ठोस अपशिष्ट हम सभी के जीवन के लिए एक खतरनाक समस्या है, क्योंकि इसकी वजह से आज हर दिन नई-नई बीमारियां फैल रही है। इन बीमारियों की वजह से हर दिन लाखों लोगों की मौत हो रही है। यदि हमने जल्द ही अपशिष्ट को प्रबंधन करने के बारे में कुछ नहीं किया तो, हमारे आने वाले बच्चों के लिए यह अपशिष्ट बहुत घातक साबित हो सकता है। चलिए आज इस लेख के जरिए से ठोस अपशिष्ट प्रबंधन पर निबंध लिखेंगे…
ठोस अपशिष्ट का अर्थ
आसान भाषा कहे तो हमारे घरों, स्कूलों, कार्यालयों, उद्योगों आदि में जिन कठोर चीज़ों को एक बार उपयोग करने के बाद फेंक देते है, उसे ठोस अपशिष्ट कहा जाता है। जैसे- प्लास्टिक की वस्तुएं, कांच, धातु, चमड़ा, दवाई की शीशियां, इलेक्ट्रॉनिक सामान आदि कई ऐसे उत्पाद है, जो कि कई साल बीत जाने के बाद भी कभी नष्ट नहीं होते है।
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लाभ
- ठोस अपशिष्ट प्रबंधन करने से जन स्वास्थ्य और पर्यावरण इन दोनों को लाभ होता है।
- जब ठोस अपशिष्ट का सही तरीके से प्रबंधन किया जाएगा तब बीमारियों के फैलने का कोई डर नहीं रहेगा। जिसकी वजह से हमारे देश के जन स्वास्थ्य में सुधार होगा और लोगो की श्रम करने की क्षमता बढ़ जाएगी।
- इसकी वजह से जहरीले और खतरनाक पदार्थों की निकास कम हो जाएगी, जिससे जल प्रदूषण को रोका जा सकता है।
- भस्मीकरण जैसी प्रक्रियाओ से हमें बिजली उत्पादन के लिए सस्ती ऊर्जा प्राप्त होगी।
- अगर हम ठोस अपशिष्ट का निपटान करेंगे तो हमारी जमीने बंजर नहीं बनेगी। इससे कृषि उत्पादन की क्षमता बढ़ेगी।
- ठोस अपशिष्ट का पुनः चक्रण करने से हमें कच्चा माल मिलता है। इससे बनी चीजे हमें बहुत सस्ते में मिल जाएंगी।
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के नियम
भारत में लगातार बढ़ रहे ठोस अपशिष्ट की रोकथाम के लिए भारत सरकार ने कानूनी स्तर पर साल 2016 में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम बनाया था। इस अधिनियम का सबसे ज्यादा प्रभाव नगरीय क्षेत्रों में होगा। इसके अलावा इस अधिनियम में सरकार के सभी मंत्रालयों, प्रशासनिक कार्यालयों और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के कर्तव्यों का वर्णन किया गया है।
इस नियम के अनुसार, बायोडिग्रेडेबल और खतरनाक घरेलू अपशिष्टों को हर घर में अलग-अलग पात्र में डाला जाएगा। इसके बाद अपशिष्टों को शहरी निकाय के प्रतिनिधि को सौंप दिया जाएगा। इसके अलावा जो व्यक्ति प्रतिदिन 20 टन या महीने का 300 टन अपशिष्ट का निर्माण करता है, उन्हे स्थानीय निकाय की अनुमति लेनी होगी और कर भी देना होगा।
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के प्रकार
ठोस अपशिष्ट को प्रबंधन के प्रकार
- अपशिष्ट पुनः प्रयोग
- अपशिष्ट का पुनः चक्रण
- भस्मीकरण
- गैसीकरण
- पाइरोलिसिस
अपशिष्ट पुनः प्रयोग
इसमें उत्पादकों और उपभोक्ताओं को अपशिष्ट का पुनः उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। अगर भारत के 60% लोग भी इस तरीके को अपना ले तो शायद 1 साल में हम भारत में ठोस कचरे को खत्म कर सकते है।
अपशिष्ट का पुनः चक्रण
अपशिष्ट का पुनः चक्रण यानि कि कचरे को उपयोगी माल के रूप में प्रयोग करना।
भस्मीकरण
भस्मीकरण एक सामान्य तापीय प्रक्रिया है। इसमें अपशिष्ट को ऑक्सीजन की उपस्थिति में दहन किया जाता है। इसके बाद अपशिष्ट पानी की भाप, कार्बनडाई ऑक्साइड और राख में बदल जाता है। बता दें, इस प्रकिया का उपयोग बिजली को ऊष्मा देने के लिए भी किया जाता है, लेकिन इस प्रक्रिया से मीथेन गैस उत्पन्न होती है, जो वायु को प्रदूषित करती है। इसलिए भस्मीकरण प्रक्रिया का उपयोग थोड़ा कम किया जाता है।
गैसीकरण
इस प्रक्रिया में ठोस अपशिष्ट को उच्च तापमान में विखंडित किया जाता है। इसमें अपशिष्ट का दहन बहुत कम ऑक्सीजन वाले क्षेत्रों में किया जाता है। इससे भी पर्यावरण को नुकसान होता है।
पाइरोलिसिस
इस प्रक्रिया में भी गैसीकरण की तरह ठोस अपशिष्ट को उच्च तापमान पर विखंडित किया जाता है। परंतु इसमें अपशिष्ट का दहन ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में किया जाता है। पाइरोलिसिस की खास विशेषता यह है कि, इसमें वायु प्रदूषण बिल्कुल नहीं होता।