नारी शक्ति पर हिंदी निबंध
द्विधा कृत्वात्मनो देहमर्धेन पुरुषोअमवत
अर्धेन नारी तस्या स दिराजं सृजत्प्रभु:|| ( मनुस्मृति)
अर्थात् हिरयन्गर्भ् ने अपने शरीर के दो भाग किये आधे से पुरुष और आधे से स्त्री का निर्माण हुआ। समाज का निर्माण स्त्री एवं पुरुष के संयोग से हुआ है, अतः समाज के संचालन के लिए जितनी अवश्यकता पुरुष की है उतनी ही स्त्री की भी। प्राचीन समय से स्त्री ने समाज के विकास एवं संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
हालांकि तब स्त्री की दशा बहुत शोचनीय थी, उन्हें बहुत सी सामाजिक कुरीतियों का सामना भी करना पड़ता था , जब राजा राम मोहन राय, ईश्वरचंद विद्यासागर जैसे महान विचारक एवं समाज सुधारको ने इन कुरीतियों से स्त्री को होने वाली हानियों को अनुभव किया तो उन्होंने नारी स्वाधीनता की आवाज़ उठाई, जिससे स्त्रियों में कुछ जगृति के लक्षण उत्पन्न होने लगे और अनेक महिलायें आगे आकर राष्ट्र निर्माण के मानकों में भाग लेने लगी एवं अपनी विद्या, बुद्धि एवं कर्तव्य शक्ति के बल पर समाज में उच्च स्थान प्राप्त किया और मानव समाज का मार्गदर्शन कराने में प्रशंसनीय कार्य कर दिखाया।
नारी उस वृक्ष की भांति है जो विषम परिस्थितियों में भी तटस्थ रहते हुए राहगीरों को छाया प्रदान करता है, नारी की कोमलता एवं सहनशिलता को कई बार पुरुष ने उसकी निर्बलता मान लिया और इसलिए उसे अबला कहा किन्तु वो अबला नहीं है वो तो सबला है, पुरुष वर्ग शायद ये नहीं जानते की उसकी इसी कोमलता एवं सहनशीलता में ही मानव जीवन का अस्तित्व संभव है, क्या माँ के सिवाय संसार में ऐसी कोई हस्ती है जो उसी वात्सल्य और प्रेम से शिशु का लानन-पालन कर सके जैसे की माँ करती है, संसार में चेतना के अविर्भाव का श्रेय नारी को ही जाता है, इस में किंचित मात्रा भी संदेह नहीं है कि नारी ही वो शक्ति है जो समाज का पोषण से लेकर संवर्धन तक करती है।
वर्तमान समय में नारीयाँ एक सुयोग्य गृहणी होने के साथ- साथ राजनीति, धर्म, कानून, न्याय सभी क्षेत्र में पुरुष की सहायक और प्रेरक भी हैं, आज की नारी जाग्रत एवं सक्रिय हो गयी है वह अपने अंदर निहित शक्तियों को जानने लगी है, जिससे आधुनिक नारी का समाज में न केवल सम्मान अपितु प्रतिष्ठा भी बढ़ी है, व्यवसाय एवं व्यापार जैसे पुरुष एकाधिकार वाले क्षेत्र में जिस प्रकार महिलाओं ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है वो काबिले तारीफ है, इस परिपेछ्य में इंदिरा नूई , चंदा कोच्चर, चित्रा रामाकृष्णन, अनीता कपूर, अरुंधति भट्टाचार्या, आशु सुयश आदि के नाम प्रसिद्ध हैं।
प्राचीनकाल में नारी की शक्ति की पहचान अपाला, घोषा जैसी विदुषी महिलाओं से होती है ये सभी सिर्फ अपने ज्ञान के चलते ऋषिकाओ के नाम से जानी गयी, क्या करू वर्णन नारी शक्ति इतना साहस इतनी सहनशीलता रानी लक्ष्मीबाई की वीरता के बारे में कौन नहीं जानता जिस ने सिर्फ अपने साहस के बल पर अंग्रेजो के दांत खट्टे कर दिए।
स्वामी विवेकानंद के अनुसार “नारी उतनी ही साहसी है जितना की पुरुष”|
आज के दौर में स्त्री किसी भी रूप में पुरुषो से कम नहीं है, वो अपने परिवार के प्रति कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए अपनी महत्वकांछाओं को पूरा कर रही है वो हर चुनौती का बड़ी दृण्डता से सामना कर रही है, ये संभव हो पा रहा है उस शक्ति के द्वारा जो प्रत्येक नारी के अंदर प्रकृति द्वारा प्रदत है आज की स्त्री अपने व्यक्तित्व से अथाह प्रेम करती है और उसे कुंठित नहीं होने देती है।
उपर्युक्त निबंध का अंत मैं एक स्वरचित पंक्तियों द्वारा करना चाहूंगी, जिसे मैंने समस्त नारी सत्ता को समर्पित किया है, वो इस प्रकार है:
ये शक्ति स्वरूपा नारी है, ये शक्ति स्वरूपा नारी है,
ये दुर्गा है, ये काली है, ये शक्ति स्वरूपा नारी है -२
ये माँ भी है, और बेटी भी, ये झाँसी की मर्दानी है
ये शक्ति स्वरूपा नारी है, ये शक्ति स्वरूपा नारी है,
जीवन का किया सृजन इसने, है मौत भी इससे हारी है
ये शक्ति स्वरूपा नारी है, ये शक्ति स्वरूपा नारी है,
करती संघर्ष प्रत्येक दिवस, ना हार मानने वाली है
ये शक्ति स्वरूपा नारी है, ये शक्ति स्वरूपा नारी है||
जागृति अस्थाना-लेखक
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