कृषि के क्षेत्र में विज्ञान का योगदान निबंध

भारत के विकास और आर्थिक उत्थान के लिए किसी भी योजना का सबसे महत्वपूर्ण कारक एक भूखे, असंतुष्ट लोगों को एक खुशहाल, सुव्यवस्थित व्यक्ति में बदलना है। भोजन या तो आयात द्वारा या घर पर उत्पादन द्वारा हो सकता है। वैज्ञानिक के पास अन्य विधियां हैं। रसायनज्ञ, जीवविज्ञानी, इंजीनियर और यहां तक ​​कि भौतिक विज्ञानी की, विज्ञान को बड़े पैमाने पर कृषि  उत्पादन में लागू करने के लिए एक महान भूमिका निभायी  है। कृषक की वजह से घर पर हम भोजन प्राप्त कर पा रहे है। आज भारत देश आत्मनिर्भर बनने की राह पर चल रहा है।  पिछले  डेढ़ दशक में अलग अलग  जलवायु और कठिन स्थितियों में विज्ञान और तकनीक जैसी प्रणाली ने कृषि करने का तरीका बदल दिया है।

आज किसान नए आधुनिक और वैज्ञानिक तरीको का प्रयोग कृषि में आवश्यक रूप से कर रहे है। कृषि में काम आने वाली आधुनिक वस्तुओं की मांग बढ़ रही है और किसान आधुनिक तरीको की और ज़्यादा जानकारी जानना चाहते  है। रसायन वैज्ञानिक , जीवविज्ञानी, इंजीनियर  विज्ञान को बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए उपयोग किया है । 

 किसानो को प्रति एकड़ फसलों की अधिक उपज सुनिश्चित करने के लिए और मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने के लिए पहला कदम उठाया गया  है। पुराने किसानों को गोबर जैसी आसानी से उपलब्ध खाद पर  किसानो को भरोसा था। किसानो को उचित मात्रा में फर्टिलाइज़र्स और पेस्टिसाइड्स का उपयोग करना चाहिए।  सठिक मात्रा में इसका उपयोग करने से फसलों की उपज अधिक होती है।  किसानो को  सिखाया जाना चाहिए कि रासायनिक उर्वरक भूमि की उत्पादकता को एक हद तक कम कर सकते हैं। अत्यधिक फर्टिलाइज़र्स का उपयोग भूमि की उपजाऊ शक्ति को कम कर देता है। आर्गेनिक और इनऑर्गेनिक खाद का कितना प्रयोग करना चाहिए  ,वह सम्पूर्ण रूप से भूमि की प्रकृति पर निर्भर करता है।

किसानो का अगला कदम बीज की गुणवत्ता में सुधार करना है। अच्छे बीजों की आपूर्ति अब तक की सबसे महत्वपूर्ण समस्या है। प्लांट ब्रीडिंग एक महत्वपूर्ण कला है ,यह एक विशिष्ट विज्ञान है जिसे जानना किसानो के लिए ज़रूरी है। वैज्ञानिक नयी टेक्नोलॉजी का प्रयोग कर रहे है ताकि किसान अपने स्थानीय वातावरण में आवश्यक ज़रूरतों को पूरा कर सके।

कृषि में किसानो  को  ना केवल फसलों को उगाने की आवश्यकता होती है, बल्कि एक फसल के पूरे जीवन चक्र, इसके विकास और परिपक्व होने की पूरी जीवनी, जलवायु और पर्यावरण के प्रभाव को जानना  कृषको की जिम्मेदारी है ।  किसानो इसमें गहराई तक जाकर वह जान सकते  हैं कि एक सूक्ष्म जीव, मिट्टी, हवा, पानी, सब कुछ इस पर प्रभाव डालता  है।

जब आप एक फसल उगाने के विज्ञान को जानते हैं, तो आप एक बेहतर उपज प्राप्त करने के तरीके बनाते हैं; आप जानते हैं कि किस मात्रा में पानी, खाद, किस प्रकार की मिट्टी, कौन से रसायन, कौन से कीड़े इसे प्रभावित कर सकते हैं, और  दिए गए इनपुट की सही मात्रा क्या है, यह बेहतर रूप से बढ़ने और शानदार उपज देने में मदद करेगा। इसके अलावा कृषको को रोपण और प्रत्यारोपण की टेकनीक, रोपण के लिए मौसम, सिंचाई के तरीके, लगातार दो पौधों के बीच की दूरी, जो पौधे पहले उगाए गए हैं, वे भी उपज को प्रभावित करते हैं।

 किसानो को जानना है कि कैसे रोपण करना है और एक फसल के संचालन का प्रबंधन कैसे करना है, तो हम बहुत अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं।  वैज्ञानिक और टेक्नोलॉजी ने  इस प्रकार, कृषि में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाया  है। कृषि में विज्ञान की  कई भूमिकाएँ हैं जैसे :

  • उर्वरक
  • ट्रैक्टर
  • सीडिंग और हार्वेस्टिंग मशीनरी
  • कीटनाशकों
  • कृषि के लिए भूमि बनाने वाले वनों की कटाई के उपकरण
  • वीडीसीडस
  • जीएमओ द्वारा बीज विकास
  • ड्रिप इरीगेशन यानी सिंचाई
  • पानी पंपिंग
  • खाद्य संरक्षण

कृषि की शाखा में विज्ञान का एक बहुत बड़ा योगदान रहा है , जिसे वर्णन करना संभव नहीं है  | कृषि के आधुनिकीकरण के लिए विज्ञान ने एक बड़ा क्षेत्र में कार्य किया है। विज्ञान ने बिलकुल विभिन्न प्रकार के हाइब्रिड क्रॉप्स यानी फसलों और उम्दा रसायनो का प्रयोग किया है।

विज्ञान  ने कीटों और जीवाणु कीटों से लड़ने के लिए कृषि को दूसरे तरीके से मदद किया है। जीवाणु भारी मात्रा में अनाज और फसलों को  नष्ट करते है। रसायनो की सहायता से फसलों को बचाया गया है। भोजन  भंडारण के दोषपूर्ण तरीके   भी  अनाजों को बहुत  अधिक नुकसान पहुंचाने के लिए जिम्मेदार है। यदि हम अपनी खाद्य आपूर्ति को बढ़ाना चाहते हैं, तो न केवल उत्पादन में सुधार किया जाना चाहिए, बल्कि खेती के उन्नत तरीकों को अपनाना अवश्य चाहिए।

कृषि क्षेत्र में विकास और सफलता के लिए वैज्ञानिको के साथ किसानो का  भी भरपूर योगदान रहा है। कृषको ने तकनीकों को अपने हाथों में लेकर खेतीबारी में उनका प्रयोग किया है। प्रयोगशाला को खेतों के नज़दीक बनाया गया और बनाना चाहिए। । गत वर्ष  भारत ने बीस लाख टन का निर्यात किया और आने वाले वर्षो में भारत उन्नति की और अग्रसर होगा।

निष्कर्ष

इस प्रकार विज्ञान को कृषि के क्षेत्र में और अधिक  मूल्यवान बनाया जा सकता है। पूरे देश में नए कृषि संबंधित रिसर्च  केंद्र खोले जाने चाहिए। कृषि विश्वविद्यालयों की नींव एक अच्छी शुरुआत  की गयी है।  विश्वविद्यालयों से  अनुसंधान विशेषज्ञ हमारे बड़े देश के अन्य हिस्सों में फैल जाएंगे और कृषि से जुड़े नए आधुनिक तकनीक के प्रयोग के बारे में कृषको को बताएँगे। यह एक सुखद संकेत है और गर्व की बात है कि आज भारत  में पर्याप्त भोजन है  ।  भारत की छानबीन की योजना के कारण अब एक वर्ष में 20 मिलियन टन खाद्य फसलों का उत्पादन होता है। भारत अब खाद्य निर्यात की स्थिति तक पहुँच गया है।

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