बुद्ध पूर्णिमा पर निबंध

भारत में अनेकों धर्म के लोग रहते है। जैसे- हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, बौद्ध, जैन आदि। इन सभी धर्मों के अपने अलग-अलग त्यौहार होते है। बौद्ध धर्म के लोगों का प्रमुख त्यौहार बुद्ध पूर्णिमा है। बोद्ध धर्म के संस्थापक महात्मा बुद्ध का जन्म, मृत्यु तथा ज्ञान इसी दिन प्राप्त हुआ था, इसलिए बोद्ध धर्म के लोग इस त्यौहार को मनाते है।

बुद्ध पूर्णिमा का इतिहास

हर साल को वैशाख माह की पूर्णिमा पर बुद्ध पूर्णिमा मनाई जाती है। भगवान बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में नेपाल के कपिलवस्तु के पास लुम्बिनी में हुआ था। बुद्ध शाक्य गोत्र के थे और उनका वास्तविक नाम सिद्धार्थ था। इनके पिता का नाम शुद्धोधन था, जो शाक्य गण के प्रमुख थे और माता का नाम माया देवी था। सिद्धार्थ के जन्म से 7 दिन बाद ही उनकी माता का निधन हो गया था। इसके बाद सिद्धार्थ की परवरिश उनकी सौतेली मां प्रजापति गौतमी ने किया था।

बुद्ध धर्म के संस्थापक स्वंय महात्मा बुद्ध हैं। उन्होंने कई वर्षों तक कठोर तपस्या और साधना की, जिसके बाद वैशाख की पूर्णिमा पर पीपल के पेड़ के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई, उनको बुद्धत्व की प्राप्ति हुई। उन्होंने अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया था फिर उन्होंने अपने ज्ञान से इसे पूरे संसार को आलोकित किया। अंत में कुशीनगर में वैशाख पूर्णिमा को 80 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।

क्यों मनाते हैं बुद्ध पूर्णिमा?

अपने जीवन में बुद्ध भगवान ने जब हिंसा, पाप और मृत्यु के बारे में जाना, तब ही उन्होंने मोह-माया का त्याग कर दिया और अपना परिवार छोड़कर सभी जिम्मेदारियों से मुक्ति ले ली और सत्य की खोज में निकल पड़े। जिसके बाद उन्हें सत्य का ज्ञान हुआ। वैशाख पूर्णिमा की तिथि का भगवान बुद्ध के जीवन की प्रमुख घटनाओं से विशेष संबंध है, इसलिए बौद्ध धर्म में प्रत्येक वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा मनाई जाती है।

बौद्ध धर्म के त्रिरत्न

बुद्ध, धम्म, संघ

चार परम सत्य

पहला परम सत्य मानव का दुःख है।

दूसरा परम सत्य दुःख का कारण है।

तीसरा परम सत्य दुःख का निदान है।

चौथा परम सत्य दुःख निदान का साधन है।


आठ पथ

सम्यक दृष्टि

सम्यक संकल्प

सम्यक वाणी

सम्यक कर्मान्त

सम्यक आजीव

सम्यक व्यायाम

सम्यक स्मृति

सम्यक समाधि
बुद्ध के दस शील

जीवन किसी की हत्या न करना

कभी-भी चोरी न करना

धन का नहीं रखना

जीवन में नशा नहीं करना

नाच या गायन नहीं करना

बिन समय भोजन नहीं करना

धन को एकत्रित नहीं करना

कभी बिस्तर धारण नहीं करना

महिलाओं के पास न जाना

हमेशा सत्य का साथ देना

कैसे सिद्धार्थ बने भगवान बुद्ध?

भगवान बुद्ध ने 29 साल की आयु में गृह को त्यागकर संन्यास धारण कर लिया था। उन्होंने बोधगया में पीपल के पेड़ के नीचे 6 साल तक कठिन तपकर सत्य की प्राप्ति की थी, जिसके बाद उनका नाम सिद्धार्थ से बदलकर बुद्ध पड़ गया। भगवान बुद्ध 483 ईसा पूर्व में वैशाख पूर्णिमा के दिन एक व्यक्ति के द्वारे परोसे गए विषैले भोजन करने के कारण 80 वर्ष की आयु में भगवान बुद्ध की मृत्यु हो गई। इस दिन को परिनिर्वाण दिवस भी कहा जाता है।

भगवान बुद्ध की शिक्षाएं व नियम

भगवान बुद्ध ने अपना पहले उपदेश में चार सत्य बाते बताई जो बौद्ध धर्म की नींव बनी। बुद्ध के सभी उपदेश आज सभी के लिए वरदान साबित हुए है। उनके उपदेश आज भी लोगों को शिक्षा का पथ दिखाते है। महत्मा बुद्ध का सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत प्रतीत्य समुत्पाद है।

कैसे मनाई जाती है बुद्ध पूर्णिमा?

बौद्ध धर्म के अनुयायी बुद्ध पूर्णिमा को सम्पूर्ण विश्व मेँ बहुत धूमधाम से मनाते हैं। हिंदू धर्मावलंबियों के लिए बुद्ध विष्णु के नौवें अवतार हैं। इसलिए हिंदुओं के लिए भी यह दिन पवित्र माना जाता है। इस दिन अनेक प्रकार के समारोह आयोजित किए जाते हैं। बुद्ध पूर्णिमा के दिन बौद्ध घरों में दीपक जलाए जाते हैं और फूलों से घरों को सजाया जाता है। बौद्ध धर्म के धर्मग्रंथों का निरंतर पाठ किया जाता है। बुद्ध पूर्णिमा के दिन दान-पुण्य और धर्म-कर्म के अनेक कार्य किए जाते हैं। इस दिन मिष्ठान, सत्तू, जलपात्र, वस्त्र दान करने तथा पितरों का तर्पण करने से बहुत पुण्य की प्राप्ति होती है।

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