ज्वालामुखी पर निबंध Essay on Volcano in Hindi
ज्वालामुखी एक शंकु के आकार की पहाड़ी या पहाड़ है जो पृथ्वी की सतह में एक उद्घाटन के चारों ओर बनाया गया है, जिसके माध्यम से गर्म गैसों, चट्टान के टुकड़े और लावा को निकाला जाता है। ठोस टुकड़ों के जमाव के कारण एक शंक्वाकार द्रव्यमान निर्मित होता है जो आकार में बढ़ कर एक बड़ा ज्वालामुखी पर्वत बन जाता है। इस प्रकार निर्मित शंक्वाकार द्रव्यमान को ज्वालामुखी कहा जाता है। पश्चिमी संयुक्त राज्य अमेरिका के कैस्केड रेंज में एंडीज में बहुत ऊंची चोटियों, माउंट बेकर, माउंट एडम्स, माउंट हुड इत्यादि सभी ज्वालामुखी हैं जो अब विलुप्त हो गए हैं। ज्वालामुखी विस्फोट से भी कई लोगो की मृत्यु हो जाती है। ज्वालामुखी के निकट क्षेत्रों को विस्फोट से भारी नुकसान झेलना पड़ता है। भारत में कुछ ज्वालामुखी है जहाँ ज्वालामुखी विस्फोट हुए है। उनके नाम है बारेन आइलैंड , डेक्कन ट्रैप्स , बरटांग आइलैंड ,धिनोधर हिल्स और दोपी हिल है।
पृथ्वी के अंदर स्थित चट्टान जो पिघली हुयी होती है , उसे मैग्मा कहते है। जब मैग्मा धरती की सतह पर आता है उसे लावा कहते है। लावा ज्वालामुखी एक कोन की स्थापना करती है। जब तक ज्वालामुखी लावा, गैस इत्यादि बाहर निकलता है , उसे सक्रीय ज्वालामुखी यानी एक्टिव वोल्केनो कहते है। अगर ज्वालामुखी से लावा ना निकले उसे निष्क्रिय ज्वालामुखी यानी इनएक्टिव वोल्केनो कहते है। मगर कुछ कहा नहीं जा सकता है निष्क्रिय ज्वालामुखी कभी भी सक्रीय हो सकती है।
अगर दस हज़ार वर्ष या उससे अधिक वक़्त तक ज्वालामुखी निष्क्रिय रहती है , तो उसमे से कभी भी लावा नहीं निकलेगा और ना ही विस्फोट होगा। इसे मृत ज्वालामुखी कहा जाता है। मैग्मा की तीव्र गति और गैस की उत्सर्जन (निष्कासन) गति सबसे अधिक होती है जब ज्वालामुखी विस्फोट होता है। उत्सर्जन का अर्थ है तरल पदार्थ निकलने की गति | जब लोग सक्रीय ज्वालामुखी से मैग्मा निकलते हुए देखते है , तब इसकी भयावह स्थिति का पता चलता है। जल और कार्बन डाइऑक्साइड गैस मैग्मा से निकलता है। अपनी अलग अलग आकृतियों के कारण ज्वालामुखी अलग अलग नामो से जाना जाता है।
कुछ ज्वालामुखी में अधिक जल भरा होता है और कुछ एक कोन का रूप ले लेते है। शील्ड ज्वालामुखी में मैग्मा अत्यधिक गर्म होता है। अधिक मात्रा में निकलता है और यह धीरे धीरे बहता है और ज्वालामुखी के मुख पर जाकर जमने लगता है। इसका तापमान आठ सौ से बारह सौ सेन्ट्रीग्रेड के बीच होता है। कंपोजिट ज्वालामुखी खड़ी चट्टानों वाली ज्वालामुखी हैं। यह आमतौर पर उच्च-चिपचिपाहट वाले लावा, राख और रॉक मलबे से बने ज्वालामुखी चट्टानों की कई परतों से बने होते हैं। माउंट रेनियर और माउंट सेंट हेलेंस इस प्रकार के ज्वालामुखी के उदाहरण हैं।
इसमें मैग्मा का तापमान कम होता है और जल्दी जमने लगता है। मैग्मा को निकलने में जब मुश्किल होती है तो वह अधिक शक्ति के संग बाहर आने का प्रयत्न करता है जिससे बहुत ज़ोर का विस्फोट होता है। आठ सौ से 1000 सेन्ट्रीग्रेड के बीच लावा का तापमान दर्ज किया गया है।
जब लावा का बहाव बहुत अधिक होता है , तब लावा गुंबदों का निर्माण होता है। जो बहता है और ज्वालामुखी के पास लावा के ढेर के रूप में खड़ी-किनारे का टीला बनाता है। सन 1980 में माउंट सेंट हेलेंस का विस्फोट पहाड़ के अंदर से हुआ था । इसमें से विस्फोटक गैस और भाप निकला था। इसे लावा ज्वालामुखी कहा जाता है।
क्लोडेरा ज्वालामुखी में ज्वालामुखी के मुख पर ज़्यादातर लावा जम जाता है। इसमें से निकलने वाली ज्वालामुखी बहुत चिपचिपा सा होता है। यह बाकी ज्वालामुखी की तुलना में थोड़ा कम गर्म रहता है। इस प्रकार के ज्वालामुखी में मैग्मा का तापमान सात सौ से आठ सौ डिग्री सेंटीग्रेड के बीच होता है।
ज्वालामुखी नाम का सृजन रोमन के अग्नि देवता वालकैन के नाम पर हुयी है। समस्त धरती का निर्माण इस कारण से होता है क्यूंकि पृथ्वी में सत्रह टेकटोनिक प्लेट मौजूद है। ज्वालामुखी तांडव वहां मचाती है जहाँ एक प्लेट दूसरे प्लेट के विरुद्ध खिसकती रहती है।
माउंट विसुवियस ज्वालामुखी इटली देश में स्थित है। इसकी आकृति कोन आकार की है। लाखो लोगो की मौत इस ज्वालामुखी इस विस्फोट से हुयी थी। यह बहुत खतरनाक हादसा था। संसार की सबसे विनाशकारी ज्वालामुखी मानी जाती है क्यों कि इसके निकट कई लाखो लोग रहते है। यहाँ सन 1944 में सबसे अंतिम बार ज्वालामुखी विस्फोट हुआ था । वोलकानिक गैस , पत्थर और कई असामान्य चीज़ें ज्वालामुखी विस्फोट के समय निकलती है।
प्रशांत महासागर पर कई सक्रीय ज्वालामुखी है , उनमे से एक है माउंट रिज । सन 1985 में दक्षिण अमेरिका में दो विस्फोट हुए थे। विस्फोट के बाद यहाँ नदी और कीचड़ बहने लगा था जहाँ पूरा एक बसा बसाया शहर नष्ट हो गया था। यहाँ अंतिम बार 2016 में विस्फोट हुआ था। यह एक तरह का कम्पोजिट ज्वालामुखी है।
माउंटेन पली एक विनाशकारी ज्वालामुखी है। सन 1902 में इसका विस्फोट हुआ था। इसमें कई लोगो की मौत हुयी थी। सन १९३२ में भी आखरी विस्फोट हुआ था। इस की ऊंचाई 1 397 मीटर है। माउंट तंबोरा ज्वालामुखी का प्रलयंकारी विस्फोट 5 अप्रैल, 1815 को शुरू हुआ, जिसमें छोटे-छोटे झटके और पायरोक्लास्टिक प्रवाह थे। साल 1815 की विस्फोट ने 10 अप्रैल की शाम को पहाड़ को उड़ा दिया था । इस विस्फोट, पाइरोक्लास्टिक प्रवाह ने 35,000 से अधिक घरों को नष्ट कर दिया। इससे कई लोगो की मौत हुयी थी। इसका आखरी विस्फोट वर्ष 1967 को हुआ था। इसमें भी जान माल का बेहद नुकसान हुआ था । माउंट टैम्बोरा की विस्फोटक घटनाएं प्लेट टेक्टोनिक्स की वजह से हुयी थी ।
ज्वालामुखी जैसे क्षेत्रों के नजदीकी गाँवों और शहरों में रहने वाले लोगो को इसके विस्फोट की खबर मिलनी चाहिए। मगर हमेशा ऐसी खबर नहीं मिल पाती है , जिसकी वजह से जान माल का भारी नुकसान होता है। ऐसी खबरें अगर लोगो तक मिलती है , तो लोगो को अपने ज़रूरी सामान के साथ दूर कहीं चले जाना चाहिए। ज्वालामुखी कभी कभी इतने अधिक जानलेवा होते है , कि इसके दुष्परिणाम लोगो को सहने पड़ते है।
निष्कर्ष
सक्रीय ज्वालामुखी बेहद खतरनाक होते है और फटते भी है। आने वाले वक़्त में उसके फटने का अंदेशा भी बना रहता है। प्रसुप्त ज्वालामुखी बहुत वर्ष पहले फट चुके होते है और आने वाले वक़्त में उनके विस्फोट का डर नहीं लगा रहता है। ज्वालामुखी फटने से लाभ और नुकसान दोनों होते है। इसका फायदा यह होता है कि मिटटी की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है। मिटटी की उर्वरक शक्ति से फसलों की पैदावार बहुत अच्छी होती है।
उर्वरक क्षमता इसलिए अधिक विकसित होती है , क्यों कि जब ज्वालामुखी विस्फोट होता है , तो धरती के अंदर से सारे अच्छे तत्व जो मिटटी की क्षमता को बढ़ाते है , वह निकलते है। ऐसे पदार्थ पृथ्वी की मिटटी में मिलकर फसलों की पैदावार को बढ़ाते है। लेकिन दूसरी तरफ विस्फोट से कई लोगो की मौत हो जाती है और कई शहरें तबाह हो जाती है।