दादा बड़ा ना भैया , सबसे बड़ा रुपया पर निबंध

एक वक़्त था जब मनुष्य के लिए परिवार से बढ़कर कुछ नहीं होता था। वह परिवार के सदस्यों के लिए अपना सबकुछ दाव पर लगा सकता था। बदलाव प्रकृति और नियति का नियम है। वक़्त बदला तो मनुष्य के मूल्यों और सोच विचार में परिवर्तन आया। जब वक़्त बदला तो मनुष्य की ज़रूरतें और प्राथमिकता भी बदली। अब इंसान रिश्तों से ज़्यादा रुपयों को प्राथमिकता देता है। इसलिए यह लोकोक्ति भी लोकप्रिय हो गयी जो इस प्रकार है :

“ दादा बड़ा ना भैया , सबसे बड़ा रुपया “

आज इस कलयुग में मनुष्य ने हर क्षेत्र में उन्नति की है चाहे वह व्यापार हो , नौकरी हो या विज्ञान , चिकित्सा का क्षेत्र  लेकिन फिर भी मनुष्य संतुष्टि नहीं ला पा रहा है।  उसे और अधिक धन की आवश्यकता है। धन का महत्व आज इंसानियत से बढ़कर हो गयी है। धन है रुपया पैसा है तो समाज में इज़्ज़त है।  धन से हम जिन्दगी में सब कुछ खरीद सकते है। धन की महक से सभी विपत्तियां दूर हो जाती है। धन प्राप्त करने से लोगो के बातचीत करने का ढंग , उठना बैठना सब कुछ बदल जाता है।

धनवान व्यक्ति की ताकत एक साधारण इंसान से अधिक हो जाती है।  कभी कभी वह कुछ कार्य पैसो के दम पर लोगो से आसानी से करवा लेते है जो साधारण व्यक्ति नहीं कर पाता है। पहले लोग कहा करते थे जहां लक्ष्मी रहती है वहां सरस्वती नहीं हो सकती है।  इसका कारण है लक्ष्मी और सरस्वती में बैर है।  आज के इस युग में दोनों लक्ष्मी और सरस्वती एक ही घर में पाए जाते है। अर्थात जिसके पास धन है वह कोई भी शिक्षा प्राप्त कर सकता है। सम्पन्न लोग ही अच्छी और उत्तम शिक्षा किसी भी क्षेत्र में प्राप्त कर सकते है।  आजकल इंजीनियरिंग और डॉक्टर बनने की डिग्री इत्यादि शिक्षा धनवान व्यक्ति प्राप्त कर सकते है।

यदि कोई गरीब व्यक्ति चाहे तो भी महंगी शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकता है। कई   शिक्षित  और योग्य व्यक्ति के पास धन नहीं होता है। यही वजह है कि ज़िन्दगी के विषम परिस्थितियों को उन्हें झेलना पड़ता है। जिसके पास धन ज़्यादा होता है उन्हें धन पाने  की चाहत ज़्यादा होती है।

आजकल लोगो में धन पाने की ललक बढ़ती चली जा रही है। धन के साथ साथ भय , लालच , चिंता , कृपणता जैसे भाव उतपन्न होने लगते है। धन जिस मनुष्य को जितना अधिक प्राप्त होता है ,वह कभी संतुष्ट नहीं रहता है। मनुष्य चाहे कितनी ही दौलत जमा  क्यों ना कर ले उसमे कभी भी संतोष नहीं रहता है। मनुष्य इतना अधिक स्वार्थी हो गया है कि उसको रुपयों से अधिक महत्व कुछ लगता ही नहीं है।

सब धन कमाने के चक्कर में दौड़ रहे है।  कुछ ही लोग है जो रिश्तों और भावनाओ को रुपयों से ऊपर रखते है।  धन की अहमियत इसलिए ज़्यादा है क्यों कि धन है तो मनुष्य आसानी से शिक्षा प्राप्त कर लेता है। धन है तो मनुष्य अच्छी चिकित्सा का खर्च उठा सकता है। धन है तो मनुष्य किसी भी परेशानी को सुलझा सकता है।  मगर कहीं ना कहीं इतना धन होने के बावजूद धनवान व्यक्ति को चैन की नींद नहीं आती है।

कुछ लोग जो अशिक्षित और गरीब  होते है उन्हें अच्छी नौकरी नहीं मिल पाती है।  वह धन कमाने के लिए गलत मार्ग अपनाते है और खुद अपराधों के दल दल में समा जाते है। धन की लालसा ने  भ्रष्टाचार  और अपराधों को जन्म दिया है।

धन जहर की तरह दुर्गुणों को जन्म देता है।  इंसानो में जैसे भावनाएं समाप्त होती जा रही है। कालाबाज़ारी , रिश्वतखोरी , मिलावट और जमाखोरी जैसे अपराध लोग धन की लालच में करते है और आम जनता को लूट लेते है। कुछ व्यक्ति जबरदस्ती अमीर बनने के सपने देखते है और चोरी डैकती करते है।  यह सरासर गलत तरीका है। कुछ लोग दहेज़ के रूप में धन प्राप्त करना चाहते है और महिलाओ पर अत्याचार करते है।

जब तक व्यक्ति के पास धन रहता है लोग उन्हें सम्मान देते है और उनके मित्र बनने की कोशिश करते है। जिस व्यक्ति के पास धन नहीं है उसे कोई नहीं पूछता है। व्यक्ति में कितने ही अधिक गुण क्यों ना हो अगर उसके पास धन नहीं है , तो समाज भी उसे अधिक महत्व नहीं देता है।

ज़रूरी नहीं कि लोग धन कमाने के लिए अवैध काम करते है।  कई लोग ऐसे है जो धन कमाने के लिए कड़ी मेहनत करते है। वह दिन रात नौकरी और व्यापार करके धन कमाते है।कुछ लोग सभ्य समाज में रहते हुए भी दहेज़ के रूप में धन प्राप्त कर लेते है। ऐसे लोग दहेज़ प्रथा को सिर्फ एक रिवाज़ का नाम देकर महिलाओ और उनके घरवालों का शोषण करते है। कितने ही लोगो ने धन के लालसा में आकर अपनों ने  हत्या की है।

  यह निंदनीय अपराध है।  सच तो यह है धन भौतिक और रोजमर्रा की ज़रूरतें पूरी करता है मगर खुशियां अपनों और अपनेपन से आती है।  मन की संतुष्टि हमारे अंदर है। इससे धन का कोई लेना देना नहीं है।

निष्कर्ष

धन से बढ़कर कोई सगा , अपना और कोई महत्वपूर्ण नहीं है। मनुष्य उस आदमी को अधिक महत्व और प्यार देता है जिसके पास धन हो। आधुनिक कलयुग में यह कथन बिलकुल सठिक बैठती है और लोगो के इस मानसिकता को उजागर करती है। आज कल के इस व्यस्त जीवन में लोग सिर्फ रुपयों को महत्व देते है और अपनों को भूल जाते है।  पैसा तो हम कभी भी कमा सकते है , मगर एक बार अपने और दोस्तों का साथ छूट गया तो वह लौट के वापस नहीं आता है।

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