मीराबाई पर निबंध

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प्रस्तावना

मीरा का जन्म 16वीं शताब्दी  में राजस्थान के मेड़ता के चौकी नामक  गांव में हुआ था। मीराबाई का जन्म राजस्थान के एक छोटे से गाँव में हुआ था।  मीराबाई धार्मिक विचारधाराओ वाली महिला थी।  बचपन से ही वह अपना समय भगवान् श्रीकृष्ण की पूजा आराधना में लगा देती थी। वह श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन रहती थी। वह हर दिन श्रीकृष्ण की भक्ति में भजन गाया करती थी।  धीरे धीरे उसने श्रीकृष्ण की भक्ति में डूब गयी |मीरा भाई धीरे धीरे भगवान् श्रीकृष्ण से प्रेम करने लगी। उन्होंने अपना पूरा जीवन श्रीकृष्ण को समर्पित कर दिया था।  आज सभी मीराबाई और उनकी श्रीकृष्ण भक्ति का लोग सम्मान करते है।उनके रचे हुए काव्य पूरे दुनिया में प्रसिद्ध है।मीराबाई का जन्म 1498  राजस्थान के कुड़की गाँव के मारवाड़ रियासत  में हुआ था। 

उनके पिता रतन सिंह जोधपुर के संस्थापक राव राठौर के वंशज थे। जब मीराबाई केवल तीन वर्ष की थी, एक भटकते हुए साधु उनके परिवार के घर आए और उनके पिता को श्रीकृष्ण की गुड़िया दे दी थी। उसके पिता ने इसे एक विशेष आशीर्वाद के रूप में लिया।   वे पहले अपनी बेटी को इसे नहीं देना चाहते थे , क्योंकि उसे लगा कि वह इसकी सराहना नहीं करेगी। जबकि  मीरा पहली नजर में भगवान कृष्ण के इस चित्रण से  प्रभावित हो गई थी। मीराबाई ने तब तक खाना नहीं खाया जब तक  उसे श्रीकृष्ण की गुड़िया नहीं दे दी गई।

मीरा बाई के जीवन में कई अड़चने  आयी। बचपन से ही खेल खेल में मीराबाई ने श्रीकृष्ण को अपना पति बना लिया।उनके जीवन में इतनी कठिनाईयों के बीच में भी उन्होंने श्रीकृष्ण की भक्ति करनी  बंद नहीं की थी।उन्होंने अनगिनत मुश्किलों का सामना किया। मीराबाई का विवाह भोजराज से हुआ था तब भी  श्रीकृष्ण की भक्ति करना उन्होंने बंद नहीं किया।मीरा के पिता ने उसकी शादी राजकुमार भोज राज से कराने का निश्चय किया। भोजराज  चित्तौड़ के राणा सांगा के सबसे बड़े पुत्र थे।

मीराबाई के पति एक प्रभावशाली हिंदू परिवार से  थे।   मीरा महल की विलासिता के प्रति इतनी रूचि नहीं थी । उसने अपने पति की हमेशा सेवा की थी।   शाम को वह अपना समय   श्रीकृष्ण की भक्ति और गायन में व्यतीत करती थी । जब भी वह भजन जाती थी , वह अक्सर दुनिया को भूल जाती थी और अपनी भक्ति में मगन हो जाती थी।

श्रीकृष्ण की भक्ति में वह मधुर गाने गाती  थी।मीराबाई की उम्र बहुत कम थी जब मीराबाई के पति भोजराज की मृत्यु हुई। समाज के कई आरोपों को उन्होंने झेला मगर श्रीकृष्ण की आराधना नहीं छोड़ी।

मीराबाई के द्वारा रचित काव्य बहुत प्रसिद्ध है।राजस्थान के साहित्यकारों में से मीराबाई का नाम सबसे ऊपर आता है | उनके काव्य बहुत ही सरल और प्रेरणदायक है। मीराबाई संतो के साथ भ्रमण करती थी और मंदिरो , मठो में गाना गाती थी। मीराबाई का श्री कृष्ण के प्रति प्रेम पूरी दुनिया में अमर हो गया है।  उनकी भक्ति और उनका प्रेम निस्स्वार्थ था।मीराबाई के इस प्रेम भक्ति को कुछ लोग समझ नहीं पा रहे थे और उनके अपनों ने भी उन्हें मारने की कोशिश की थी ।मीराबाई को पड़ोसियों ने भी परेशान करना शुरू कर दिया था।  इसलिए उसने वृन्दावन जाने का निर्णय किया। उन्होंने जीवन का आखरी समय द्वारका में बितायी थी।

निष्कर्ष

मीराबाई के ह्रदय में श्रीकृष्ण बसे हुए थे। मीराबाई को श्रीकृष्ण के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता था।  उनकी भक्ति गीत से उनका प्रेम साफ़ साफ़ झलकता था।उनको संसार के कीमती चीज़ो और सुख सुविधाओं में कोई दिलचस्पी नहीं थी।जिस तरह मीराबाई ने श्री कृष्ण के प्रति अपने जीवन को समर्पित किया शायद ही कोई ऐसा कर सकता है।

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