शरद ऋतु पर निबंध

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शरद ऋतु पर निबंध

वर्षा ऋतु की समाप्ति के बाद शरद ऋतु आती है, जिसे हम ठण्ड का मौसम भी कहते है। रमायण में जब श्री राम जी को चौदा बर्ष का वनवास हुआ था। तब जब वो वनवास कमय पंचवटी में थे उस समय बर्षा ऋतु का वर्णन कुछ इस प्रकार करा था,

बर्षा विगत सरद रितु आई .लछिमन द्खहु परम् सुहाई।
फुले कास सकल महि छाई .जनु बरसा कृत प्रगट बुढ़ाई।

इसका तातपर्य इस प्रकार है। श्री राम जी लछ्मण जी से कहते है। हे लछ्मण देखो बर्षा बीत गई और परम् सुन्दर शरद ऋतु आ गई फूले हुए कास से सारी पृथ्वी छा गई मानो बर्षा ऋतु ने (कास रूपी सफ़ेद बालो के रूप में ) अपना बुढ़ापा प्रकट किया है। हमारे देश भारत में रामायण और महाभारत काल से लेकर अब तक शरद ऋतु का वर्णन बोहोत ही सुन्दर तरिसे कवीयो ने महा कावियो ने और स्वम श्री राम जी ने भी करा है।

हमारे देश में विभिन्न प्रकार की ऋतु आती और जाती है, जिसमे शरद ऋतु, बर्षा ऋतु, गिरिष्म ऋतु, जो क्रमानुसार आती और जाती है। ठण्ड का मौसम बारिश के मौसम के बाद आता है नबम्बर से लेकर फरवरी तक हमारे भारत में ठण्ड का मौसम रहता हैं। लेकिन ठण्ड तो अपना असर ￰दिसम्बर और जनवरी महीने में ही दिखाती है। दिसंबर और जनवरी में तो इतनी ठण्ड रहती है की लोग ठिठुरने लगते है। लोग ठण्ड से बचने के लिए वो सब चीजे बहार निकाल लेते है। जोकी उन्हें ठण्ड से बचाये रखती है जिसे उन्होंने कही ना कही बंद करके रखा था। उसमे स्वेटर, ओवरकोट, मफलर, दास्ताने वो सभी कुछ जो ठण्ड से उन्हें बचाये .वो सब वो बहार निक़ालेते है। इसके साथ ही गर्मी पोहचाने वाले वो सभी समान जैसे सिगड़ी, हीटर, या आग जला ने आप को इस ठण्ड से बचाने की कोशिश करते है और कुछ न कुछ उपाए करते है ताकि वो इस ठण्ड से बच सके।

ओवरकोट और ऊनी वस्त्रो से लोग अपने आप को सुसज्जित होने के लिए विवश हो जाते है। इस कड़कड़ाती ठण्ड से हम तो ठिठुरते ही है साथ ही जिव जंतु को भी राहत नहीं मिलती है मनुष्य जहॉ गर्म कपड़ो के लबादे ओढे धुप में बैठे रहते है वही पशु भी सुस्त हुए धुप में लेते रहते है। सब अपने – अपने घरो में दुबके बैठे रहते है। आसमान में सूर्यदेव भी कम ही दीखते है बड़े मद्दिम हो जाते है उनकी गर्मी को मानो ग्रहण लग गया हो और बदने तो उनकी रही – सही शक्ति भी छीन ली हो जिसकी वजह से और ठण्ड लगती है।

ठण्ड के मौसम में दिन छोटे और राते लम्बी होने लगती है। शुबह जब हम प्रातःकाल में जब हम उठते है तो हमने देखा ही है पत्तो पर ओस की बुँदे ऐसी दिखती है .मानो मोती है और उन मोतियों के दानो को किसी न पत्तो पर बिखेर दिया हो छोटे बच्चे भी ठण्ड के मौसम का मज़ा लेने में पीछे नहीं हटते है .अपने मुँह से मुँह की भाप को निकाल कर मस्ती करते है उन्हें लगता है जैसे धुँआ उनके मुँह से निकल रहा हमे ठिठुरते हुए भी हमे अपने सारे काम करना पड़ता है .कुछ लोग सुबह – सुबह ही जलाकर बैठ जाते है .और हाथ तापते पर ये सर्दी इतनी लगती है की आग का भी कोई असर नहीं होता है .लोग गुनगुनाती धुप का आंनद लेना चाहते है पर ये शाम जल्दी ही आ जाती है ,और धुप जल्दी चली जाती पक्षी भी जल्द ही अपने – अपने घरो में भाग जाते है ,गए भी गोशाला में दुबक कर बैठी रहती है .गृहणियां अगींठी का शरण लेती है .वृद्ध मोठे कम्बल ओड लेते है सभी अपने – अपने घरो में जल्दी ही आ जाते है. और ठण्ड से अपने आप को बचाते है शीत लहर की मार किसी पर भी भारी पड़ सकती है .इसलिए सब अपने घरो में ही रहना पसंद करते है .

इस मौसम में इस ठण्ड के मज़े के साथ ही खाने का मज़ा ही कुछ और ही होता है .इस मौसम में सब तरह की सब्जिया और फल आने लगते है .सब्जिओ में बंदगोभी ,सेम ,मटर ,आलू ,गाजर ,मूली ,लोकि सब तरह की सब्जिया आने लगती है .सभी लोग अपने – अपने घरो में इसको खाने के लुफ्त उठाते है .जैसे मूली ,आलू के पराठे गाजर का हलवा ,भजिये मंगोड़े ऐसी कोई सी भी चीजे नहीं बचती जिसे खाने में इस मौसम में मज़ा ना आये थ ही फल भी बोहोत आते है जिसे लोग बोहोत चाव से खाते है .तिल गुड़ भी बोहोत आता है .गुड़ और गन्ने शरद ऋतु की ही देन है .इसे खाने से शरीर में गर्मी उत्पन्न होती है .आयुरवेद में भी तिल ,गर्म जल ,और रुई का सेवन करने की सलाह दी जाती है .इस ऋतु में अगर हम इन पर्दार्थो का प्रयोग करे तो हम स्वस्थ रहेंगे ..

इस ऋतु की सबसे महत्त्वपूर्ण बात की इस मौसम में भूख ज्यादा लगती है .और जो खाया जाता है वो हज़म हो जाता है .अतः इसलिए इस मौसम को शक्ति संचय का काल माना जाता है .

शरद ऋतु में किटाओ का प्रकोप कम ही हो जाता है .ठण्ड की वज़ह से मच्छर मर जाते है .और मक्खिओ की संख्या भी घट जाती है .इस मौसम में लोग ज्यादातर स्वस्थ ही रहते है .संक्रामक बीमारियों का असर भी कम होता है अन्य मौसम की अपेक्षा .

शरद ऋतु में जनसमुदाय को कार्य करने में कई प्रकी असुविधा का सामना करना पड़ता है .कुहासे के कारण आवागमन बाधित होता है वायुयान की उड़ाने रद कर दी जाती है .वही ट्रेन का भी यही हाल होता है .सड़को पर वाहनों की रफ़्तार कम होने लगती है किसान भी कुहासे और पाले से परेशान हो जाते है उनकी फसले ओले और पाले से नस्ट हो जाती है .

पर कई मेहनती लोगो के लिए ये सर्दी के मौसम का भी कोई फर्क नहीं पड़ता रज़ाई और चादर उतार कर वो बस अपने कामो में लगे रहते है और कड़क गर्मी की धुप से उन्हें ये ठंडी भाती है और अपना काम वो बोहोत ही आसानी से कर लेते है गर्मी की आग उगलती धुप की अपेक्षा.

और हां सरद ऋतु में त्योहारों की कमी ही नहीं रहती .और इन त्योहारों का हिन्दू लोगो में बोहोत मह रहता है .सबसे पहलेवली आती है जिसका मज़ा लोग घर से बहार निकल कर लेते है .उसके बाद बिहार और झारखण्ड का छट का त्यौहार आता है .उत्तर भारत में 14 जनवरी को लोहड़ी ,तिल संक्राति का त्यौहार मनाते है .लोग बड़े दिन की छुट्टी का आंनद लेते है .ईसाइयो का क्रिसमस का त्यौहार मनाया जाता है .इसके साथ ही गणतंत्र दिवस ,वसंत पंचमी का त्यौहार का आनंद लेते है और शरद ऋतु की समाप्ति हो जाती है .

अगर देखा जाए तो कुछ सावधानियाँ बरते तो हम ठण्ड से तो बचेंगे साथ ही इस प से सुहाने मौसम का आनंदपूर्वक मज़ा भी ले सकते है

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