पक्षी की आत्मकथा

पक्षियों की जिन्दगी इतनी सरल नहीं होती है। आजादी सभी का जन्मसिद्ध अधिकार है। मैं एक पिंजरे में बंद तोता हूँ।  सभी  पक्षियों की तरह मैं भी स्वतंत्र होकर खुले आकाश में उड़ना चाहता हूँ। अफ़सोस मैं उन खुशनसीबों में से नहीं हूँ। मनुष्य हमे पिंजरे में बंद करके अधिक खुश होते है।  मेरा जन्म जंगल के एक आम के पेड़ पर हुआ था। मुझे अभी भी याद है मेरी माँ मेरे लिए खाना लेकर आती थी और मुझे दाना खिलाती थी।  मैं एक सुन्दर से घोंसले में रहता था और मेरी माँ मुझे सुरक्षित उस घोंसले में रखती थी।  माँ को हमेशा यह भय सताता था कहीं कोई शिकारी हमे पकड़ ना ले और हमे कोई चोट ना पहुंचाए। वक़्त के साथ मैं बड़ा होने लगा और मेरे पंख अब बड़े होने लगे थे।  मैं उड़ने की कोशिश कर रहा था। लेकिन मेरे पंख इतने विशाल नहीं हुए थे कि मैं उड़ सकूँ।

देखते ही देखते आखिर मैं मेरा बड़ा हो गया और मेरी माँ मुझे भोजन खोजना सिखाने लगी। मुझे फल, सब्जी और दाना पानी खाना पसंद है। जंगल में जो भी मिलता मैं खुश होकर खा लेता हूँ।  मैं झरनो का पानी पीता और खुले आसमान में पंख फैलाकर उड़ता था। मैं प्रकृति की सुंदरता का आनंद लेता और बादलो को छू लेने का प्रयत्न करता था। मेरी जिंदगी को जैसे किसी की नज़र लग गयी और अचानक एक शिकारी जंगल में दबे पाँव आया।

अचानक एक शिकारी आया और हमारे पेड़ के सामने खड़ा हो गया। शिकारी को देखकर मैं भयभीत हो गया और चुपचाप अपने घोंसले में छिप गया।  उसके पास जाल था और मेरा नसीब खराब था।  अच्छा हुआ तब माँ वहां नहीं थी।  उसने मुझे घोंसले में देख लिया था और दुर्भाग्यवश उसने मुझे पकड़ लिया।  मैंने अपने आपको छुड़वाने की बहुत कोशिश की मगर कुछ काम ना आया। उसने एक छोटे से  बोरी में मुझे बंद किया।  मुझे घुटन महसूस हो रही थी मगर मैं बेबस था।  उसने मुझे घर लाकर एक पिंजरे में बंद कर दिया।  मैंने देखा कि शिकारी के घर पर बहुत सारी चिड़िया पिंजरे में बंद थे  और सभी अपने  आजादी की गुहार लगा रहे थे ।

सब चिड़िया अपनी अपनी भाषा में अपनी  स्वतंत्रता की भीख मांग रहे है। मगर जो पिंजरे में बंद हो , उनकी कोई नहीं सुनता है।  बिना किसी अपराध के हमे जेल में बंद कर दिया गया।  रात को हमे भोजन दिया गया और सभी ने थोड़ा खाया। सबको पिंजरे में देखकर मुझे व्यथा हो रही थी।  मैं मज़बूर था और चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहा था।

फिर शिकारी सभी पिंजरों के साथ बाज़ार गया और वहां कुछ खरीदार आये थे। एक आदमी ने मुझे खरीदा।  उसका बेटा मुझे देखकर बड़ा खुश हुआ। सब परिवार के सदस्य मुझसे अच्छा बर्ताव कर रहे थे।  मैं सभी से बात करता और सब ने मेरा नाम प्यारेलाल रख दिया।

मेरे मालिक मुझसे प्यार करते है। सभी सदस्य मुझसे बात करते है और अब मेरी परवाह भी करते है।  मैं भी सबके साथ घुलमिल गया हूँ फिर भी मुझे मेरी माँ याद आती है। सभी मुझे अच्छा भोजन देते है। सब बहुत ध्यान रखते है मेरा लेकिन मुझे मेरी अपनी जिन्दगी भी बहुत याद आती है।  पिंजरे से आसमान की उड़ान में भरना चाहता हूँ।  लेकिन शायद यह अब मुमकिन नहीं है। स्वच्छंद रूप से उड़ान भरना अब मेरी किस्मत में नहीं है। 

निष्कर्ष

इंसान भी स्वतंत्र रूप से अपनी जिन्दगी गुजारता है।  उसे भी बंदिश पसंद नहीं है।  काश वह हम पक्षियों की भावनाओ को समझता और उन्हें कैद नहीं करता। हमसे दोस्ती करता और हमारी भावनाओ को समझता। मगर ऐसा नहीं होता है मनुष्य हमारे भावनाओ को समझने का प्रयत्न नहीं करते है। मनुष्य इतना स्वार्थी हो गया है कि वह पशुओं की खरीद और बिक्री करता है ताकि उन्हें फायदा हो। मेरी मनुष्यो से यही गुजारिश है कि वह हम पक्षियों को पराधीनता की बेड़ियों में ना जकड़े। मैं यही उम्मीद करूँगा कि मुझे भी उड़ने का मौका फिर से मिलेगा। पिंजरे में बंद होने का दर्द वही जानता है जो बंदी हो। मनुष्यो को अगर हमे घर का सदस्य बनाना है तो वह हमे पिंजरे में क्यों बंद करते है ? सभी को स्वाधीनता पसंद है और उन सब में हम पक्षी भी शामिल है।

Leave a Comment