूति दिखाते हुए उनके उद्धार के लिए अनेक कानून बनाएं इसके अंतर्गत उन्होंने आर्थिक और सामाजिक स्तर पर अछूतों को ऊपर उठाने के लिए उन्हें विभिन्न प्रकार के सरकारी विभागों के विभिन्न पदों पर उन्हें आरक्षित स्थान दिलाने के लिए संविधान की विशेष धाराएं बनाई। इनसे अछूतों की स्थितियों में अपेक्षित सुधार और विकास हुआ है।
सन 1990 ई . में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल रिपोर्ट के अनुसार अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए सरकारी रिक्त स्थानों में 40% आरक्षण करवा करके उनकी स्थिति को ओर अधिक दृढ़ और स्थाई बनाने का सफल प्रयास किया।
उपसंहार
छुआछूत हमारे समाज और राष्ट्र के विकास पथ का बहुत बड़ी बाधा है। इसलिए इस समस्या का समाधान किसी भी प्रकार से निश्चित रूप से हो जाना अत्यंत आवश्यक है। इसलिए यह आवश्यक है कि समाज के सभी उच्च वर्ग इसके प्रति सहानुभूति ओर शदर्यता का पूरा-पूरा व्यवहार करें। यह तभी संभव है जब पूरे समाज और राष्ट्र में जन चेतना का जागरण का संदेश फैले। इस प्रकार जन- जागृति और जन चेतना के द्वारा परंपरागत मानसिकता में भारी परिवर्तन आएगा। फलतः सभी छुआछूत का ना केवल जीवन स्तर पर अपेक्षित सुधार होगा। वह बहुत ऊपर उठेंगा। इस तरह सभी अछूत समाज के सभी वर्गों के समान जीवन जीने का अधिकार प्राप्त करेगा। इस तरह हमारे देश समाज से छुआछूत का अभिशाप वरदान में बदल जाएगा।
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