प्रकृतिक विपदा: सूखा पर निबंध

प्रस्तावना: मानव सदा से प्रकृति पर विजय प्राप्त करने का अभिलाषी रहा है। प्रकृति को अनेक रहस्यों को सुलझाकर, उन पर विजय प्राप्त करके ओर उनसे लाभ प्राप्त करके वह ऊँचा उठना चाहता है, लेकिन किसी न किसी रूप में प्रकृति अपना वर्चस्व मानव को दिखा ही देती है।

समय: सन 1857 का जून का महीना लोग उम्मीद कर रहे थे कि बस मानसून आने वाली है धरती माता की प्यास बजेगी, गर्मी से राहत मिलेगी तथा खेतों में फसलें लहलहाएंगी आएंगी। पश्चिम बंगाल, असम और बिहार में वर्षा आरंभ हो चुकी थी। वहां की प्रमुख नदियों में बाढ़ आ गई थी। और पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, उत्तर प्रदेश के लोग अभी आकाश की ओर मुंह किए बादलों के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे।

रेडियो से सावन के गाने आरंभ हो गए थे। लेकिन भयंकर गर्मी और सूखे की स्थिति में पता ही नहीं लग रहा था कि महीना सावन का है या जेट का। सुखी जमीन के ऊपर सूखे पेड़ों की डालियों में लटकते झूले किसी विधवा की मांग की बातें सुने -सुने नजर आ रहे थे। जुलाई तो क्या अगस्त का महीना समाप्त होने को आया, लेकिन मौसम विशेषज्ञों की सभी धारणाओं एवं किसानों की सभी आशंकाओं पर पानी पानी फिर गया। आकाश में बादल आकर आधुनिक राजनीतिक की भांति आश्वासन जरूर दे जाते थे। लेकिन लगता था कि बादलों को भी पता लग चुका है। कि आश्वासन केवल आश्वासनों के लिए होते हैं।

फोन को पूरा किया जाना आवश्यक नहीं होता। वर्षा न होने के कारण पूरे देश को भयंकर सूखे ने अपनी लपेट में ले लिया। पिछले सैकड़ों वर्षों में इतना भयंकर सूखा ना ही पड़ा था। सदी का संघर्ष का सर्वघाती सूखा देश के दो तिहाई से अधिक भाग में सूखा फैला हुआ था।

परिणाम: भयंकर सूखे के कारण धान, बाजरा, ज्वार, मक्के की फसलें खराब हो गई विज्ञान भी उनहे पुनः खड़ा करने में समर्थ ना हो सकता था। प्रकृति ने अपनी विनाशक लीला दिखाएं। देश की लगभग 60% खरीफ की फसल नष्ट हो गई थी। खेतों में वर्षों की बूंदे के स्थान पर किसानों की मजबूरी के आंसू टपकने लगे। अपने बेटों की इन आसुओं से धरती माता का हृदय विर्दीन होने लगा। देश के 21 राज्य सूखे के भयंकर मार को झेल रहे थे। किसानों की कमर और देश की आर्थिक व्यवस्था चरमरा ने लगी थी। संकट की इस घड़ी में कहीं से कोई आशा का संदेश नहीं ला रही थी।

किसानों के खेतों में फसल ना होने के कारण की आर्थिक दशा सोचनिय हो चुकी थी। उधर आम जनता महंगाई एवं वस्तुओं की कमी के कारण परेशान थी। सैकड़ो गांवों में पीने के लिए पानी तक का प्रबंध नहीं था। बिजली की कमी थी ।क्योंकि के विभिन्न विद्युत परियोजनाओं में पानी नहीं पहुंच पा रहा था। बिजली की कमी के कारण
पेट्रोलियम पदार्थों की मांग बढ़ने लगी थी। इस प्रकार सब ओर से खतरों के बादल उमड़ने लगे थे।

उपाय: सरकार ने प्रकृति के इस चुनौती का सामना करने के लिए अनेक कार्यक्रम बनाने शुरू कर दिए , सूखे को देश की सबसे बड़ी समस्या माना गया। केंद्र सरकार ने गांवों में पीने का पानी पहचान एवं राहत रोजगार कार्य में विशेष ध्यान दिया। तो सरकार ने छोटे किसानों को ऋण माफ कर के किसानों की सहायता की । केंद्र सरकार की ओर से हरियाणा को 35 करोड़ 35 लाख की सहायता सूखा राहत कोष में से दी गई।

उपसंहार: सामान्य जनता एवं कर्मचारी वर्ग ने भी योगदान किया तथा सूखा सहायता कोष में खुले मन से दान किया। सभी राज्य कर्मचारियों ने आर्थिक स्थिति ठीक न होने पर भी सूखा सहायता कोष में अपना अंशदान दिया। प्रकृति ने सूखे की स्थिति में डालकर भारतीय जनता एवं सरकार की कठोर परीक्षा ली । सरकार एवं जनता के सहयोग से देश को भुखमरी से बचाया जा सकता है। लेकिन इस सूखे ने भारतीय अर्थव्यवस्था को इतनी गंभीर चोट पहुंचाई थी। की अगले कई वर्षों तक इससे उबर पाना संभव नहीं लगता।

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