भारतीय राजनीति में विपक्ष की भूमिका पर निबंध


संसदीय लोकतंत्र की विशेषता सत्तारूढ़ दल और विपक्षी दल की पारस्पारिक जवाब देही की प्रणाली और एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण विचार-विमर्श प्रक्रिया में प्रकट होती है। आज हम इस लेख में भारतीय राजनीति में विपक्ष की क्या भूमिका होती है। इस पर निंबध लिखेंगे। और जानेंगे विपक्ष का होना राजनीति में कितना जरूरी है। चलिए शुरुआत करते है।


भारत एक लोकतांत्रिक देश है। भारत में राजनीतिक नेता और दल मतदान प्रणाली द्वारा सत्ता में आते हैं। 18 वर्ष से अधिक आयु के भारतीय नागरिक वोट देने और अपने नेताओं का चुनाव करने का अधिकार प्राप्त करते हैं। बता दें, विरोधी दल वह दल होता है, जो कि संसद या विधानसभाओं में सत्तारूढ़ दल से इतर दल होता है। प्रतिपक्ष या विरोधी दल का नेतृत्व करने वाला ‘नेता प्रतिपक्ष’ कहलाता है। बता दें, प्रतिपक्ष या विरोधी दल के नेता का सिद्धांत ब्रिटिश संसदीय पद्धति की देन है।

विपक्ष की भूमिका


संसद के बाहर मीडिया और जनता के बीच रोजाना सरकार के कामकाज पर प्रतिक्रिया करना और उनके किए कामों पर उनसे सवाल करना। साथ ही राजनीति तरीके से उनके कामों पर निगरानी करना एक विपक्ष का काम होता है। विपक्ष का सबसे महत्वपूर्ण भूमिका यह सुनिश्चित करना है कि सरकार संवैधानिक सुरक्षा-घेरा बनाए रखे। सरकार नीतिगत उपाय और कानून के निर्माता के रूप में जो भी कदम उठाती है, विपक्ष उसे अनिवार्य रूप से आलोचनात्मक दृष्टिकोण से देखता है। इतना ही नहीं, विपक्ष का काम यह भी होता है कि वह विभिन्न संसदीय साधनों का यूज करते हुए अपने निर्वाचन क्षेत्रों की विशिष्ट आवश्यकताओं, संशोधनों और आश्वासनों के संबंध में भी मांग और अपील करें।

विपक्ष की भूमिका को सशक्त करना


विपक्ष की भूमिका को सशक्त करने के लिए भारत में ‘शैडो कैबिनेट’ संस्था का गठन किया जा सकता है। बता दें, यह ब्रिटिश कैबिनेट प्रणाली की एक अनूठी संस्था है। यहां पर सत्ताधारी कैबिनेट को संतुलित करने के लिए विपक्षी दल द्वारा शैडो कैबिनेट का गठन किया जाता है।


विपक्ष के साथ संबद्ध समस्याएं


विपक्ष का समकालीन संकट मुख्य रूप से इन दलों की प्रभावशीलता और चुनावी प्रतिनिधित्व का संकट है। साथ ही दलों में भरोसे की कमी और नेतृत्व का अभाव भी साफ देखने को मिलता है। विपक्षी दल कुछ विशिष्ट सामाजिक समूहों तक सीमित प्रतिनिधित्व के संहत स्वरूप में अटके रह गए हैं। प्रतिनिधित्ववादी दावे ने विपक्ष को गठित, विस्तारित और समेकित होने में तो सक्षम बनाया है, लेकिन इस दृष्टिकोण या परिघटना की समाज के सभी वर्गों के अंदर वास्तविक प्रतिनिधित्व साकार कर सकने की असमर्थता ने विपक्ष के लिये अवसर को संकुचित करने में भी योगदान किया है।

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