आरक्षण की आवश्यकता

प्रस्तावना


यह तो पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था स्वतंत्रता प्राप्ति के काल से चली आ रही है। लेकिन वर्ष 1990-91 में सरकार की आरक्षण संबंधी घोषणा से समूचे देश में हलचल उत्पन्न हो गई भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री बी पी सिंह ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने का निर्णय लिया यह निर्णय शीघ्रता से लिया गया था तथा राजनीति से प्रेरित था फलस्वरूप असंख्य युवक-युवतियों को आत्महत्या का रास्ता चुनना पड़ा देश के बड़े बड़े नगरों में आरक्षण के विरुद्ध आंदोलन उठ खड़े हुए ।वी.पी.सिंह की हठधर्मिता के फल स्वरुप देश की अरबों रुपए की संपत्ति नष्ट हो गई समूचा उत्तर भारत घड़ा और विद्वेष की आग में झुलसने लगा पिछड़ी जाति और ऊंची जातियों के बीच विभाजक रेखा फिर से खिंच गई सामाजिक और राजनीतिक स्तरों पर आरक्षण की नीति का विरोध होने लगा राजनीतिक नेता अपने-अपने स्वार्थों के प्रति सर्जक होने लगे और वी.पी. सिंह सरकार चर्माकर टूट गई महीनों तक शासन व्यवस्था ठप हो गई स्कूल कॉलेज और विश्वविद्यालय बंद हो गए और विद्यार्थी नारे लगाते हुए सड़कों पर आ गए।

आरक्षण का महत्व


आखिर यह आरक्षण है क्या? वी. पी. सिंह सरकार ने इसे क्यों लागू किया अथवा इसके लागू करने से इतना विरोध क्यों हुआ? ऐसे अनेक प्रश्न आज भी पाठकों के मन में उठने लगते हैं

आरक्षण का शाब्दिक अर्थ है


सुरक्षित अर्थात समाज की पिछड़ी अनुसूचित जातियों के लिए नौकरियों को सुरक्षित रखना जिससे कि वह भी समाज के अन्य लोगों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ सकें। हमारे संविधान के अनुच्छेद 14-18 धारा 15 ओर उपधारा 4 के अंतर्गत अनुसूचित एवं पिछड़ी जातियों के लिए कुछ विशेष सुविधाओं और अधिकारों की व्यवस्था की गई थी। मूलतः आरक्षण की यह व्यवस्था 10 वर्षों के लिए थी। परंतु हमारे देश की विडंबना यह है कि जिसको जो सुविधा मिल जाती है वह उसे छोड़ना नहीं चाहता। फिर सत्ता प्राप्त कांग्रेस पार्टी के लिए अनुसूचित /पिछड़ी जातियों एक निश्चित बोर्ड बैंक था। अतः अंतर्गत पहले तो 25% 53% तक सरकारी नौकरियों का आरक्षण था। भूतपूर्व प्रधानमंत्री ने अपनी पार्टी को वोट बैंक बनाने के लिए 10 वर्ष पुरानी मंडल आयोग की रिपोर्ट को लागू करने का निर्णय किया फलस्वरूप देश में रहने वाले अन्य जातियों को अपना भविष्य अंधकार में लगने लगा और आरक्षण का विरोध आरंभ हो गया।

आरक्षण क्यों


परतंत्रता काल में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने शूद्रों को हरिजन की संज्ञा दी राष्ट्रीय भाव धारा में इनको मिलाने का भरसक प्रयास किया। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात सरकार ने हरिजनों तथा अन्य पिछड़ी जातियों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के लिए तरह-तरह की योजनाएं बनाइ ।आरक्षण की व्यवस्था योजनाओं में से एक महत्वपूर्ण कदम था उस समय आरक्षण का औचित्य था। क्योंकि समाज का एक महत्वपूर्ण वर्ग लंबे काल से दीन हीन जीवन यापन कर रहा था ।यदि ऊंची जाति के लिए लोग जीवन की सुख-सुविधाओं को भोग सकते हैं तो यह लोग इससे वंचित क्यों हो ।
फिर जब तक देश में व्याप्त आर्थिक और सामाजिक विषमताओं को दूर नहीं किया जाता तब तक देश का विकास संभव नहीं था इसलिए आरक्षण का उद्देश्य पिछड़े हुए लोगों को आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना था। यह व्यवस्था 1947 से चल रही है। और इससे पिछड़ी जाति के अनेक लोग लाभान्वित हुए हैं।

बीपी .सिंह सरकार ने 10 वर्षों में दबी हुई मंडल आयोग की रिपोर्ट को बाहर निकाल कर एक ऐसा विवाद खड़ा कर दिया जो समूचे राष्ट्र के लिए घातक सिद्ध हुआ इस नई व्यवस्था के अनुसार सरकारी नौकरियों में 65% नौकरियां पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षित कर दी गई ।इसका अर्थ यह हुआ कि देश की सरकारी नौकरियों का 65% भाग उन लोगों को दिया जाएगा जो पिछड़ी जातियों के हैं भले ही उनमें योग्यता हो अथवा ना हो यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है कि योग्यता के आधार पर इस वर्ग के बहुत कम लोग नोकरिया पा सकते हैं यही कारण है कि गैर सरकारी नौकरियों में पिछड़े हुई जातियों के बहुत कम लोग स्थान पा सकते हैं।सरकार ने गत 45 वर्षों में इस वर्ग के लोगों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने का भरसक प्रयास किया है उनकी शिक्षा आवास और आजीविका आदि के बारे में अनेक उपाय किए हैं ।लेकिन दुख की बात तो यह है कि पिछड़े वर्ग में भी कुछ ही परिवारों के लोग बार-बार सुविधाएं प्राप्त किए जा रहे हैं अतः इस नीति को लेकर गुजरात, राजस्थान ,मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में अब विरोध होने लगा है। विशेषकर शिक्षित युवक युवतियों इस नीति का डटकर विरोध करने लगे हैं।

उपसंहार


मूलतः आरक्षण की व्यवस्था केवल 10 वर्षों के लिए थी ।जिसको बार-बार बढ़ाया जाता रहा है। परिणाम यह हुआ है कि अन्य जातियों में इसके प्रति विरोध होने लगा। फिर तथाकथित स्वर्ण जातियों में ऐसे करोड़ों लोग हैं जो गरीबी के स्तर से नीचे जी रहे हैं वह ना तो शिक्षित है और ना उनके पास उचित रोजगार है बल्कि उनकी स्थिति दिन-प्रतिदिन और भी हीन होती जा रही है।जातिगत आधार पर आरक्षण देने से अनेक महत्वपूर्ण पदों में अयोग्य व्यक्ति आसीन है। जिससे प्रशासन पर बुरा प्रभाव पड़ने लगा है साथ ही आरक्षण की सुविधा उन लोगों को नहीं मिल रही जिनको इसकी जरूरत है।जो परिवार एक बार आरक्षण का लाभ उठा चुका है उसे दोबारा आरक्षण की सुविधा देना सर्वथा अनुचित है ।अतःआरक्षण का आधार जातिगत न होकर आर्थिक होना चाहिए ।इसका एक अच्छा परिणाम यह होगा कि जातिगत विद्वेष समाप्त होगा और समाज के गरीब लोगों को भी ऊपर उठने का सुअवसर प्राप्त होगा।

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