भगत सिंह पर निबंध

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आज हम अपने लेख के माध्यम से आपके लिए भारत के वीर अमर शहीद क्रांतिकारी भगत सिंह पर निबंध लेकर आएं हैं। जिन्हें भारत का बच्चा जानता है आज उन वीर शहीद भगत सिंह के विषय में संपूर्ण जानकारी हम आपको इस निबंध में देने वाले हैं।

तो आइए जानते हैं, अमर शहीद भगत सिंह पर निबंध..

प्रस्तावना

सदियों में कोई एक ऐसा वीर पुरुष होता है जो जन्म लेकर धरती को कृतार्थ करता है। निःसंदेह भारत के क्रांतिकारियों की सूची में भगत सिंह का नाम उच्च शिखर पर विद्यमान है। उन्होंने केवल जीवित रहते ही नहीं अपितु शहीद होने के बाद भी देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा अपने शौर्य से अनेक नौजवानों को देश भक्ति के लिए प्रेरित किया है। गुलाम देश की आजादी के लिए अपनी जवानी तथा संपूर्ण जीवन देश के नाम कर दिया।

भगत सिंह का जीवन

देश भक्ति के भाव से ओत-प्रोत शहीद भगत सिंह का जन्म पंजाब के जिला लायलपुर गांव बंगा (वर्तमान पाकिस्तान) में, 28 सितम्बर 1907 को एक देशभक्त सिख परिवार में हुआ। इनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह तथा माता का नाम विद्यावती कौर था। परिवार के आचरण का अनुकूल प्रभाव सरदार भगत सिंह पर पड़ा।

वह एक ऐसे परिवार से थे जो अंग्रेजों की गुलामी से बंधे भारत को आजाद कराने के लिए तत्पर थे। भारत को आजादी दिलाने के लिए महज 13 वर्ष की उम्र में भगत सिंह ने अपना स्कूल छोड़ने का फैसला कर लिया और अंग्रेजी नीतियों का बहिष्कार करने निकल पड़े।

23 वर्ष की उम्र में दे दी गई फांसी

कम उम्र में ही भगत सिंह प्रबल क्रांतिकारी के रूप में उभरने लगे और युवाओं का एक जत्था भी उनके साथ खड़ा हो गया। लाला लाजपतराय की मृत्यु के बाद उनका आक्रोश फूट पड़ा और उन्होंने एक अंग्रेजी उप महानिरीक्षक को गोली मार दी। जिसके बाद उन पर हत्या का मामला दर्ज हो गया।

अपने साथियों के साथ मिलकर व्यापार विवाद बिलों का विरोध करते हुए केंद्रीय विधानसभा पर बम फोड़कर धमाका किया। जिसके बाद इस घटना को लेकर भगत सिंह और उनके साथियों को अंग्रेजी सेना द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया।

जेल में भगत सिंह को काफी यातनाएं सहनी पड़ी जिसके चलते उन्होंने और उनके साथियों ने 116 दिन भूख हड़ताल भी जारी रखी। 23 मार्च 1931 को मात्र 23 वर्ष की आयु में भगत सिंह को फांसी दे दी गई। उनके साथी सुखदेव और राजगुरु भी इसी दिन भारत माता की रक्षा हेतु फांसी पर चढ़ गए और इन्कलाब का नारा अमर कर गए।

देश के अमर शहीद

भगत सिंह वास्तव में एक सच्चे देशभक्त थे, जो बहुत कम उम्र से एक उत्कृष्ट अतुलनीय क्रांतिकारी रहे। एक बार की बात थी कि उन्होंने अपने पिता की बदूक को खेत में दबा दिया, जब पिता ने पुछा कि बन्दूक कहां है तो भगत सिंह बोले कि अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए बदूक को खेतों दबा के आया हूं। जब कई बन्दूक होगी तो उनसे लड़ने में आसानी होगी। देश के प्रति उनका अतुल्य साहस देखकर भगत सिंह के पिता की आंखें नम हो गई।

निष्कर्ष

भगत सिंह अपनी मातृभूमि के लिए हर संभव कोशिश करने के लिए हमेशा तैयार रहते थे। देश के लिए दिए गए उनके बलिदान की गाथा, इतिहास में सुनहरे अक्षरों से लिखी गई है। देश उन्हें हमेशा याद रखेगा। शहीद भगत सिंह का नाम सदा अमर रहेगा।

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